हे मानव ! पहले सत्य धर्म तो जान, धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो
यह नारा लगाने वालों ने जाने अनजाने ही मानवता व सत्य धर्म का काफी अनिष्ट कर दिया है। लोग सच्चा धर्म क्या है यह भूल ही गए हैं। ”नाश” किसी का भी करने वाले या इसकी गुहार लगाने वाले हम कौन?
आश्चर्य तो तब होता है जब बड़े-बड़े ज्ञानी ध्यानी गुणी मानव इन शब्दों का प्रयोग करते हैं। यह जानते हुए कि शब्द ब्रह्मास्त्र होते हैं अनुचित प्रयोग से घूमकर, boomerang, वार करते हैं। अपने में सत्यता है तो अपनी लाईन बड़ी करो बड़प्पन दिखाओ प्रभुता लाओ असत्य स्वत: ही अपनी स्थिति समझ जायेगा।
हे मानव! पहले यह ज्ञान तो जान कि अधर्म है क्या। अनजाने व अबूझे अधर्म के नाश के चक्कर में अपने ही दिव्य अस्तित्व का नाश कर रहा है। सूर्य अपनी महानता का ढिंढोरा नहीं पीटता जब निकलता है तो स्वत: ही सब जग प्रकाशित हो जाता है। याद रख-
सत्य का प्रसार होता है
झूठ का प्रचार होता है
वैसे भी यह सूक्त अधर्म पर धर्म की विजय है और पांच हजार साल पहले द्वापर युग में श्रीकृष्ण द्वारा प्रेषित कर प्रमाणित किया गया। वही उस युग की मांग थी संभवामि युगे-युगे। तब धर्म अवश्य विजयी हुआ पर उसके बाद शनै: शनै: सही सनातन धर्म का हृास ही होता गया।
जिसमें सत्य धर्म स्थापित किया गया मानव को सही धर्म का ज्ञान विज्ञान समझाया गया। श्री कृष्ण को जगद्गुरु माना गया। मानव के दिव्य स्वरूप की विराटता का दर्शन कराया गया ऐसी गीता को कौन जी रहा है। सब जानते हैं कि क्या हाल है गीता का, महान पाठ पढ़ाने वाले श्रीकृष्ण के मंदिरों का। कर्म का पाठ पढ़ाने वाले के मंदिरों में ही सबसे अधिक कर्महीनता छाई है।
आज कलियुग में अधर्म पर धर्म की विजय का युद्ध नहीं है। सत्य और असत्य की बात है। क्योंकि धर्म तो अब सैकड़ों हो गए हैं किस धर्म विशेष को ऊंचा कहें किसको नीचा इसी द्वंद ने मानव जाति को आक्रामक बना दिया है। पहले सत्य सनातन शाश्वत धर्म, सही समय पर सही कर्म का प्रत्यक्ष प्रमाण बनाना होगा। इसका जीवंत उदाहरण बनकर दिखाना होगा तभी सत्य और असत्य की दिव्यता और आसुरिकता का भान होगा।
हे मानव बंद कर नाश-विनाश की उक्तियां केवल अपने अस्तित्व की सत्यता जान, आंतरिक यात्रा कर अपने सत्य में जीना आरम्भ कर। बड़े-बड़े सम्भाषण प्रवचन या बौद्धिक उल्टियां करनी छोड़ दे।
धर्म की रक्षा करने का कर्ताभाव व दंभ छोड़। सत्य सनातन धर्म की सत्यता और महानता को कोई भी नकार नहीं सकता न ही रोक सकता है वो तो शाश्वत था, है और रहेगा। वह सर्वशक्तिमान सर्वविद्यमान और सर्वज्ञाता है सदा सुरक्षित है सही समय पर अवश्य किसी माध्यम द्वारा अवतरित हो उदाहरण बनता होता है। तो अपने पर काम कर ओढ़ी हुई छवियां, images, और पुस्तकीय ज्ञान छोड़ï- और सत्य सनातन धर्म को पहचान।
वेसे भी भारतीय वैदिक परम्परा सत्यमय ‘सूक्त’ देने की है जीने और मार्गदर्शन देने की है नारेबाजी की नहीं। तू सत्यमय होगा तभी सत्य को पहचान कर उससे जुड़कर सत्य प्रेम व कर्म की किरणों को विस्तीर्ण कर पाएगा। सत्यधर्म का प्रकाश करेगा तो सत्य सनातन धर्म तेरी रक्षा करेगा, तू कौन है रक्षा करने वाला। धर्म, धर्म में जीने वालों का संरक्षक है।
यहीं है सत्य
यही है सत्य
- प्रणाम मीना ऊँ