प्रकृति पूजा सर्वोत्तम पूजा, ऊँ महामंत्र-सा न कोई दूजा
क्या कभी प्रकृति का मंदिर देखा है या किसी ने प्रकृति का मंदिर बनाने का सोचा भी है। जिस प्रकृति से मानव बना पोषित हुआ उसको कभी सच्चे मन से धन्यवाद किया है? जिसने सब कुछ दिया, देती रहेगी बिना कुछ लिए दिए, बिना कुछ भेदभाव किए तुम उसके लिए क्या करते हो ज़रा सोचो तो। पूजा करने मंदिर जाते हो घुसने से पहले ही हिसाब किताब शुरू हो जाता है कितनी बड़ी माला, कितने का प्रसाद चढ़ाना है कुछ कम या ज्यादा ही हो जाए। कितने फूल तोड़े जाते हैं मसले जाते हैं सैकड़ों का व्यापार होता है। प्रभु तो एक फूल से ही खुश हैं न भी दो तो मन का भाव ही बहुत है। खूब प्रवचन सुना जाता है घण्टों समय बिता देते हैं। पर घर आते आते ही सब गुल हो जाता है वही राग-रंग, दुनिया के झमेलों में चक्रव्यूह में फंसकर अशान्त मन को फिर…