प्रणाम

* कर्म ही धर्म है
* प्रेम सदा सफल है
* सत्य सदा जयी है

प्रिय सहयात्रियों...

प्रणाम एक अभियान है जो सब धर्मों के सत्य पर आधारित है और समय की पुकार का उत्तर है सत्य प्रेम व प्रकाश का दिव्य संदेश जो दिव्यता की रश्मियों के रथ पर उतरा है वो ही प्रणाम के उद्भव का कारण बना है माँ शारदे की कृपा से जो भी प्राप्ति हो रही है वही सत्य प्रेम व कर्मयोगियों की सेवा में अर्पित है।

ज्ञान भक्ति-प्रेम व कर्म का सन्तुलित समन्वय सही समय पर सही विवेकपूर्ण कर्म ही इस युग में उत्थान का सच्चा मार्ग है। सत्य अपने पूर्ण पवित्रतम रूप में इतना प्रभावी होता है कि जीवन की कठोरतम परिस्थितियों व जटिलताओं को भी कल्याणकारी ज्ञानवर्धक और आनन्दमय बना देता है। जीवन की प्रत्येक विधा में सकारात्मकता व पूर्णता के विधान का दर्शन ही आत्मानुभूति है।

वास्तव में सत्यानुभूति ही सौन्दर्यानुभूति है ऐसा सत्यम शिवम सौन्दर्य जिसमें सारे राग द्वेष दूसरों के प्रति निर्णयात्मक भाव यहाँ तक कि अहम्‌ व कर्ताभाव भी तिरोहित हो जाता है। एकात्म से साक्षात्कार हो जाता है। हम अपने ही भीतर झाँककर आत्मनिरीक्षण कर अज्ञान के अंधकार को मिटाकर भ्रमजालों को काटकर दुविधा व संशयों का निवारण कर प्रणाम का सहयात्री बन

निष्काम कर्म द्वारा प्रेम धारा बहाकर वसुधैव कुटुम्बकम को वास्तविक बना सकते हैं। जब आप जीवन के इस आनन्दपूर्ण यात्रा पथ पर एक नवयुग निर्माण की ओर अग्रसर हों तो यही विचार आपका मार्ग दर्शन करे।

प्रणाम क्यों कहें?

प्रणाम पूर्ण है सत्य का विस्तार है। नमस्कार नमन है, अभिवादन है, आदर है। प्रणाम प्रणव है ओंकार है और 3» ओकार ही एकमात्र सत्य है| प्रणाम इसी सत्य प्राण का प्रसार है। प्राणों का आयाम है आपके अच्छे गुण मुझमें और मेरे अच्छे गुण आपमें स्वत: ही समा जाएँ। आत्मा तो सबकी ही सत्यमयी, प्रकाशमयी व आनंदमयी है उसी का विस्तार प्रणाम द्वारा होता है।

प्रणाम का ' प्र' प्रकृति का स्वरूप है। हम प्रकृति के स्वरूप हों और देना ही देना जानें । प्रणाम में प्राणायाम है। 'ण' स्वर किसी और देश में बोल ही नहीं पाते सिर्फ देवनागरी लिपि में संस्कृत में व कुछ भारतीय भाषाओं में ही 'ण” का सही उच्चारण होता है। और इसके उच्चारण मात्र से ही नाक के ऊपरी भाग, दोनों भवों के बीच, स्पंदन होता है, जो एक यौगिक क्रिया है, जिससे स्वत: ही इड़ा-पिंगला, सूर्य-चंद्र, ऊर्जाएँ संतुलित होती हैं। 'ण' बोलने मात्र से प्राणायाम की प्रक्रिया वाला प्रभाव उत्पन्न होता है।

प्रणाम में 'म” नमन व नम्रता का प्रतीक है तो प्रणाम का पूरा अर्थ हुआ- प्राणों का विस्तार नम्नता से प्राणों का आयाम सत्य निर्भय, निःशंक, निद्वँद् व स्वतंत्र आत्मा का फैलाव है। जब सत्यमयी आत्मा और आनन्दमय प्राणों का विस्तार होगा तो सब इंसान अपने आप इन गुणों में आ ही जाएँगे। जैसे प्रकाश फैलने पर अँधेरा अपने आप कट जाता है क्योंकि सबकी आत्मा का गुण तो यही है। यही सत्य है सिर्फ मानव इस सत्य को भुला बैठे हैं। जब प्रणाम का महामंत्र उनके कानों में गूँजेगा तो स्वत: ही आत्मा का जागरण होगा, सतू-संकल्प जागृत होंगे, और सत्‌-संकल्प देंगे शक्ति सही कर्म की और यह सत्कर्म ही सतयुग निर्माण का सोपान बनेगा। प्रणाम के सत्य को सहयोग ही सत्य का साथ देना है और यह सहयोग स्वत: ही असत्य से असहयोग में बदल जाएगा।

गांधी जी ने 'असहयोग' और “अहिंसा' का महामंत्र दिया और भारत स्वतंत्र हुआ। इसी प्रकार ' असत्य' और “अपूर्णता' से असहयोग की पूर्ण शक्ति देगा “प्रणाम” का महामंत्र। बन सुदर्शन चक्र काटेगा सभी अपूर्णताएं जो प्रकृति के नियम के अनुकूल नहीं।

असत्य के गिरवी रखी भारत की आत्माएं आज्ञाद होंगी। प्रणाम पूर्णता का मंत्र है। पूर्णता जो सर्वशक्तिमान, सर्वविद्यमान और सर्वज्ञाता है। माँ भारती प्रणाम कर जगा रही है क्योंकि भारतवासी बच्चे भारत माँ को प्रणाम करना भूल गए हैं।

प्रणाम अपने आप में परिपूर्ण है, प्रत्यक्ष है प्रणव है और प्रमाण है। सत्यमय, कर्ममय और प्रेममय होने का। यही है प्रणाम का आप सबको प्रणाम। जागो, जगाए प्रणाम! भारत सब समस्याओं से उबर विश्व का मार्गदर्शन करेगा। इसी सत्य की शक्ति के आधार पर प्रणाम प्रकट हुआ है।

'पायो कृष्ण स्वरूप वरदान, तव अंकुरित भयो प्रणाम।

प्रणाम का पूर्ण विश्वास है महान युग-दृष्टाओं और मनीषियों के सर्वकल्याणकारी चिंतन में, अब सत्य उजागर हो अंधकार, अविद्या व अपूर्णता को काटेगा ही । नवयुग-सतयुग का सुप्रभात होगा ही, तभी तो प्रणब कृपा से ही प्रणाम का उद्भव हुआ है।

यही सत्य है

हर क्षण को लिप्त हुए बिना, पूर्णत और आनन्द से जीओ

प्रणाम एक अभियान है जिसका कार्य प्रकृति के नियम सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश को निरंतर उन्नत होती हुई युग चेतना की आत्मानुभूति के द्वारा स्थापित करना है। प्रणाम का उद्देश्य है पूर्ण रूपांतरण-धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक। जो कि प्रकृति के अविनाशी सत्य पर आधारित है।

यह समान विचारधारा वाले लोगों का परिवार है जो पृथ्वी पर शांति प्रेम और प्रकाश फैलाना चाहते हैं ताकि 'सत्यम-शिवम-सुंदरम्‌,' सत्य, परोपकार और सद्भाव तथा “वसुधैव कुटुम्बकम, ' संपूर्ण विश्व परिवार है की वास्तविकता बनी रहे।

प्रणाम लोगों को अपनी आंतरिक शारीरिक संरचना के विज्ञान, शरीर मन और आत्मा के तंत्र को जानकर स्वयं पर काम करने के लिए प्रेरित करता है, ताकि वो संरचना सत्य प्रेम कर्म और प्रकाश का प्रसार कर प्रकृति व उत्थान के कारण हेतु सच्चे माध्यम बन सकें।

यह आध्यात्मिकता के वास्तविक अर्थ को स्थापित करने की आकांक्षा करता है- आध्यात्मिकता जो कि सशक्तिकरण का एक रूप है, ऊर्जा की प्रचुर आपूर्ति हमें पूर्णता सौंदर्य और सच्चाई के साथ हर काम करने में सहायता करती है।

हर किसी के सपने और आकाक्षाएं होती हैं, लेकिन इन्हें समग्रता से पूरा करने के लिए शरीर मन और आत्मा की विशेष तैयारी की आवश्यकता होती है। कभी-कभी, सभी व्यावहारिक और तकनीकी ज्ञान, धन, अच्छी तरह से तैयार किए व्यक्तित्व की अपेक्षा, लोगों को लक्ष्यों की प्राप्ति असंभव लगती है। कहीं न कहीं कुछ छूट गया लगता है. जीवन जो एक हर्षोल्लास उत्सव रूप माना जाता है, एक बोझ की तरह महसूस होता है, बिना किसी लक्ष्य के लगभग अर्थहीन।

हमारा पूरा अस्तित्व उस कोषाणु पर आधारित है जो प्रत्यक्ष रूप से सार्वभौमिक चेतना द्वारा संचालित है। जब हम सेलुलर इंटेलिजेंस यानी प्राकृतिक नियमों के अनुसार कार्य नहीं करते हैं, तो हम अपने वास्तविक स्वयं से अलग होकर विपरीतता में रहते हैं।

जागृति तकनीकों के माध्यम से नहीं होती है। न ही स्वयं को अनुभूत करने के उद्देश्य से कुछ नियमों पंथों व प्रचार की विधियों को अपनाने से । यह केवल सत्य और व्यक्तिगत पूर्णता की आकांक्षा द्वारा प्राप्त की जाती है। स्वयं के साथ एकात्म होना और बाद में उच्चतम धर्म - मानवता की प्राप्ति के लिए एक आदर्श समाज बनाने हेतु दुनिया में उसके परम सत्य के प्रतिबिंब को देखना।

हम इस भौतिक दुनिया को त्यागने के लिए नहीं हैं, बल्कि अपने जीवन को भरने वाले उस अज्ञान-अंधकार और पाखंड को अस्वीकार करने के लिए हैं, जबकि हम अपने सच्चे स्व से नहीं जुड़े होते। परमात्मा हमारे भीतर ही हैं; हमें इस वास्तविकता को प्रकट करना होगा। विकास हमेशा प्रकाश की ओर होता है।

परमात्मा की वास्तविक प्रकृति प्रेम प्रकाश शक्ति व आनन्द है। पृथ्वी पर एक दिव्य जीवन भिन्‍न सा होने की आवश्यकता नहीं है जिसका आम पृथ्वी के अस्तित्व के साथ कुछ भी लेना देना नहीं। पर ऐसा मानव जीवन और मानवीय गुणों को ग्रहण करता है।

प्रणाम जिज्ञासुओं की सहायता हेतु निम्नलिखित उपायों द्वारा सहायक होता है-

इंटरैक्शन - व्यक्तिगत और सामूहिक विनिमय सत्र। प्रतिभागियों को कुंठाओं आघातों और भय से राहत देने हेतु। जब तक कोई सांसारिक ट्यूनिंग के इन 'भारों' से मुक्त नहीं हो जाता है, तब तक कोई भी व्यक्तिगत विकास प्राप्त नहीं कर सकता है।

ध्यान - हमारे पूरे अस्तित्व को ऊर्जा प्राप्त करने, विषाक्त पदार्थों से शरीर, मन और आत्मा को राहत देने और शुद्धि के लिए अग्रणी है।

बिना शर्त देने और साझा करने - व्यावहारिक जीवन में समस्याओं को सुलझाने के लिए एक दूसरे की मदद करना, परिणामस्वरूप सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन दोनों को संतुलित करना है।

पाठ्यक्रम का संचालन - शरीर, मन और आत्मा को ठीक करने के संबंध में। दस सूत्रीय प्रोग्राम के माध्यम से संपूर्ण मानव तंत्र को जानना और समझना।

सच्चा ज्ञान प्रसारित करना - हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों और सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों का ज्ञान सरलतम रूप में उपलब्ध कराना प्रणाम वेद, सत्य और विज्ञान, तथ्य के विलय की आकांक्षा रखता है।

वार्ताओं का आयोजन - स्कूल, संगठनों आदि जैसे विभिन्न स्थानों पर, सामान्य रूप से जीवन के बारे में अज्ञानता को दूर करना। जीवन की गुणवत्ता में सुधार और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देने हेतु।

एक शक्ति बनाने के लिए- एक जैसे विचार वालों की, जो अपने देश के लिए भाव रखते हैं जहां कहीं भी अज्ञानता और अपूर्णता फैली है उसे मिटाने के लिए काम करने को तत्पर हैं।

- प्रणाम

120-250