प्रणाम सकारात्मकता…

एक व्हाट्सएप आधारित लघु अवधि पाठ्यक्रम स्तर - 1,2, 3प्रत्येक स्तर प्रगतिशील ध्यान, जागरूकता और मनमर्जी की दिशा में काम करता है। इस कार्यक्रम की विशिष्टता : प्रणाम मानव क्षमताओं को उस विकासवादी बिंदु पर विकसित करने की इच्छा रखते हैं जहां वे क्षमता बनते हैं, और मानवीय संवेदनाओं को चैनलाइज करते हैं जहां वे संवेदनशीलता बन जाते हैं ताकि प्रकृति के नियम के आधार पर कुल परिवर्तन प्राप्त कर सकें। परिवर्तन की दिशा में काम करना सभी मनुष्यों की समान जिम्मेदारी है। सर्वोच्च चेतना जो सभी में निवास करती है, कभी विकसित होती है और जो भीतर की वृद्धि दिखाती है, उसके लिए बाहर दिखती है। प्रणाम का पॉजिटिविटी का काम जीपीएस की तरह करता है और सबसे प्रभावी रास्ता सुझाता है, ताकि हम यात्रा शुरू कर सकें। हमारे आंतरिक सत्य की खोज की दिशा में उत्पादक कदम। कार्यक्रम व्याख्यान और उपदेश देने से परहेज करता है। सहभागिता को…

पृथ्वी दिवस…

हम सभी पाँच तत्वों से बने हैं, इनमें से चार - वायु जल अग्नि और ईथर सार्वभौमिक हैं और पूरे ब्रह्मांड में विभिन्‍न रूपों में पाए जाते हैं, जबकि यह केवल पृथ्वी तत्व है, जो हमारे ग्रह का पंच-महाभूत पूरा करता है - सृष्टि के लिए आवश्यक हैं पांचों तत्व। आज पृथ्वी दिवस है… लेकिन वास्तव में इस ग्रह पर हमारे लिए, प्रतिदिन ही पृथ्वीदिवस होना चाहिए। भारतीय संस्कृति ने हमेशा प्राकृतिक ऊर्जा को देवताओं के रूप में माना है और पृथ्वीको माता के रूप में देखा जाता है। पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है जो हर ऊर्जा को, सृजन के लिए, सटीक अनुपात में आकर्षित करता है, चाहे सूर्य की रोशनी हो या चांद की चांदनी। पृथ्वी जीवन का उद्गमस्थल है। परम्परागत रूप से, भू देवी पृथ्वी की अध्यक्षता करने वाली देवी हैं। उसके विभिन्‍न रूप हैं जो उसकी अद्वितीय प्रकृति और सृजन में उसकी महत्ता को परिभाषित करते हैं।…

दिमाग को एक तरफ रक्खे

जब हमारा मन भ्रमण करता है तो हम मनुष्यों को मनोरंजन लगता है, दिवास्वनमनोरंजक हो सकता है… और कई बार हमें एहसास भी नहीं होता कि यह हो रहा है।और हम इसे बढ़ाते जाते हैं… “उसने यह कहा', “मैं बदले में यह करूंगा' और विचारघूमते रहते हैं, कभी छोड़कर नहीं जाते। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मन एक बेचैनबंदर की तरह है जिसने शराब की सैकड़ों बोतलों का सेवन किया है और उसके ऊपरकई बिच्छुओं ने डंक मारा है… बस कल्पना करें कि वह कैसा व्यवहार करेगा। यही एक बेचैन दिमाग की स्थिति है। गीता में अर्जुन कहते हैं कि मन की गति को मापना बहुत कठिन है। कोई भी मन काप्रबंधन कैसे कर सकता है? जिसका श्रीकृष्ण जवाब देते हैं, निश्चय ही यह कठिन है। मुझे पता है… लेकिन इसे अभ्यास से दूर किया जा सकता है। अपने मन को “हरि नाम' का पथ्य दे दें।” जिस क्षण यह…

आंतरिक शुद्धिकरण

सभी में एक नकारात्मक धारा होती है जो उनसे मूर्खताएं करवाती है। इस अंधकारमय तत्व के प्रति सचेत रहें । चेतन प्रयास करें, इसे बाहर फेंकने के लिए साधना करें। अंधेरे तत्व से प्रभावित होकर आचरण ना करने के बारे में सोचना अपने अंतर से इसेजड़ समेत उखाड़ना नहीं है। बस अपने आप को ध्यान से देखें कि कभी-कभी आपकीभावनाओं और विचारों में बहुत उदारता होती है और किसी समय निरीक्षण करें कि दूसरों की कमजोरियों को गलत शब्दों और अनाचारों को आप इंगित करते हैं। ये दोनों पूर्णतया विरोधाभासी व्यवहार और लक्षण हैं। जब आध्यात्मिक निर्बलता के समय, भीतर नकारात्मकता होती है तो बस यह स्वीकार करने की हिम्मत होनी चाहिए कि यह मेरा सत्य नहीं है। लगातार ऐसा करने से यह लक्षण निकल जाएगा। हमेशा परमात्मा के लिए आंतरिकआकांक्षा और ईश्वरीय कार्य के प्रति सचेत रहें। जब कोई अपने लक्षणों और ओड़े हुए व्यक्तित्व, जो कि अहम्‌ की…