बीति ताहि बिसार दे
आगे की सुधि लेइ
मुक्की फसलाँ दी राखी ते आई बैसाखी
मुझे भी आज ऐसा ही लग रहा है जैसे
नया मन नया तन
नए दिन नयी रात
जो बीत गया उसकी अब करूँ क्या बात
जि़न्दगी की यही सौगात
जो न चल सके साथ थामकर मेरा हाथ
प्रेम का क्या होता है स्वाद
जान न पाएगी उनकी जात
पर अब मन न उदास हो
जैसे कोई आसपास हो
प्रभु मिलन की आस हो बाकी एक ही प्यास हो
कृष्ण गोविन्द हरि का ही प्राणों में वास हो
सारा जग सुवास ही सुवास हो
मन ही मन प्रकाश हो
मोहन की मनमानी मीना की कहानी
जिसने जानी उसने मानी
प्रभु की वाणी गीता सुहानी
यही मीना की प्रीत पुरानी
प्रीत पुरानी सदियों पुरानी
सृष्टि ने जानी
मुनियों ने बखानी
कैसे जाने प्राणी प्रीत पुरानी
रीत पुरानी प्रेम कहानी
जो सकल ब्रह्माण्ड समानी
कण-कण कहे यही कहानी
बस प्रेम ही प्रेम तो है
कृष्ण गोविन्द हरि होने की निशानी
और क्या प्रमाण चाहिए तुझे ओ प्राणी
प्रेम की प्रेम पर ही होती है
खत्म कहानी
प्रेम की कहानी
प्रेम पर ही खत्म होनी चाहिए
अगर उसे प्रेम पर
न किया जाए खत्म तो…
बात बहुत लम्बी हो जाती है
जि़न्दगी जैसे खिंचती चली जाती है
घिसटती चलती है
बेनूर-बेमज़ा बेमज़ा बेनूर
प्रेम में आई बिछुड़न को
बिछोह को भी प्रेम समझना ही
प्रेम से प्रेम का मिलन है
यही तो मीरा ने पाया और गाया
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
मैं म्हारो मन प्रभु संग जोड्यो
हरि संग जोड्यो सबन संग तोड्यो
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ