प्रकृति का खेला

प्रकृति का खेला

प्रकृति सदा ही गोलाकार
गोलाइयाँ लिए
रचना रचती है
सारे ब्रह्माण्डीय नक्षत्र सितारे ग्रह
गोलाइयाँ लिए हैं
अपने आप जलते-सुलगते ठंडे पड़ते बिगड़ते
और बिगड़कर
फिर-फिर बनते
बनते ही रहते
सदा कर्मरत प्रकृति की प्रगति औ’
उत्थान प्रक्रिया में संलग्न
संघर्ष करते अनवरत
अपनी सत्ता को मनवाते से
अपनी-अपनी सामर्थ्यानुसार
ब्रह्माण्ड को सौंदर्यमय बनाते से
सम्पूर्ण सृष्टि की अनन्त व्यवस्था में पूर्ण योगदान देते
जीवंत रहकर जीवंतता प्रदान करते
कांटे ही सीधे होते हैं
अकड़े खड़े रहते हैं
टूट जाएँ पर अकड़ नहीं जाती
चुभने पर देते हैं बस टीस ही
पर देखो तो प्रकृति माँ की उदारता
उन्हें भी पूर्ण पोषण दे
एक कर्म दे दिया
सुंदर फूलों और जड़ी-बूटियों की
सुरक्षा का
प्रकृति का स्वरूप
बिगाड़ने वालों को
सज़ा का
प्रकृति का खेला अनूप
नहीं अस्तित्व विहीन
किसी का भी स्वरूप
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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