युग परिवर्तन हेतु सत्य ही आधार

हे मानव !

बहुत हो चुका भिन्न-भिन्न धर्मों का खेल, अब मानवता के धर्म की बारी है। मानव मानवता और प्रकृति, इन्सान इन्सानियत और कुदरत की शाश्वत न्याय-व्यवस्था, इतना-सा ही तो खेल है और तू सदियों से किन-किन चक्रव्यूहों में घूम रहा है, अब तो मकड़जाल से बाहर निकल। निकलना ही होगा असत्य चाहे अपनी पूरी शक्ति लगा ले, सत्य का सूर्य उदय होगा ही।

धर्मों कर्मकाण्डों व पूजा-अर्चना पद्धतियों का कार्य है एक सही मानव बनने के लिए शान्ति और शक्ति प्रदान करना। सही सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार करना ताकि मानव अपना तथा औरों का भी उत्थान करे न कि स्वर्ग के टिकट बेचने का प्रबन्ध करे। यदि कर्मकाण्डों व अनुष्ठानों का उपयोग अपनी ही हठी मान्यताओं से युक्त बुद्धि के अनुसार किया जाता है तो वह मानव की उत्थान प्रक्रिया केमार्ग में मील के पत्थर की तरह गड़े तो रह जाएँगे, उन पर लिखे अंक भी समय आने पर धुँधले पड़ जाएँगे, मिट जाएँगे पर सत्य लक्ष्य कदापि प्राप्त नहीं होगा। जैसा कि गीता में स्पष्ट कहा है- देवी देवताओं को भजने वाले उन्हीं को प्राप्त होंगे, मेरे परम स्रोत को, Supreme source, कदापि नहीं।

यदि यही ज्ञान नहीं हुआ कि अच्छा सच्चा और खरा इन्सान होना क्या होता है तो अपने पर कैसे और क्या काम करोगे। एक बार अपना सत्य देखना आ जाए तो इस रहस्य की पर्तें स्वत: ही खुलने लगती हैं। धीरे-धीरे मानव की सभी ओढ़ी हुई छवियाँ विलुप्त होने लगती हैं तथा मानव अपने से साक्षात्कार कर धरती पर अपना ध्येय, mission, जानकर निश्चिंत व निर्भय होकर अपना जीवन उसी को अर्पित कर देता है चाहे कोई माने या न माने, साथ आए या न आए।

ओढ़ी हुई छवि, acquired image, कर्तापन या अहम् केहोते हुए कभी भी मिशन या ध्येय स्पष्ट नहीं हो सकता। अगर अपनी समझ से कोई ध्येय बना भी लिया तो बुद्धि की उत्पत्ति होने के कारण उसकी पूर्ति के लिए बुद्धि की जोड़-तोड़ ही काम में ली जाती है। उन्नत चेतना द्वारा प्राप्त संदेशों व उद्देश्यों के लक्ष्यों की प्राप्ति में युग चेतना ही मार्गदर्शन करती है और साधन भी जुटाती चलती है।

ऐसे ध्येयों जिनमें केवल धन-दौलत तकनीकों और बुद्धि की युक्तियों केसहारे या भरोसे पर ही सफलता की अपेक्षा की जाए कभी भी क्रांति आन्दोलन या अभियान में परिवर्तित नहीं हो पाते। क्योंकि इसके लिए सत्यता से परिपूर्ण आत्मबली, कर्मयोगी मानव का आधार व प्रकाश अपेक्षित है।

यही है कालचक्र की युग परिवर्तन हेतु रूपान्तरण की प्रक्रिया को गति व पूर्णता देने के लिए अवतरित सत्य मानव का सत्य।
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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