दस द्वार मानव शरीर के जो नजर आते हैं
कुंजी के – जिनकी व्याख्या बहुत – आकार के – है शास्त्रों में
सब जानते हैं – पर एक द्वार
जहाँ से दिव्यता आती है, शरीर में समाती है और
तन-मन-मस्तिष्क इस सम्पूर्ण शरीर को माध्यम बना
अपनी दिव्यता से मानवता को उत्थान का रास्ता दिखाती है
वह द्वार कभी नहीं बखाना गया।
इसी द्वार से ब्रह्माण्ड से नाता जुड़ता है। ब्रह्माण्ड स्वयं पढ़ाते हैं ज्ञान देते हैं और इसी द्वार से प्रवेश कराते हैं
वह सब अलौकिक विचार जो सृष्टि के, मानवता के व
मानव के उत्थान में सहायक होते हैं
मानव को दिव्यता की ओर ले जाकर
अंत में दिव्य रूप बनाते हैं।
पहले हुए अवतारों ने दिव्य पुरुषों ने जहाँ तक
मानव उत्थान का कर्म लाकर छोड़ा वहीं से
उत्थान कर्म आगे बढ़ता है
क्योंकि इसी द्वार से उनके विचार सत् चित वाले शरीर को माध्यम बनाकर सृष्टि के कार्य को सुचारु रूप से आगे बढ़ाते हैं।
यही योगदान है
हर युग के अवतार का
जुड़े कड़ी से कड़ी
बने कल्कि अवतार
यही सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ