प्रेम सींचे आत्मवृक्ष

जो दिखे नहीं फिर भी दीखे पाँचों तत्वों से पाँचों इन्द्रियों से झलके सृष्टि की हर छटा से वो प्यारा-प्यारा मधुर-मधुर अहसास जिसके आगे होते सारे के सारे अहसास फीके-फीके से जो न टिके न रुके न झुके कहीं भी पर बन स्मरणीय स्मृति की नाद गूँजे घट भीतर भिगोता गात सींचता प्रेम-वर्षा से आत्मवृक्ष कभी भी न रीते संसारी मायावी जीवन जीते-जीते भागदौड़ में न जाने कब हो जाते नयन भीगे-भीगे तो जान जाना नयन नहीं होते तब कृष्ण के भी सूखे स्मरण के तार से बँधे तेरे ही आत्मप्रेम से बिंधे युगों युगों से बस यही रूप तो स्मरण का नहीं बदला है युगों युगों से बस यही रूप तो स्मरण का नहीं बदला है इसीलिए तो इसका न कोई अदला-बदला है न कोई अदला-बदला है तुम्हारा ही अंश प्रभु का वंश मीना ऊँ यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

मानस पुत्री प्रकृति की

हुई अवतीर्ण एक मनु धरती पर खिली प्रकृति की मानसपुत्री-सी प्रकृति की इच्छास्वरूप मूर्तमान रूप आप ही अपने को जाना-माना देखा-परखा समझा-बूझा और कस-कस कर जीवन को कसौटी पर तत्पर हुई माना मार्ग चलाने को चल पड़ी अकेले ही अकेले सत्य की राह बनाने को होने लगे रूपांतरित इस आभामंडल से संसारी कर्मों के आकार-प्राकार अज्ञान की घोर अँधेरी रातों में प्रकृति के शाश्वत नियम स्थापन सत्यदीप प्रज्वलन को संकल्पित हुई धरा पर ओ मानव सुन तो ज़रा आत्मा की पुकार सत्य का चीत्कार अपने अणु-अणु में समाहित दिव्य विभूतियों का अपने अस्तित्व में दबी-ढकी असीमित क्षमताओं का जानकर रहस्य हो जा चैतन्य तेरे अंतस की पर्तों में छुपी आतुर दिव्यता जागृति को प्रकृति की अनन्य व्यवस्था के अनुरूप सत्य प्रेम प्रकाश द्वारा पोषित होने को हों सभी दिव्य आनन्द में लीन यही आकांक्षा प्रकृति की रहस्यमय प्रभु की प्रस्तुति की पर संभावना रहती दूर ही दूर क्योंकि अज्ञान ढके…

मीना जाने माने

मीना जाने और माने मानव में अपनी क्षमताओं से भी परे जाने की क्षमता है सारी शक्तियाँ हैं मीना ने देखा एक प्रफुल्लतापूर्ण प्रफुल्लित आनन्दमय प्रभु परमेश्वर बुद्धि और उसके आकर्षण से परे परे ही परे आत्मा का वैभव आत्मा का ऐश्वर्य न भय न असमर्थता न छोटेपन का भाव सब कुछ कर पाने की समर्थता का आनन्द सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशमय करने को तैयार एक युगातीत भारत सम्पूर्ण वेदमय-मेरा भारत यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

कैसे आओगे

हे मानव! कैसे आओगे कैसे पहुँच पाओगे तुम मुझ तक तुम कहते हो ज़रा मिलना है पूरा मिलना शायद तुम्हारे बस में है ही नहीं तुमने चाह लिया कि मिलना है तो हे मानव! क्या तेरी चाह से ही होगा मिलन सब कुछ तेरी चाह से ही होना चाहिए जो तू चाहता है वही क्यों होए तो जान ले यह सत्य जब तक ना आवेगा बुलावा सत्यमय परम का तू नहीं जा पाएगा कहीं भी न ऊपर न नीचे और अब तो दौर शुरू हो गया है छँटनी का कर्मयोगी सत्ययोगी प्रेमयोगी ही चल पाएँगे चल पाएँगे साथ प्रणाम के ......!! प्रणाम मीना ऊँ

धूल साफ की

मन के शीशे से धूल साफ की खूब देखा जमाने का रंग पैसे का संग दिमाग के खेलों का रंग अहम् का ढंग पर सच सच के पास ही जाएगा पर सच सच के पास ही जाएगा यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

अग्निपथ

शुक्र का सूर्य परागमन हुआ वीनस सौंदर्य का प्रतीक एकदम ठंडा व एकदम गर्म दोनों का संतुलन ही सौंदर्य उपजाए अग्निपथ से तप कर शुद्ध तो होना ही होता है शुरू कर दी है यह यात्रा तपस्यामयी जिन्होंने प्रणाम के प्रवाह के साथ-साथ वो तो आसानी से जाएँगे गुज़र होकर जीवन की हर बाधा से तर युगों जैसे वर्षों से मेरी बातें सुन-सुन क्रोध मेरा कर सहन प्रताड़नाओं का मर्म गुन गुन तैयार हो रहे अपनी ही समर्पण की शक्ति से निर्मल भक्ति से अथक प्रयत्न से सतत् कर्म से गुज़रते रहेंगे हर पीड़ा से हर तरह की पीड़ा से पर टिके रह पाएँगे वो ही जो होंगे पूर्ण ज्ञान कर्म व भक्ति से यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

अवतार चेतना

मीना अवतारों की शृंखला से जुड़ी उसी माला में पिरोई ईश्वर मत्स्यावतार से कल्कि तक का सफर मेरा सफर यह शरीर धारण करती है अवतार चेतना जहाँ तक उसे पहुँचाना होता है पहुँचाकर दूसरा शरीर धर लेगी दूसरा शरीर धर लेगी बदल लेगी अवतार चेतना स्वत: ही पुराने कपड़ों की तरह ये नश्वर शरीर पर सदा ही मार्गदर्शन देती सारी सृष्टि का खेल सारा का सारा सम्पूर्णता से दिखाती बताती सम्पूर्णता से दिखाती बताती नित निरंतर क्षण-क्षण संदेश औ' निर्देश देती अंतर्वाणी सुनाती विधान जुटाती पुराने में नया जोड़ सत्यता का भान कराती हजारों विधाओं से लुभाती-रिझाती समय का संकेत बताती कि अबकी न जाना चूक ओ मानव क्योंकि युगों-युगों से बताया है तुम्हें बता ही तो दिया है क्या होती है अवतार चेतना की बात उसका रूप औ' स्वरूप तो भई न जाना भूल समझ लो यह ज्ञान अनूप आज ही अभी बस अभी कल गया वक्त होऊँगी की…

जीतने की उमंग

जीतने की उमंग की तरंग थमने न पाए जीत जाने के उद्यम का श्रम रुकने न पाए सत्य कर्म प्रेम का माना मार्ग जो भी अपनाए ऐसे आत्मबली मानव के प्रभु हो जाते स्वयं सहाय जीत जाएँगे हम अगर तू साथ है अगर तू साथ है अगर तू साथ है ओ कन्हाई यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

प्रकृति का खेला

प्रकृति सदा ही गोलाकार गोलाइयाँ लिए रचना रचती है सारे ब्रह्माण्डीय नक्षत्र सितारे ग्रह गोलाइयाँ लिए हैं अपने आप जलते-सुलगते ठंडे पड़ते बिगड़ते और बिगड़कर फिर-फिर बनते बनते ही रहते सदा कर्मरत प्रकृति की प्रगति औ' उत्थान प्रक्रिया में संलग्न संघर्ष करते अनवरत अपनी सत्ता को मनवाते से अपनी-अपनी सामर्थ्यानुसार ब्रह्माण्ड को सौंदर्यमय बनाते से सम्पूर्ण सृष्टि की अनन्त व्यवस्था में पूर्ण योगदान देते जीवंत रहकर जीवंतता प्रदान करते कांटे ही सीधे होते हैं अकड़े खड़े रहते हैं टूट जाएँ पर अकड़ नहीं जाती चुभने पर देते हैं बस टीस ही पर देखो तो प्रकृति माँ की उदारता उन्हें भी पूर्ण पोषण दे एक कर्म दे दिया सुंदर फूलों और जड़ी-बूटियों की सुरक्षा का प्रकृति का स्वरूप बिगाड़ने वालों को सज़ा का प्रकृति का खेला अनूप नहीं अस्तित्व विहीन किसी का भी स्वरूप यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

मीना अणु है जीवन गति

मनु का सत्य : भाग- 2 मनु अणु का विस्तार मेरे से बाद मेरे से पहले कुछ भी नहीं मेरा अस्तित्व बीच में तुम नाचो चहुँओर पास आकर फिर भागो दूर-दूर भागो, भागते रहो युगों-युगों से यह भागदौड़ तो तभी समाप्त होगी जब मुझ जैसे ही पारदर्शी पारे की तरह होकर मुझमें ही विलय हो जाओगे पूर्ण ज्ञान-विज्ञान है जो नहीं जाना गया वही अज्ञान है मीना अणु है अणु का विज्ञान है मीना अणु पूर्णता का तत्व है यही मनु का सत्य है यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ