उस पर व्यय करो जो सुपात्र हो !
अब सुपात्र कौन है यही जानना-समझना ही ज्ञान है
सही मानव उन्नत मानव आपको सामने वालों को
स्वत: ही अपने समकक्ष कर लेता है।
यही सत्संग माहात्म है।
कौन गुरु कौन शिष्य सब छलावा है
एकतरफा रास्ता नहीं।
कौन लेता है कौन देता है सब माध्यम हैं।
अपनी-अपनी सीढ़ी पर खड़े ब्रह्मïज्ञानी को
ब्रह्मज्ञानी स्वत: ही पहचान लेता है।
तुम जिस सीढ़ी पर पहुँच गए हो जहाँ खड़े हो
वहीं से आगे ले जाने वाला गुरु स्वत: ही मिलता जाता है
वो गुरु किसी भी रूप में हो सकता है।
यही सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ