स्मृति अनंत सागर स्मरण की बना मथनी
बुद्धि की बना काल का चक्र घुमा पाया
अनमोल रत्न ज्ञान का मानव विधान का
अवचेतन मन की परतें हटाकर ही उस प्रकाश या नूर के दर्शन होते हैं जो सब में व्याप्त है और एकत्व जगाने का तत्व है। मानव की प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया जिसका वो कारण नहीं जान पाता वो सब अवचेतन मन से ही संचालित होती है। ध्यान योग को प्राप्त मानव इस सारी प्रक्रिया के प्रति सजग होता है। क्योंकि ध्यान की साधना द्वारा वो अवचेतन मन की प्याज के छिलकों की भाँति एक-एक परत खोलकर अंदर के खालीपन तक पहुँच ही जाता है। यही उसकी अमूल्य निधि व सत्य की पूँजी है।
अवचेतन मन का बुद्धि को भान नहीं होता। पर पूर्णरूपेण खाली हुए मन में जो सत्य की सूचना रहती है उसका ज्ञान सदा ध्यानयोगी को रहता है क्योंकि उसका संसारी मन व अवचेतन मन एक हो जाते हैं, यही सच्चा विवेक जागृत होता है। जो भी प्रभु संदेश व निर्देश ऐसे ध्यानयुक्त युगदृष्टा के मन में बीज रूप में रहते हैं। उनके प्रति वो पूरा चैतन्य तो रहता है मगर लिप्त नहीं होता।
यही होती है वैराग्य और समर्पण की पराकाष्टा। ऐसी सहजता स्वत: ही प्रकृति के नियमों की सत्यता व दिव्यता स्थापित करने की प्रेरणास्रोत होती है व समय की मांग के अनुसार कर्मरत होने की शक्ति प्रदान करती है।
मनोविज्ञान जैसे अपरा ज्ञानों द्वारा अवचेतन मन की केवल पाँच या छह परतों तक ही पहुँचा जा सकता है। जबकि वास्तव में उञ्चास परतें हैं जिन्हें वेद उञ्चास मरुत कहता है। और जहाँ तक केवल दिव्य ब्रह्माण्डीय ऊर्जाएँ ही पहुँचती हैं जिनका आह्वान ध्यानयोग द्वारा ही संभव है। पर सबसे बड़ी ऊर्जा है निश्छल पवित्र दिव्य प्रेम जो एक-दूसरे का अवचेतन मन खाली करने के लिए दी गई प्रभु की रामबाण औषधि है ताकि उस खालीपन में बस वो ही वो रहे। प्रेम स्वरूप प्रभु अवचेतन मन में ऐसे रखा रहता है जैसे धरती की कोख में बीज जो आपके शरीर मन व आत्मा के कर्म प्रेम व सत्य से पोषक तत्व पाकर प्रस्फुटित होता है।
जब बीज बोते हैं तो धरती उलट-पलट कर, पोली कर, ताजी हवा लगाकर, खाद पानी देकर तैयार करते हैं। ऐसे ही ध्यान की तपस्या से अवचेतन मन में सतसंकल्प का बीज डालने के लिए तैयारी करनी ही होती है। बीज डालने के बाद बीज से कोई जबरदस्ती नहीं हो सकती और बीज फलेगा इसकी प्रतीक्षा में निष्क्रिय होकर बैठना भी नहीं है। संसार धर्म निबाहने के साथ-साथ कब उस बीज को पोषित करना है, विपरीत परिस्थितियों से बचाना है, इसी का हर समय पूरा ध्यान रखना होता है।
प्रकृति का नियम सबके लिए एक जैसा ही है- एकदम सहज सरल व कर्मपूर्ण समर्पण से। तभी तो जब बीज अंकुरित होता है तो कितना आनन्द देता है नई-नई कोपलें पत्ते शाखाएँ फूल-फल आदि प्रत्येक अवस्था उल्लासमय।
हे मानव! जान ध्यानयोग से अपने अवचेतन मन का सत्य, देख तो सही समय पर सही ढंग से बोया व पोषित किया बीज कैसे रहता है हर समय अपनी शक्ति के प्रति पूर्ण चैतन्य-बनूँगा वही जिसके लिए प्रभु ने बनाया उसी की कृपा से उगा पूर्णता पाया।
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ