युद्ध वार और अवतार

युद्ध नकारात्मकता और विनाश हैपर पूर्णता की ओर छंटनी की प्रक्रिया हैअवतार सत्य सनातन धर्म और मानव जीवन के सही आचरण का रक्षक है सत्य धर्मप्रथम मानव अवतार श्रीराम (सूर्यवंशी) ने पाप पर पुण्य की विजय बताने के लिए स्वयं युद्ध लड़ा - 'और फिर भी…' संदेश दिया… केवल आध्यात्मिक रूप से सद्गुणी होने से… पाप को हराया जा सकता है। दूसरे मानव अवतार श्रीकृष्ण ने युद्ध में सक्रिय भाग नहीं लिया, लेकिन अर्जुन को सिखाया। गीता के ज्ञान के द्वारा कैसे सही कर्म के लिए सही अर्थों में लड़ना है सही समय पर सही आचरणतीसरे मानव अवतार बुद्ध ने अहिंसा का रास्ता दिखाया, सम्राट अशोक को सिखाया, आपदा और युद्ध के विनाश के बाद पश्चाताप करने से कोई लाभ नहीं है। इसलिए युद्ध त्याग कर प्रेम अपना। अहिंसा त्याग प्यार प्रेम का मार्ग अपना। दुर्बलों पर जीत के लिए शक्ति का उपयोग न कर। अपने राज्य सीमा के विस्तार…

प्रतीकों की भाषा

प्रतीकों की अपनी एक अनोखी दुनिया होती है। वे विभिन्न रूपों जैसे लाइनों, डॉट्स रंगों आदि के माध्यम से बोलते हैं और संपूर्ण शास्त्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये सहज स्फूर्त भाव हैं और आंतरिक सत्य और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए बनाए गए हैं। चूंकि ये शक्तिवान हैं और पूर्ण आंतरिक अभिव्यक्ति हैं, केवल वे ही व्यक्ति जो दृश्य निरूपण के प्रति संवेदनशील हैं, इनसे संयुक्त हो इनका रहस्य बता सकते हैं। उदाहरण के लिए प्रतीकों में तात्कालिक संकेत होते हैं, जैसे गदा देखने के बाद हनुमान जी या भीम की याद आती है, सुदर्शन चक्र हमें विष्णु और श्रीकृष्ण की शक्ति और अजेयता की याद दिलाता है। धनुष बाण श्री राम का, त्रिशूल दुर्गा का, डमरू शिव का और चूहा हमें कृपालु गणेश जैसे ये विभिन्न प्रतीक हैं और विभिन्न प्रकार के देवता और उनके दिव्य गुणों का पूरी तरह से उनके माध्यम से प्रतिनिधित्व किया जाता…

पांच बिंदु सदा याद रखने के लिए

1. कृतज्ञता और कृपा के लिए प्रार्थना करेंआज मैं दिव्य अनुग्रह की आकांक्षा करूंगा और कृतज्ञता में जीऊंगा। सार्वभौमिक ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक योग्य माध्यम होने के लिए प्रार्थना करें जो संपूर्ण और पूर्ण रूप से उपचार करता है। 2. प्रत्येक क्षण को पूर्णता से जीयोआज मैं कर्तापन की भावना में नहीं रहूंगा और न ही किन्हीं वस्तुओं और स्थितियों की चिंता करूंगा। अपनी समस्त क्षमताओं के अनुसार हर क्षण को जीएं, बाकी सब प्रकृति के नियमों अनुसार ही होगा। 3. ऊर्जा का संतुलन - तालमेल और सामंजस्य हेतु आज मैं तीव्र भावनात्मक उद्वेगों और क्रोध में अपनी ऊर्जा को क्षीण नहीं करूंगा। तीव्र उद्वेग और क्रोध नियंत्रण से बाहर महसूस करने का परिणाम हैं। यदि आप यह अनुभव कर रहे हैं तो अपने को दोषी ना माने, पर अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत रहें। अपने अवगुणों को देखने और अवचेतन आघात, दुर्बलताओं अपराधबोध और भय के कारण उत्पन्न भावनाओं को…

स्पष्टता

स्पष्टता चेतना की वृद्धि को दर्शाती है। यह हमारे अस्तित्व के निरंतर और प्रगतिशील, गहन, ऊंचा और चौड़ा होने से विकसित होती है। यह मन, शरीर और जीवन के सभी बंधनों को काटने से होता है। यह तब उतरती है जब हम अहंकार के मकड़जाल से मुक्त हो जाते हैं और आत्मा के प्रकाश का अनुभव करने लगते हैं। जब हम ब्रह्मांड में आत्मा की इच्छा और उद्देश्य को महसूस करते हैं और एकत्व के विचार में रहते हैं, तो स्पष्टता अपने चरमोत्कर्ष को छूती है। स्पष्टता के लिए हमें अपनी वास्तविकता का पता लगाने के लिए अपने भीतर ही खोजना होगा। इस उद्देश्य के लिए नए युग के आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा विकसित और प्रचारित किए गए कई मार्ग हैं, लेकिन जो भी मार्ग अपनाया जाए उसके लिए विश्वास, साहस, दृढ़ता और समर्पण की आवश्यकता है। यह एकमात्र बल है जो मन को प्रकाशित कर सकता है, वास्तविकता को प्रकट…

स्वयं के साक्षी बनो

अपने आप के साक्षी बनना सीखें, ताकि आप अपने मन के हस्तक्षेप के बिना अपने अंतर के परम तत्व, सच्चे अस्तित्व के संदेशों को पढ़ सकें। ऐसा करने से, आप स्पष्टता प्राप्त करेंगे। यह आसान नहीं है। इसे सिद्घ करने में कुछ महीने लग सकते हैं। फिर भी प्रारम्भ करना महत्वपूर्ण है। इससे आपको वर्ष के संदेश को भी समझने में मदद मिलेगी। इसलिए अब दूसरों को जांचना छोड़ दें और स्वयं को देखना शुरू करें। दूसरों को जांचते समय, आप निर्णयात्मक हो जाते हैं। अब खुद को जांचने का समय है। ताकि आप उन संदेशों को पढ़ सकें जो दिव्य आपके पटल पर लिख रहे हैं। और बहानों को बनाने, नकारने के लिए अपने दिमाग का उपयोग करने की अपेक्षा परम सत्ता सर्वोच्च को इन संदेशों का पालन करने के लिए, शक्ति प्रदान करने के लिए कहें। यह सब अपने साक्षी होने से शुरू होता है। प्रणाम मीना ऊँ

ऊर्जा का आह्वान

हमारे पास कार्य करने के लिए ज्ञान साधन और उपकरण हो सकते हैं, लेकिन शक्ति बल या सही मार्गदर्शन के बिना, हम कुछ भी प्राप्ति नहीं कर सकते। ब्रह्माण्ड में कोई ज्ञान नहीं है। उसमें केवल ऊर्जा होती है जो ज्ञान को प्रवाहित करती जाती है। सभी विकसित आत्माओं के विचार और ज्ञान वहां रहते हैं। इन ऊर्जाओं क आह्वान करके उन सब विकसित लोगों से जुड़कर, हम उनका शुद्ध ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यही कारण है कि उनका आवाहन करना और पुकारना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए यदि आप एक कलाकार हैं, तो देवी सरस्वती को प्रज्वलित करें। यदि चित्रकारी की आकांक्षा है तो प्रारम्भ में यह आपकी रेखाओं में कुछ बल लाएगा। फिर जैसे-जैसे अभ्यास बढ़ेगा, पकेगा यही रेखाएं जीवंत हो उठेंगी, रंग भी स्पंदित होने लगेंगे। यदि लेखन कौशल में सुधार लाना है, तो विकसित लेखकों से जुड़े रहें, और उनके विचार आपकी लिखित अभिव्यक्ति में…

हे मानव ! तमस की निद्रा से जाग !

इतने सारे बुद्धिमान मानव होते हुए भी विश्व विवेकहीन महामूर्खों की बस्ती बन कर रह गया है। एक ओर महामारी कोविड-19 कोरोना से लड़ने हेतु अंधाधुंध व्यय कर रहा है। सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त कर आधी अधूरी व्यवस्थाएं कर रहा है। उनको बचाने हेतु जिनका कि शायद मानव समाज देश और विश्व हित में कोई भी योगदान न हो। दूसरी ओर अपरिमित धन व्यय कर रहा है युद्ध के लिए आयुधों पर उनको मारने के लिए जो हृष्ट पुष्ट हैं नौजवान हैं विश्व का भविष्य हैं। ऊपर से पर्यावरण का सत्यानाश। वाह रे मानव! बलिहारी तेरी दोगली नीति की। मानव का इतना पतन परम बोधि व प्रकृति को कभी भी मान्य ना होगा प्रकृति अब अपने हिसाब से छंटनी करके ही रहेगी। प्रकृति के इस प्रकोप कोरोना को कम करने की प्रार्थना करना तथा सावधानी रखने का प्रयत्न करना तो स्वाभाविक व उचित ही है पर इसके साथ ही इस साधना…

एक प्रश्न पूछ रहा प्रणाम

हे मानव ! तू किसे पूजता है तेरा आराध्य या ईष्ट कौन है किसे याद करता है फूल-पत्र, भोग व प्रसाद चढ़ाता है कहाँ मुसीबत में भेंट प्रार्थना व अर्चना करता है भजन कीर्तन करता है। तू जिसके लिए यह सब करता है और गर्व से कहता है कि मैं तो अमुक-अमुक को गुरु मानता हूँ, अमुक-अमुक देवी देवताओं का भक्त हूँ तो फिर तेरा समर्पण पूर्ण क्यों नहीं है। क्यों इधर-उधर भागता है कि तेरी समस्याओं का समाधान और उल्टे-सीधे अज्ञानतापूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिल जाएं। ज्योतिष वास्तु या कोई कष्ट निवारक ही मिल जाए, कुछ नगों मंत्रों या अन्य उपायों से चमत्कार हो जाए। ये सब बाहरी फैलाव या भागदौड़ क्यों, दिमागी जोड़-तोड़ क्‍यों । क्यों जब तेरा जहाँ से जी चाहे वहीं से तुझे सब प्रश्नों के उत्तर मिल जाएं, मुसीबतें या सांसारी कष्टों का नाश हो जाए। ऐसी शब्दों की बौछार हो जाए जिसमें तू अपनी…

अन्तरात्मा की आवाज सुन कर्मरत होओ

हे मानव! अब समय आया है चैतन्यता एवं जागरूकता पर काम करने का। चैतन्यता की पहचान है अपने अन्दर झाँककर बिल्कुल शून्य होकर आवाज सुनो बाह्य चैतन्यता से मुक्त होकर। अभी मन, बुद्धि, चैतन्यता की आवाज में अन्तर करना मानव भूल गया है। सदियों से सोई हुई आत्मा की आवाज (युग चेतना की आवाज) को जगाने की साधना का समय प्रारम्भ हो गया है। जब आप पूर्णतया शान्त हैं अर्थात निर्लिप्त होकर अर्न्ततम्‌ स्थिति तक पहुंचते हैं तब जो प्रतिध्वनित हो वही आत्मा की आवाज है। फिर भी मानव यह नहीं समझ पाता कि यह मन बुद्धि की आवाज है या आत्मा की आवाज है। इसके लिए आरम्भ में कुछ कठिन साधना करनी होगी जब लगे आपके अन्दर से कुछ सन्देश व निर्देश उठे हैं तो उनको ब्रह्मवाक्य समझकर उनका पालन करो इस प्रकार पालन करने पर यदि वह विवेक जगाते हैं वातावरण शुद्ध व आनन्दमय बनाते हैं तथा आपको…

सत्य प्रेम व कर्म द्वारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य

कलियुग में पार लगाने के सर्वोत्कृष्ट साधन सत्य प्रेम व कर्म है और सर्वोत्तम साधना है ज्ञान भक्ति और कर्म की। कर्म दोनों में है एक में आन्तरिक धर्म और एक में बाह्य कर्त्तव्य कर्म । सत्य निर्भय बनाता है प्रेम निर्मल करता है और कर्म पुरुषार्थ का मार्ग प्रशस्त करता है। सत्य प्रेम व कर्म की पूर्णता से वो ज्ञान जागृत होता है जो समस्त अज्ञान रूपी अंधकार को काटकर उस प्रकाश से प्रकाशित कर देता है जिसमें सच्चिदानन्द स्वरूप का दर्शन हो जाता है। सत्य प्रेम व कर्म के इस अलौकिक चमत्कार से आत्मसाक्षात्कार तभी संभव है जब शरीर मन व आत्मा में लयात्मकता व एकात्मकता हो । जब तक स्वयं से एकात्म न होगा तब तक बाहर भी एकात्म वाला भाव प्रसारित नहीं हो पाएगा। सत्य की सबसे बड़ी साधना है मनसा वाचा कर्मणा एक होना जो सोचो वही बोलो वही करो । सत्यनिष्ट मानव आत्मा के…