गुरु की विडम्बना

गुरु की विडम्बना

मैं मीना मूर्ख महान कंघे बेचूँ गंजों को
आइने बेचूँ अंधों को ज्ञान बेचूँ अक्लमंदों को
जिनकी अक्ल हो गई है मंद
प्यार बाटूँ कृतघ्नों, thankless, को
मान करूँ चाण्डालों का
कर्म का पाठ पढ़ाऊँ कर्महीनों को
दया करूँ राक्षसों पर
बुलाऊँ धोखेबाजों को घर
मोरी अक्ल गई घास चरने मूर्खों का पानी भरने
भैंस के आगे बीन बजाऊँ गधों के आगे मुस्काऊँ
कभी-कभी सोचूं गुरुओं की बाबत
क्या होती है उनकी हालत
शिष्य नचाएँ मंच बाँध कर
गुरुजी नाचे उनकी ताल पर
गुरु बन रहे मूर्ख
शिष्य पूरे के पूरे धूर्त
जहाँ कहा ज़रा-सा गुरुजी आप महान
आशीर्वाद बाँटे गुरु भर-भर झोली
ढेर-सा प्रसाद औ’ मधुर-मधुर बोली
शिष्य होते धन्य पाते प्रसाद
आ जाएँगे फिर जब होगा विषाद
आशीर्वाद ले चम्पत हो जाते
अपने-अपने खेलों में रम जाते
गुरु बिचारे करते रहते तैयारी पूजा की पाठ की
ऊर्जा शक्ति प्राप्ति की प्रकाश प्रसार की
ताकि आवें घूम-फिर कर जब भी
तो स्वागत हो सत्कार हो शिष्यों की बारात का
गुरु करें मुजरा शिष्य देवें ताली
जिन्हें न लुभाया वही देवें गाली
गुरु ही सबसे खाली
बाकी सब बहुत ही व्यस्त
गुरु की कमियाँ बाँच-बाँच कर
पीठ पीछे करते उसकी छवि ध्वस्त
सामने आकर मान दिखाते
तरह-तरह से भरमाते
ताकि खुश होकर और अधिक रुचि से
प्रीति से गुरु करे उनका मनोरंजन
वो जैसे बेच रहा हो दंतमंजन
देख-देख दुनिया के रूप
समझ आ गया ये खेल अनूप
अब शिष्य बहुत ही चतुर
गुरुघंटाल हो गए हैं
गुरु बना हुआ मूर्ख अपनी दुनिया भूल
दस काम छोड़
साधना का आनन्द त्याग
उसके लिए श्रम करता
जो अपनी ही चाल चलता
इधर गुरु को मूर्ख बनाया
उधर दुनिया को रिझाया
ये गुरु छूटा तो और बहुत मिलेंगे
इसी के पीछे थोड़े ही लगना है
ये तो थोड़ी देर का मन भरना है
अगर गुरु होता है नाराज
तो भी क्या करना है
बाहर दुनिया से भी तो मिलती है नाराज़गी ही
आदत कैसे बदलेगी नाराज़गी बटोरने की
क्योंकि यही तो वजह मिलती है प्रश्न पूछने की
अब प्रश्न पूछना भी बहुत जरूरी है
क्यों क्यों क्यों
सब गुस्सा करने वालों की मजबूरी है
हमीं से नाराज़ होना
हम तो एकदम सही हैं
सब कुछ अपने हिसाब से
ठीक और अच्छा ही तो करते हैं
पर और सब हमसे ही क्यूँ गलत करते हैं
इस और सबों में गुरु जी भी
एक दिन आ जाएँगे
आज नहीं तो कल गुरु छोड़ने के बहाने बनाएँगे
सब ऐसे फिसल जाएँगे जैसे मुट्ठी में रेत
बचे हुए विरासत के नाम पर
ओ गुरुजी तुम्हें ही बेच खाएँगे
तुम्हारी गद्दी पर अधिकार जमा
पीढ़ी-दर-पीढ़ी व्यापार बनाएँगे
तुम करो उनके मन की तभी हो गुनी
वो करे तुम्हारे मन की दूर कर लो यह खुशफहमी
तो चतुर शिष्यों को प्रणाम
जो सीख तुम्हारी ही बात
तुम्हें ही बताते तुम्हारी ही जात
यही सत्य है, यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

प्रातिक्रिया दे