जागरूकता व चैतन्यता का मर्म

जागरूकता व चैतन्यता का मर्म

हे मानव ! अब इनका मर्म जानकर इन पर ध्यान लगाकर कर्म करने का समय आ ही पहुँचा है। पिछले कुछ दशकों से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत काम हो रहा है। लगभग सभी वैज्ञानिक व आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धतियों द्वारा शरीर मन व बुद्धि को संयत स्वस्थ व सकारात्मक रखने का अथक प्रयास हुआ है। लेखन व अन्य प्रचार माध्यमों से भी इनसे सम्बन्धित सभी जानकारियाँ व सूचनाएँ उपलब्ध कराई गईं हैं। लगभग सभी कुछ कहा सुना व लिखा जा चुका है।

अब समय है चेतना, consciousness, और जागरूकता, awareness, पर काम करने का। इसका प्रारम्भ केवल आन्तरिक यात्रा द्वारा ही सम्भव है। अपना सत्य सभी जानते हैं पर उसको स्वीकारने का साहस कर पाना ही आन्तरिक यात्रा के शुभारम्भ का आधार है तत्पश्चात निरन्तर ध्यान साधना अपेक्षित है।

मानव ने अपनी चेतना की आवाज़ को सुनकर भी अनसुना करने का इतना अभ्यास कर लिया है कि चेतना की आवाज़ स्पष्ट सुन पाना भूल ही गया है। बाह्य वातावरण समाज घर संसार अपनी मनोवृत्तियों व सोचने की विधि आदि से इतना प्रभावित व ग्रसित है कि उसे चेतना और मनोबुद्धि से उत्पन्न आवाज़ का अन्तर ही भूल गया है। अब समय आ गया है कि मानव इनका अन्तर स्पष्ट जाने। चेतना की सत्यमयी आवाज़ को मनोबुद्धि की चतुराई भरी सलाह या निर्देशों से सर्वथा भिन्न जानें। चेतना की आवाज़ जान सुनकर कर्मरत होना ही होगा यही चैतन्यता को उभारने की साधना है। यही कालगति की माँग है।

चेतना की सही पहचान, अपने अन्तर्तम स्तर तक पहुँचकर, अन्दर झाँककर बाह्य चेतनता से मुक्त होकर पूर्णतया शून्यता अनुभव कर, अन्तर्मन से उभरी आवाज़ को सुनने की साधना से ही होगी।

जब आप पूर्णतया शान्त व निर्लिप्त होकर अपने स्व के अन्त:करण तक पहुँचते हैं तब जो प्रतिध्वनित हो वही आत्मा की आवाज है पर फिर भी यह समझना बहुत कठिन है कि यह बुद्धि की या चेतनतत्व आत्मा की आवाज़ है। इसके लिए आरम्भ में कुछ कठिन साधना करनी ही होगी।

जब लगे आपके अन्तर से कुछ संदेश व निर्देश उठ रहे हैं तो उनको ब्रह्मवाक्य समझकर उनका पालन करो, उन पर कर्म करो। इस प्रकार पालन करने पर यदि वह विवेक जगाते हैं वातावरण शुद्ध शान्त व आनन्दमय बनाने में सहायक हैं और उसमें आपको अपना रूपान्तरण व उत्थान दृष्टिगोचर होता है तो समझो आपने चेतना की बात को सुनने की क्षमता जगानी प्रारम्भ कर ली है।

चेतना की आवाज़ कभी भी औरों के भावों को सन्तुष्ट करने या उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरने के लिए नहीं है। जब भी अन्दर से आवाज़ उठे सच्चाई से उस पर चिन्तन मनन करो कि कहीं वो अहम् या कर्ताभाव की पुष्टि या दूसरों की तुष्टियों के लिए तो नहीं है या यह अनजानी आवाज़ आपकी कर्महीनता, shortcut, ढूंढ़ने की प्रवृति की उत्पत्ति तो नहीं है। इस प्रकार धीरे-धीरे ध्यानयोग व कर्मयोग द्वारा चेतना की आवाज़ और बुद्धि की आवाज़ में अन्तर समझ आने लगेगा।

यह पहली सीढ़ी है इसके बाद ज्ञान व कर्म की सही परिभाषा समझ आने लगेगी। इसके बाद जागरूकता उत्पन्न होगी और तब समय की मांग क्या है तथा परम चेतना आपको किस लिए माध्यम बना रही है यह समझ आने लगता है। इसलिए पहले चेतना जागरूकता व जागरण इनका सही अर्थ जानें और इनकी साधना करें क्योंकि यह अनुभूति का विषय है तथा मानव की व्यक्तिगत क्षमतानुसार उत्थान का माध्यम हैं। पर एक वास्तविक जागृत और परमचेतना से योग युक्त मानव से सम्पर्क द्वारा यह सहज व स्पष्ट हो जाता है क्योंकि वह ट्राँसफारमर की तरह जानता है कि आपको किस प्रकार से संकल्प धारणा और उसके विकास हेतु ऊर्जा शक्ति संचय की प्रेरणा देनी है।

यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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