सुपात्र को ज्ञान

हे अर्जुन ! तुम मुझसे कभी भी ईर्ष्या नहीं करते हो तभी तो तुम्हें सब गुह्यतम ज्ञान, विज्ञान सहित कहूँगा और तुम इसी संसार में रहकर इसी संसार के सब बंधनों से मुक्त हो जाओगे। प्रभु भी ईर्ष्यारहित पर ही कृपालु होते हैं।
जब सारे रहस्य ज्ञात हो जाएंगे तो अंधकार स्वत: ही कट जायेगा। ईर्ष्या मोह का कारण है। ईर्ष्या अपनी व्यक्तिगत क्षमता को ना पहचानना है और यदि पहचाना भी तो उसके लिए कार्य करने का सतत प्रयत्न नहीं है। आलस्य या प्रमाद हावी है। निरन्तर तपस्या नहीं है, बार-बार तपस्या भंग होती रहती है सांसारिक भोगों में रुचि व लिप्तता
मेरे पास वही आकर टिक पायेगा
जिसके कर्म कट चुके हैं
जिसके कर्म कटने बाकी हैं
वह खुद ही कट जायेगा
वही टिक पायेगा जो
पूर्ण समर्पण में आकर
इसी आस्था में स्थित रहेगा कि
कर्म तो स्वत: ही धुल जाएंगे
जब प्रणाम की शरण में हूँ
ऐसा ही मानेगा
प्रणाम कर्म की प्रेरणा है
कर्म करोगे
प्रणाम के सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश के
प्रसार को
तो स्वत: ही
प्रकाशमय होओगे ऊँ
प्रणाम कोई व्यक्ति विशेष या
धार्मिक संस्थान नहीं
यह तो प्रत्येक महान आत्मा के लक्ष्य
सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश का प्रसार
करने का पुरुषार्थ है
वो ही जो कि प्रभु का भी कर्म है
जो मनु शरीर से सम्पन्न हो रहा है
प्रभु ध्यान धरयो मीन शरीरा
जय जगदीश हरे!
जय सत्येश्वर

  • प्रणाम मीना ऊँ

प्रातिक्रिया दे