आह्वान

पराशक्ति यहीं है
मैं पूर्ण समर्पण में स्थित हुई
तुम्हारे साथ विकसित हो रही हूँ
तुम्हारे लिए विकसित हो रही हूँ।

सच्चे जीवन की ओर जागृत हो जाओ।
अहंकार त्याग, पवित्र प्रेम के पंखों के नीचे आओ।
यही पूर्ण आनन्द का स्रोत है।

पूर्ण समर्पण में कोई प्रतिशत नहीं। शत-प्रतिशत ही चाहिए। कालचक्र फिर घूमा है। श्रीकृष्ण चेतना तथा जगत मातृ चेतना एक ही शरीर में है। जो समय की मांग होती है वही प्रकृति उपलब्ध कराती है। उसे समझने जानने मानने को विवेक चाहिए। क्योंकि वही समयानुसार कर्म की प्रेरणा व शक्ति का स्रोत है।

परमानन्द है।
यही सत्य है
!!

  • प्रणाम मीना ऊँ

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