प्रणाम-सत्य की वो शक्ति जो अतीन्द्रिय मानव जैसा कर्म, सम्पूर्ण मानव जाति को महानता, दिव्यता की ओर ले जाने का, करने के लिए तत्पर और उद्यत है। सत्य की यह ओजमयी दिव्य शक्ति केवल आन्तरिक दिव्यता जागृत करने और औरों का भी उत्थान करने से प्राप्त होती है अवतरित होती है।
कोई भी गणना योजना विधि या तकनीक मानव को महान नहीं बना सकती यह तभी होता है जब ब्रह्माण्डीय युग चेतना, Universal era Consciousness, से जुड़ने पर एकात्म और एकत्व का भाव जागे। ऐसा भाव प्रसार होने पर, सत्यधर्म की एक ऐसी बलवती शक्ति का प्रस्फुटन होता है जो इस सर्वाेत्कृष्ट उद्देश्य का आधार बनती है-कि समस्त विश्व को मानवता हेतु शोभामय व सौन्दर्यपूर्ण स्थली बनाना है। वसुधैव कुटुम्बकम् का वेद वाक्य सत्य सिद्ध करने की दिशा में अग्रसर होना है। सत्यात्मा का मानव धर्म सुनिश्चित व स्पष्ट होता है। किसी भी व्यवधान का कोई भी, रत्ती भर भी महत्व नहीं, अर्जुन की तरह केवल आँख ही आँखï सूझती है।
केवल परम आत्मा के संकेत व निर्देश ही समझ आते हैं, मन के दिए जलते हैं और आगे ही आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करते जाते हैं। इसी से तो वो अवतार कहाते हैं जो अपने लिए कहाँ जी पाते हैं। मानव को दिशा देने में ही जी जाते हैं।