सत्य ज्ञान का दर्शन प्रणाम का चक्र सुदर्शन

बहुत कुछ कहा संकेतों में, कविताओं में और भाषा की आँखमिचौनी में। पूरा प्रयत्न किया कि नींद से जागे मानव, अर्जुन बने सत्यधर्म जाने अपना मार्ग प्रशस्त करे। समय का संदेश सुना पाऊँ ताकि प्रकृति ने जो अग्नि-परीक्षा संजो रखी है, नियत कर रखी है, आयोजित की हुई है, असत्यता व अपूर्णता के लिए, उसकी भयावहता से, त्रासदी से, असत्य में जी रहे मानव के लिए कुछ राहत का सामान कर सकूँ जैसे आक्रमण वाला पहले पुकार लगाता है कि अपने बचाव की तैयारी कर लो ऐसे ही प्रकृति भी शिवरूपिणी हो तांडव दिखाने लगती है। संकेतात्मक भाषा में बहुत पहले ही संदेश देने लगती है। कुछ मानवों को प्रकृति तैयार भी कर लेती है वह संदेश देकर आगाह करने के लिए। प्रणाम एक ऐसा ही, प्रकृति और उसके कालचक्र के नियम से निरंतर जुड़ा माध्यम है। जो यह सत्य जानता है कि असत्य और अपूर्णता का बढ़ना ही, पूर्णता…

प्रणाम का विधान बताए अवतार की पहचान

भाग-1 स्मृति सागर मथ-मथ मोती पायो, घट भीतर ज्ञान भक्तियोग जगायो। सत्य, कर्म व प्रेम का पाठ पढ़ायो, प्रभु कृपा अनंता जान मन मुस्कायो। कोई पूछे मेरा परिचय। संबोधन पूछने वाले की श्रद्धा पर निर्भर करता है। तू कौन है, तुम क्या हो, वैसे आप करती क्या हैं आप हैं कौन? प्रश्नों के कई रूप हो सकते हैं पर उत्तर तो सिर्फ एक ही है। शायद लोग मुझे पागल समझें जो उनकी बुद्धि अनुसार, उन्हें सही ही लगे। हर युग में सत्य, कर्म व प्रेम का चिंतन, विचारक और प्रचारक पागल ही समझा गया और कई बार मारा भी गया यहां तक कि गीता देने वाले श्रीकृष्ण को भी गांधारी ने वंश नाश का श्राप दे डाला। पर अब उत्तर तो देना ही होगा मुझे। अगर मेरे अंदर बैठा अविनाशी तत्व मेरे मुख से यह कहलवाए कि मनु शरीर में वही अविनाशी तत्व है जो सब में व्याप्त है:- मैं…

कहे प्रणाम पुकार पूर्णता को कर अंगीकार

स्मृति अनंत सागर भरे मन की गागर स्मरण की बना मथनी बुद्धि की बना डोर इच्छा की लगा शक्ति ध्यान का लगा जोर काल का चक्र घूमा पाया अनमोल रतन ज्ञान का मानव विधान का वेद विज्ञान का नव निर्माण का कर्म प्रधान का सत्य विहान का स्नेह समान का विश्व कल्याण का प्रणाम अभियान का आज के मानव ने विज्ञान के बल पर, अपनी लगन और मेहनत के बल पर सब भौतिक व ऐशोआराम के साधन अपने लिए जुटा लिए हैं। स्वर्गिक सुख पाने की इच्छा में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। फिर भी परेशान है मानव तनाव, कुण्ठा, निराशा, घृणा, द्रोह, नई-नई बीमारियाँ और चारों ओर हिंसा का नग्न तांडव। अपनी प्रकृति पर और प्रकृति के प्रकोपों पर विजय पाने की दौड़ में भागते-भागते थक गया है मानव और अब ढूँढ़ रहा है शान्ति और आनन्द। सच्चाई क्या है? आनन्द कैसा होता है, क्या है परमानंद, जब इन…

जीकर गीता ज्ञान हो मानव महान कहे प्रणाम

भारत एक धर्मपरायण देश है। कोने-कोने में गीता गूँजती है। जन्माष्टमी पर तरह-तरह के आयोजन कर गीता के सृजनहार को याद किया जाता है। खूब धन व्यय किया जाता है। भजन-कीर्तन की भरमार रहती है मगर गीता के वचनों पर चलने की बात, उसे जीकर जीवन धन्य करने की बात इस पूजा-पाठ के शोरगुल में अनायास ही कहीं खो गई है। अगर गीता को गुनकर जीया जाए तो भारत की सारी समस्याएँ खुद ही हल हो जाएँगी। गीता आत्मा है भारत की उत्कृष्ट संस्कृति की। भारत के शरीर को तो आज़ादी मिली मगर आत्मा अभी भी स्वार्थी मानसिकता के गिरवी रखी हुई है और जब तक आत्मा जागृत नहीं होती शरीर को तरह-तरह की व्याधियाँ सताएँगी ही। भारतीयों का धर्म में विश्वास तो है पूजा पाठ भी है पर कर्म एकदम नदारद है। गीता के दूसरे अध्याय में इक्तीसवें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं- धर्म्याद्धि युद्धाच्छेयोऽन्यात्क्षत्रियस्य न विद्यते अपने धर्म…

नैना नीर भरे हों नूर भरे

नैना नीर भरे, नैना नूर भरे में बदलें यही मेरी भक्ति तथा आस्था है। प्रकृति स्वयं ही कर्म का पाठ पढ़ाएगी। जागृत चेतना स्वयं ही रास्ता दिखाएगी, दूसरों की चेतना को भी जगाएगी। दुख आता है बुद्धि का अंधकार मिटाने, बीमारी आती है शरीर का विकार मिटाने और जब प्रश्न आते हैं क्यों आती हैं त्रासदी दुर्घटना, विपत्ति और आपदा तो समझो आत्मा का अंधकार मिटाने की बारी है। जब-जब ऐसे प्रश्न उठते हैं तो सबको एकचित्त होकर, एकाग्रता और सच्चाई से, कि हम कहाँ गलत हुए, हल अपने अंदर ही खोजना है। यही सच्चा ध्यान लगाना या मेडीटेशन करना है। जैसे ही हमें अपनी गलती का अहसास होता है प्रकृति अवश्य मदद करती है दुख की निराशा को आशा में बदलने की, शरीर के आलस्य को कर्म में बदलने की और आत्मा के अंधकार को ज्ञान के प्रकाश व भक्ति में बदलने की। यही प्रकृति माँ की उदारता है।…

कुछ बिक गए, कुछ बिकने को हैं तैयार बस किसी भी तरह, कुर्सी रहे बरकरार

डेमोक्रेसी का पर्याय बन गया है दे मोहे कुर्सी। भारत के सम्मान की और भारतीयता की प्राण सत्यम् शिवम् सुंदरम् वाली संस्कृति की किसी को भी चिंता नहीं है। कृष्ण के कर्मयोग के पाठ की जगह आलस्य और कर्महीनता अपनी जड़ें जमा चुके हैं। आज जो तहलका मचा है। तहलका की गतिविधियों से उससे भ्रष्टाचार व्यवस्था के सुनियोजित तथा नियमित रूप से चलने की प्रक्रिया पर सत्यता की मोहर तो लगी ही है पर एक बात स्पष्टï है इससे राष्ट्र हिल गया है। ऐसे काम तो करीब-करीब सभी राजनैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक स्थानों पर सुचारु रूप से चल रहे हैं। जाने-अनजाने हम सब इसके भागीदार हैं। देखकर भी नासमझ बने बैठे हैं। अगर आज एक विभाग का नकाब हटा है तो यह सागर में बूँद बराबर है। हर जगह कुर्सी या गद्दी चाहिए- माइट इज राइट, ताकि कुर्सी की शक्ति का प्रयोग अपने-अपने स्वार्थों व हितों को सिद्ध करने में…

हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा

होगा वही जो प्रकृति को मंज़ूर होगा और प्रकृति को सिर्फ सत्य, कर्म और प्रेम ही मंज़ूर होता है। सत्य सुकर्म करने का ब्रह्मास्त्र है। सत्यवादी ही निडर होकर सत्कर्म को तत्पर होता है- इतना बढ़े सत्य का तेज। हो सब विकृतियाँ निस्तेज॥ सत्य की तपस्या से अपने अंतर के भगवान को जगाना ही होगा। तुम सब भगवान हो पर जब तक भगवद् गुण प्राप्त कर दिव्यता धारण नहीं करते भगवान के अंशमात्र ही हो। भगवान, ईश्वर, अल्लाह, प्रभु के बच्चे ही हो। जैसे आदमी का बच्चा जब तक बड़ा होकर आदमी के गुण नहीं पा लेता बच्चा ही कहलाता है। प्रकृति ने सबको दिव्यता जगाने की क्षमता दी है यही प्रभु कृपा है। सब कुछ त्याग कर ही मोक्ष मिलेगा यह धारणा सही नहीं है। मोक्ष का अर्थ है, मुक्ति व आज़ादी हर उस चीज से जो दुख का कारण है और आंतरिक आध्यात्मिक उन्नति में बाधक है। अपने…

गणतंत्र का मंत्र

हर वर्ष गणतंत्र दिवस बड़ी भव्यता से अपार धन व्यय कर मनाया जाता है जबकि सादगी राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का संदेश है। भारत के सच्चे सपूतों के बलिदान और युगदृष्टाओं की चेतावनी का ध्यान रखकर यदि सही राह न अपनाई तो कैसे बात बनेगी। गणतंत्र का सच्चा अर्थ समझकर उसका उपयोग भारतीयों की सोई देशभक्ति को जगाने में करने में ही इस दिवस की सार्थकता निहित है। जिस प्रकार सृष्टि की सुव्यवस्था तंत्र-यंत्र-मंत्र में निबद्ध है। उसी प्रकार भारतीय जनगण देश के कोने-कोने तक फैला तंत्र की भांति है जैसे शरीर के अंदर सारे अवयव व नाड़ी तंत्र का पूरा जाल। इसे भारत सरकार रूपी यंत्र समेटे हुए संपुटित किए हुए है और मंत्र है भारत का संविधान जो व्यवस्थित संचालन के लिए शक्ति बीज है। जब शरीर में कहीं भी विकार या विषाक्त कीटाणु पनपते हैं तो उसका तत्काल उपचार अत्यावश्यक होता है अन्यथा पूरा शरीर रोगग्रस्त हो जाएगा।…

निष्क्रिय अर्जुन दिशाहीन देखे माँ भारती वस्त्रविहीन

यह कैसी विडंबना है कि अर्जुन को तो, बिना किसी मंदिर के, खुले मैदान में ही, श्रीकृष्ण की वाणी जो सिर्फ एक बार ही बोली गई, ऐसी एक ही गीता ने जगा दिया। और आज जबकि लाखों गीताएं पढ़ी-सुनी जा रही हैं हजारों कृष्ण मंदिर हैं फिर भी कर्म के लिए तत्पर जागरण की लहर उछाल क्यों नहीं लेती। शायद अर्जुन भ्रमित है, क्योंकि उदाहरण स्वरूप कहाँ हैं? जो सत्य उदाहरण स्वरूप हैं भी, उनका दर्शन व प्रवेश भयभीत कर देता है असत्य का दुर्ग अपने चारों ओर बनाए हुए बैठे कर्महीनों को। आज के अर्जुन को अपने प्रश्नों के उत्तर आज के संदर्भ में चाहिए। उसे पढ़ी-पढ़ाई बात नहीं चाहिए। बातों का, ज्ञान का व अहंकार का विस्तार नहीं चाहिए। उदाहरण चाहिए गीता पढ़ाने वालों को भी उदाहरणस्वरूप बनना ही होगा। जागो भारतीयों जागो, पद और राजशक्ति के मद में चूर आपसी फूट में पड़कर, सत्य को दबाकर, तुम…

कन्हाई की तन्हाई प्रणाम हृदय समाई

कन्हाई का तो बस अब एक ही प्रश्न है क्या हर युग में बार-बार विराट रूप दिखाना ही पड़ेगा तभी पहचानेगा अर्जुन श्रीकृष्ण के स्वरूप को। क्या कोई अर्जुन, इतना जो ज्ञान फैला हुआ है चारों ओर, उससे ज्ञान चक्षु खोलकर दिव्य दृष्टि पाकर, स्वत: अपने आप ही उस स्वरूप को पहचान नहीं पाएगा जो राह सुझाता है, सत्य मार्ग बताता है। कौन समझता है कन्हैया का दर्द, माधव मोहन का मर्म। जिस बाल सखा अर्जुन को गीता ज्ञान देकर विक्षोभ से मुक्ति दिलाकर विजय का मार्ग प्रशस्त किया। अधर्म पर धर्म की जीत स्थापना में पूर्ण सहयोग दिया। रथ हाँका सारथी बनकर उसने भी कहाँ मुड़कर देखा कि कैसी कैसी स्थितियों से गुजरे मधुसूदन गांधारी का विषाक्त श्राप धारण कर। यही तो विडंबना है प्रभु की सदा स्वयं ही शापित होते रहते हैं कभी भी श्राप देते नहीं। ऋषियों-मुनियों व पहुँचे हुए मानवों से हुई गलतियों के सुधार हेतु…