हे मानव! मत कर छीना-झपटी मत बन जा कपटी। भय रौब या लालच दिखाकर चतुराई से कुछ भी हथिया लेना कभी भी कल्याणकारी हो ही नहीं सकता। कागज की नाव कितने दिन चलेगी। गुरु दक्षिणा के नाम पर एकलव्य का अंगूठा ही मांग लेने वाले और अधर्म के पक्षधर सभी गुरुओं, आचार्यों की महाभारत युद्ध में क्या गति हुई सभी जानते हैं।
एक ओर तो तू स्वर्गिक शान्ति व आनन्द चाहता है, दूसरी ओर भ्रष्टाचार में रमता है, उस पर तुर्रा यह कि उसी भ्रष्ट पैसे से पंडितों के चक्करों में पड़कर स्वर्ग के टिकट खरीदता है या लंबी-लंबी यात्राएं और बड़ी-बड़ी पूजाएं अनुष्ठान आदि कर ढोंगी पंडों को खिला-पिला कर पवित्र नदियों में डुबकियां मारता है। मंदिरों में भ्रष्टाचार की कमाई का करोड़ों-अरबों रुपयों का चढ़ावा चढ़ता है। भ्रष्टाचार के अनेकों रूप कलियुग में अपनी चरम सीमा पर पहुंच गए हैं।
1. शारीरिक : कुत्सित घृणित भयावह अप्राकृतिक शारीरिक तुष्टियों में, आलस्य कर्महीनता व पुरुषार्थ का नितांत अभाव।
2. मानसिक : कपट, षड़यंत्र दूसरों को तुच्छ व नीचा दिखाने, यंत्रणा या बदला लेने की युक्तियों में बौद्धिक तुष्टियों में।
3. आर्थिक : स्वार्थी लोभी प्रवृति व आधिकारिता का प्रयोग धन के अनुचित आदान-प्रदान में अपनी हवस व अहम की तुष्टियों में।
4. आत्मिक : दूसरों को भयभीत कुंठित व आतंकित कर शक्ति प्रदर्शन की तुष्टियों में। इतने प्रकार की तुष्टियां पा लेने पर भी मानव को संतुष्टि क्यों नहीं? क्योंकि वह इस सत्य को नकार रहा है कि आनन्दमय व कल्याणकारी जीवन जीने का एक ही मार्ग है-लोभ रहित पूर्ण पुïरुषार्थ से प्राप्त शान्ति और संतुष्टि।
जो कुछ भी हमें मिलता है उसी में हमारे विकास और उत्थान का रहस्य छुपा रहता है। परम चेतना सदैव हमें उन्हीं स्थितियों व परिस्थितियों का प्रसाद देती है जो हमारी शारीरिक मानसिक व आत्मिक उन्नति का कारण बनें। परम बोधि जानती है कि मानव को जीवन सार्थक करने के लिए क्या चाहिए क्या आवश्यक व अपेक्षित है। पूर्ण कर्मठता से ही वो ज्ञान और सुबुद्धि प्राप्त होती है जो समृद्धि व शान्ति की ओर ले जाती है। तो हे मानव!
बंद कर भ्रष्टाचार का ओछा खेल,
उल्टे सीधे दौलत की रेलम पेल
जो करा दे सच्चे चित्त के आनन्द से मेल,
ऐसा सत्य प्रेम व कर्म का खेल, खेल
प्रणाम का ”माना मार्ग” अपना,
धरा को रहने योग्य बना
मोक्ष निर्वाण दर्शन की बड़ी-बड़ी बातें छोड़
इंसान को इंसान बनने की दिशा में मोड़
यही है प्रणाम का धर्म कर्म मर्म
यही सत्य जान
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ