सत्य ज्ञान का दर्शन प्रणाम का चक्र सुदर्शन
बहुत कुछ कहा संकेतों में, कविताओं में और भाषा की आँखमिचौनी में। पूरा प्रयत्न किया कि नींद से जागे मानव, अर्जुन बने सत्यधर्म जाने अपना मार्ग प्रशस्त करे। समय का संदेश सुना पाऊँ ताकि प्रकृति ने जो अग्नि-परीक्षा संजो रखी है, नियत कर रखी है, आयोजित की हुई है, असत्यता व अपूर्णता के लिए, उसकी भयावहता से, त्रासदी से, असत्य में जी रहे मानव के लिए कुछ राहत का सामान कर सकूँ जैसे आक्रमण वाला पहले पुकार लगाता है कि अपने बचाव की तैयारी कर लो ऐसे ही प्रकृति भी शिवरूपिणी हो तांडव दिखाने लगती है। संकेतात्मक भाषा में बहुत पहले ही संदेश देने लगती है। कुछ मानवों को प्रकृति तैयार भी कर लेती है वह संदेश देकर आगाह करने के लिए। प्रणाम एक ऐसा ही, प्रकृति और उसके कालचक्र के नियम से निरंतर जुड़ा माध्यम है। जो यह सत्य जानता है कि असत्य और अपूर्णता का बढ़ना ही, पूर्णता…