सत्य के प्रत्यक्ष प्रमाण सा प्रतीक प्रणाम का

प्रतीकों की अपनी एक अनोखी है दुनिया जो कि कुछ विशेष चिह्नों, बिन्दुओं, रेखाओं व रंगों में पूरा ग्रंथ समाए हुए होती है। प्रतीक एक सोच या विशेष विचारधारा की उत्पत्ति होते हैं। जो दिमाग से सोचकर या विशेष कला की विद्या ध्यान में रखकर नहीं बनाए जा सकते। यह अपने अंतर के सत्यभाव से प्रस्फुटित होते हैं। यह अपने आपमें पूरा संदेश लिए होते हैं जिसे वे ही समझ पाते हैं जो उस प्रतीक वाली विचारधारा के प्रवाह से जुड़े होते हैं। इनका प्रभाव सम्पूर्ण होता है जैसे गदा देख हनुमान या भीम का विचार आता है। सुदर्शन चक्र विष्णु की पूर्ण शक्ति का प्रतीक है और श्रीकृष्ण के अमोघ आयुध का ध्यान कराता है। बाण से राम का और त्रिशूल से दुर्गा का, डमरू से शिव का स्मरण हो आता है। चूहे से श्रीगणेश का इस प्रकार अनेकों प्रतीक हैं। इसके साथ-साथ देवी-देवताओं के विशेष स्वरूप, अन्य प्रतीकों…

हवन यज्ञ का विज्ञान प्रणाम बताए विधान-2

पिछले अध्याय में हवन की तैयारी बताई। उसके बाद हथेली के अमृतकुंड में जल भर कर दो उंगलियों से उसे छूकर शरीर की सब कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों को जल लगाकर प्रार्थना की जाती है कि वह सदा शुभ व मंगलमय देखें, सुनें व स्वस्थ, बलिष्ठ, पुष्ट हों। तत्पश्चात अग्निकुंड में कपूर से व घी में डुबोई लकड़ियों से अग्नि प्रज्वलित की जाती है। यह मानव शरीर भी इस लकड़ी के समान घी-पौष्टिकता का प्रतीक-ग्रहण कर पुष्ट होकर दूसरों के काम आए। दूसरों की ज्योति जलाने में अपना जीवन होम कर सकूँ, जला सकूँ यही प्रतीकात्मक भाव है। इसके बाद थोड़ी-थोड़ी देर बाद मंत्रोच्चार के साथ घी व सामग्री डालते रहते हैं। जितनी बार स्वाहा बोलो उतनी बार अपने शरीर व मन के विकारों को भी बीन बीन कर अग्नि देव को भस्म करने के लिए अर्पण करना है। यह एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है अपनी कुंठाओं से मुक्ति पाने की। अग्निदेव…

हवन यज्ञ का विज्ञान प्रणाम बताए विधान-1

हवन अपने अंतर्मन के सभी विकारों को भस्म करने की वैदिक प्रक्रिया है। इस पद्धति में सभी उपचार पद्धतियाँ बहुत ही सुंदर रूप में समाई हुई हैं। मनोचिकित्सा, एक्यूप्रेशर, स्पर्श चिकित्सा, ध्यान, ज्ञान, प्रार्थना, भक्ति, विवेक, संयम, व्यवस्था इत्यादि का अद्भुत संयोजन है। विचारों और प्रक्रियाओं का बहुत ही सौंदर्यमय तालमेल है। सत्य, प्रणाम की प्रमुखता है और हवन उसी का संदेशवाहक व प्रमाण है। सत्य की सच्ची साधना है जो सोचो वही बोलो वही करो। मनसा-वाचा-कर्मणा सत्यमय होना। इसकी साधना का बहुत ही रुचिकर रूप है हवन। सत्य को समझने, सत्यरूप सच्चिदानंद से एकाकार होने की वैदिक पद्धति है हवन। हवन मन, शरीर व आत्मा के पूर्ण स्वास्थ्य की सीढ़ी है। मन व शरीर के सब विकार भस्म कर वातावरण शुद्ध कर आत्मशक्ति जागृत करने का उपाय है। हवन में जो भी सामग्री प्रयोग होती है, वह सब प्राकृतिक सम्पदा वाली होती है, उनसे आयुर्वेदिक लाभ भी मिलता है।…

हे माँ लक्ष्मी कर प्रकाश समृद्धि प्रेम वृद्धि का

हे माँ लक्ष्मी कर प्रकाश समृद्धि प्रेम वृद्धि का जहाँ दीपावली पर्व श्रीगणेश की विघ्नहारी सूरत और महालक्ष्मी की भव्य मूरत मन में साकार करता है वहीं मन-मस्तिष्क में पचास वर्ष पुरानी दीवाली की कसक भी मन में जगाता है। श्री लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों दीयों व खील-बताशों के अलावा कुछ भी बाजार से नहीं आता था। बरसात से बेरंग हुए घरों की लिपाई-पुताई महीनाभर पहले शुरू हो जाती थी। सफाई-सजावट सब घर के सदस्य मिलजुलकर करते। वो रोली, आलते व गेरू से दरो-दीवार पर कमल, शंख, सतिया व लक्ष्मीजी के चरण कमल आदि शुभ-चिह्नï बनाना। आँगन में तुलसी का चौबारा सजाना। छोटे-बड़े मिट्टी के कलशों को रंगों वजरी गोटे से सजाना। रंगीन कागज व पन्नियाँ काट-काटकर आटे की लेई से चिपकाकर झाड़-फानूस तोरण झंडियों की लहरियाँ बनाना। नए-नए पकवान बनाना सीखना पड़ोस की चाची, ताई व अम्मा से। नए-नए कपड़े बनाना- सब कुछ एक पवित्र पर्व के सौंदर्यमय भावपूर्ण आयोजन…

लयात्मक संतुलन प्रकृति का पूजन शिव का

ब्रह्मा-विष्णु-महेश की त्रिमूर्ति ब्रह्माण्डीय कालचक्र के कृतित्व, उसकी पूर्णता और संहार का सार तत्व है। मानव शरीर यंत्र का ज्ञान, मंत्र की ऊर्जाओं का भान और शरीर के अंदर फैली नाड़ियों के जाल का उनके उद्गम संगम और विलय के तंत्र का ज्ञान, सब कुछ ध्यान-योग की अद्ïभुत क्षमता से जानकर विश्व को देना ही श्री शिव की महानतम देन है। उनका सर्वस्व स्वरूप यही स्थापित करता है कि मानव शरीर ब्रह्माण्ड की संरचना प्रक्रिया का ही प्रतिरूप है। प्रकृति से योग के कारण वह प्रकृति के प्रत्येक उद्वेग को आत्मसात् कर लेते हैं। जब शिव तांडव करते हैं तो सृष्टि का संहार होता है पुनर्निमाण के लिए। जब अपूर्णता प्रकृति के नियमों को नकारकर चरम सीमा पर पहुँच जाती है, तो प्रकृति ऊर्जाओं को पुनर्व्यवस्थित करने लगती है, इस उथल-पुथल से प्रकृति की ऊर्जा से सदा ही संचालित शिव का शरीर स्वत: ही तांडव की प्रक्रिया में आकर दुनिया…

प्रणाम माँ सरस्वती कर प्रकाश, दे सन्मति

सरस्वती नमस्तुभ्यम् वरदे कामरूपिणीम् विश्वरूपी विशालाक्षी विद्या ज्ञान प्रदायने। हे माँ सरस्वती नमन वंदन, कामरूप सृष्टि उत्पत्ति की समग्रता में व्याप्त विश्वरूपिणी, सर्व विद्यमान, दूरदर्शिता से परिपूर्ण विशाल नेत्रों वाली विद्या और ज्ञान का वर दें। ब्रह्मा की सृष्टि को पूर्णता तक ले जाने का मार्ग सब प्रकार की विद्याओं और कलाओं से प्रशस्त करने वाली देवी शारदे सदा ही वंदनीय हैं। दिन के आठों पहर में एक बार प्रत्येक मानव की वाणी में सरस्वती अवश्य ही प्रकट होती है। पर संसार में लिप्त मानव बुद्धि उसे समझ ही नहीं पाती। कई बार अनुभव तो सबको होते हैं कि किसी ने कुछ कहा और वह सच हो जाता है पर इस क्षमता को पूर्णता देना ताकि वाणी में सदा ही कमलासना का वास रहे यह केवल कस्तूरीयुक्त माँ सरस्वती की सतत् साधना व आराधना से ही सम्भव है। इनका वाहन हंस है। हंस की विशेषता है कि अगर दूध और…

प्रणाम स्तुति ज्ञान से श्रीगणेश पूजा होवे गुण दूजा

श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ श्री गणेश घुमावदार सूँड़, बड़ी काया व करोड़ों सूर्यों की प्रभा ज्योत्स्ना वाले, मेरा प्रत्येक कार्य सदा निर्विघ्न करो। भारतीय परम्परा है कि कोई भी कार्य व्यापार से पूजा तक गणेश वंदना से ही प्रारम्भ होता है। यह एक रीति की तरह निभाया जाता है। इसका अर्थ बहुत ही गहरा व अर्थपूर्ण है। जिसको समझना व समझाना विशेषकर नौजवान पीढ़ी को अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इससे उन्हें हमारी संस्कृति और उसके वेदपूर्ण विज्ञान की सही पहचान होगी। देवी-देवताओं के स्वरूप व पूजा विधि में छुपी फिलॉसफी दर्शन व संदेश समझकर पूजा करने से ही पूजा पूर्णता को प्राप्त होती है। गणेश जी की घुमावदार सूँड़ कुंडलिनी शक्ति जगाने का प्रतीक है। लम्बे बड़े-बड़े कान दूरी तक दूसरों की बात आत्मसात् कर ध्यान देने का संकेत हैं। बड़ा पेट अपने मन की बात पूरी होने तक अंदर रखने की प्रेरणा…

प्रणाम भारत का धर्म सत्य प्रेम और कर्म

सदैव आकांक्षा करो एक ऐसे संवेदनशील हृदय की, जो सबसे नि:स्वार्थ प्रेम करे ऐसे सुंदर हाथों की, जो सबकी श्रद्धा से सेवा करें ऐसे सशक्त पगों की, जो सब तक प्रसन्नता से पहुँचें ऐसे खुले मन की, जो सब प्राणियों को सत्यता से अपनाए ऐसी मुक्त आत्मा की, जो आनन्द से सबमें लीन हो जाए धर्म वही है जो जात-पात, ऊँच-नीच और मेरा-तेरा छोड़ सबको खुशी दे एवं उन्नत होने में सहायक हो। धर्म प्रेम का प्रसार है, ज्ञान के प्रकाश का विस्तार है। सब धर्मों का निचोड़ यही तो है। पर मानवकृत धर्मों के प्रचार की दौड़ में मुख्य बिंदु प्रेम प्रकाश सत्य व कर्म कहीं खो गया। भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के दायरे में बँधकर संकीर्णता की सीमा रेखाएँ अपने चारों ओर खींच ली। कबीर की कथनी भुला दी- पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय॥ मुसलमान भाईयों की नमाज़…

बने ज्ञान-विज्ञान श्री विद्या महान कहे प्रणाम

विद्या अंधकार दूर करने का माध्यम है। अपने को समझने का दूसरे को पहचानने का, घर परिवार समाज देश राष्ट्रों और ब्रह्माण्डों को समझने-बूझने का ब्रह्मास्त्र है। सच्ची विद्या परमानंद पाने का, घर-बाहर व नक्षत्रों इन सबसे अपने को संतुलित कर, तारतम्य बना कर उनमें मानसिक रूप में समाहित होकर पूर्ण लयात्मक होने का ज्ञान है। इससे शक्ति पाकर चारों ओर परम शान्ति प्रेम और आनन्द स्थापना का महामंत्र है। परमानंद प्राप्ति व ईश्वर प्राप्ति के बाद क्या करना है यही बताने का ज्ञान ही श्री विद्या है। कैसे दूसरों का ज्ञानदीप जलाना है उन्हें अपने से मिलना है अपना मार्ग स्वयं कैसे पहचानना है और निरंतर आगे बढ़ते ही जाना है। अपने शरीर, मन, बुद्धि व सब कर्मेंद्रियों व ज्ञानेंद्रियों को कैसे विकसित कर उनका प्रयोग सम्पूर्णता से सृजन करने, पूर्णता की ओर ले जाने और अपूर्णता के संहार में लगाना है। साथ ही साथ यह सत्य क्षणमात्र को…

प्रणाम कहे साधो सात जग सधे आपै आप

सात साधे सब सधे आप साधे जग सधे। सात रंग, सात स्वर, सात आकार, सात चक्र, सात ग्रंथियाँ, सात ऋषि, सात आकाश, सात तल अंतर्मन की गहराइयों के, सात समुद्र, सात दिन, सात ग्रह, सात सोपान युग चेतना के, मानव उत्थान के और सात ही शब्द सविता मंत्र के। ऊँ भू : ऊँ भुव: ऊँ स्व: ऊँ मह: ऊँ जन: ऊँ तप: ऊँ सत्यम् इन सबका ज्ञान व महत्व जानकर इस दिशा में प्रयास स्वत: ही मानव व सृष्टि संरचना के सब रहस्यों को खोल देता है। यह प्राकृतिक रूप से ही होना होता है। परम चेतना द्वारा ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति पूर्ति और विनष्टि सहज ही होती रहती है। परम शक्ति की ऊर्जा परिणाम की चिंता से रहित स्वत: ही प्रवाहित होती रहती है। यदि परिणाम सुरूप और सत्यमय हो तो पूर्णता की ओर विकसित होता है। यदि कुरूप और अपूर्ण हो तो समय पर नष्टï हो ही जाता है।…