किसी को प्रभावित करना या करने की चेष्टï करना, पाखंड, ढोंग दिखावट व झूठ है। शायद कोई आपसे प्रभावित हो भी जाए पर ऐसे प्रभावित कर देना अधिक देर नहीं ठहरता, तो यह भी एक प्रकार का ऊर्जा का हनन व प्रदूषण है।
जब हम दूसरों को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं अपने व्यक्तित्व बुद्धि चातुर्य या किसी अन्य उपाय से ताकि प्रभावकारी छाप छोड़ें तो हम अपने ही बनाए मकड़जाल में उलझ जाते हैं जो कि उत्थान के लिए बहुत ही विनाशकारी है।
जब हम प्रभाव डालने का प्रयत्न करते हैं तो हमारी ऊर्जा व्यय होती है सारी शक्ति मनोनुकूल प्रभाव उत्पन्न करने में लग जाती है। हम एक कृत्रिम व्यक्तित्व बना लेते हैं अपने आभामंडल में जो कि हमारा सत्यरूप नहीं होता, ओढ़ा हुआ ऐसा बनावटी स्वरूप, व्यक्तित्व जिसे बुद्धि भी नहीं जानती।
जब हमारी सारी शक्ति इस प्रभावित करने वाले व्यक्तित्व को बनाने में लग जाती है तो हमारा सत्य स्वरूप असुरक्षित हो जाता है और इसी असुरक्षा के क्षणों में हम जिसे प्रभावित करना चाह रहे होते हैं या प्रयत्न कर रहे होते हैं तो उनके व्यक्त्वि के स्वरूप से संयुक्त हो जाते हैं और इस प्रक्रिया में हम उनके विचार आत्मसात करके उनसे ही अनजाने में प्रभावित हो जाते हैं। इस तरह से प्रभावित करने की अपेक्षा हम ही प्रभावित हो जाते हैं। जो जब परिलक्षित होता है तब हमारी बुद्धि भी नहीं जान पाती ना हमें स्मृति रहती है। यह प्रभावित होने की प्रक्रिया बहुत ही सूक्ष्म होती है। यह सब सूक्ष्मतम, Subtlest, स्तर पर होता है।
यह दर्शाता है कि मानव एक पारे की तरह तरल लिजलिजा ऊर्जा पुंज है। बिना जाने अनेक लेन देन इस मानव संरचना में होते रहते हैं भाग्य व कर्म चक्र बनाने को। अनजाने में भविष्य में हमारा व्यवहार इस प्रकार के प्रभावों से प्रभावित होता है या होनी के होने को निमंत्रण देता है।
- प्रणाम मीना ऊँ