प्रणाम का ‘माना मार्ग’

हे मानव !
बन इन्सान, एक पूर्ण इन्सान।
तू एक इन्सान है, प्रकृति की सर्वोत्तम कृति।


अपने इस स्वरूप का कुछ तो मान रख। सदियों से अपनी बुद्धि के फेर में तूने अपना क्या हाल बना लिया है। जरा सोच, अगर तू अपनी बुद्धि से सृष्टि के कार्यों में कमियाँ निकाल कर उन्हें अपने मन के अनुसार चलाने की सोचता तो सृष्टि का क्या हाल होता। तू जो आज जिस मानव स्वरूप में है वह सब प्रकृति की अपनी ही सटीक उत्थान प्रक्रिया का ही तो फल है और तू प्रकृति को ही जीतने के फेर में लगा है। उसका प्राकृतिक स्वरूप व सौन्दर्य बिगाड़ने और ध्वस्त करने में लगा हुआ है। प्रकृति पर विजय पाने की होड़ में अपनी ऊर्जाएँ व धन लगा रहा है। यह सब तेरी अहम् केन्द्रिता व कर्तापन की विद्रूपता ही तो है।

तू अब अपना अहम् अपने को जानने, अपना सत्य समझने में लगा। जब अपना अहम् अपने सत्य को जानने में लगाएगा तो वह स्वत: ही उस सच्ची नम्रता में बदल जाएगा। सच्चाई से काम करना प्रारम्भ कर देगा तो स्वत: ही कर्ताभाव तिरोहित होने लगेगा। अपने अहम् व कर्तापन के भावों को जीतना सबसे बड़ा उद्यम व पुरुषार्थ है।

यह उद्यम साधने व सच्चा खरा इन्सान बनने के लिए ही प्रणाम अभियान के ‘माना मार्ग’ का उद्भव हुआ है। ऐसा ‘माना मार्ग’ जिसे कोई नकार न सके। पहले स्वयं सही इन्सान-मानव बनना फिर उसकी पहचान करके इन्सानियत मानवता का धर्म समझकर उसी के अनुसार सदा उत्थान और प्रकाश की ओर उन्मुख रहना ही सद्गति का मार्ग है।

अब बदलने अर्थात् रूपान्तरण का समय आ ही पहुँचा है। यही युगचेतना की परमबोधि की पुकार और प्रकृति का दबाव है। प्रकाश की ओर उन्मुख मानव इसे समझ जाता है और अपने ऊपर काम करने की साधना, तपस्या और पूजा की तरह करना शुरू कर देता है ताकि परम बोधि, Supreme Intelligence, व प्रकृति की कसौटी पर खरा उतरे और परम चेतना, Supreme Consciousness, का प्रवक्ता या संदेश वाहक बन धरती पर युगानुसार चैतन्यता का प्रकाश प्रवाहित करे और मानव प्रकृति की व कालचक्र की प्राकृतिक उत्थान प्रक्रिया में बाधक बनकर कष्टों के चक्रव्यूहों व अपनी बुद्धि के व्यामोहों में न भटके बल्कि प्रकृति का सहयोगी व सहभागी बन अपना मानव जन्म कृतार्थ करे।

इसकी तैयारी ‘माना मार्ग’ के पथ पर आने पर स्वत: ही प्रारम्भ हो जाती है। जिस प्रकार गीता सभी शास्त्रोंं-वेदों-पुराणों आदि के ज्ञान-विज्ञान का निचोड़ है ‘माना मार्ग’ उसी ज्ञान-विज्ञान को पहले समझकर और फिर उसको जीवन में उतारकर, जीकर उत्थान का मार्ग है। सभी सम्प्रदायों, पंथों विभिन्न योग पद्धतियों व धर्मों के सत्य का तत्व है जो समुदायों में बाँटना नहीं एकत्व के भाव में आना बताता व सिखाता है। साथ-साथ चलने, उगने और बढ़ने का आनन्द चखाता है व जीवन में ही मुक्ति, मोक्ष या समाधि की स्थिति जो अचेतनता या अकर्मण्यता कदापि नहीं उसको अनुभव करने का मार्ग सुझाता है। ‘माना मार्ग’ मानव जीवन के ऐसे स्वाभाविक स्वरूप की ओर अग्रसर करता है जो उमंग, उल्लास व उत्सव जैसी तरंगित करने वाली ऊर्जाओं से परिपूर्ण हो व अपने चारों ओर इन्हीं सकारात्मक व आनन्दित करने वाली ऊर्जाओं के प्रसार का माध्यम बने।

हे मानव ! तू वही तो दे सकता है जो तेरे पास है। यदि तू व्यथित भ्रमित शंकित भयभीत स्वार्थी कृपणता आदि मानसिकता के भावों केअन्धकार में घिरा है, तो तेरा आभामंडल, Aura, वही तो विस्तीर्ण करेगा और यदि तू सत्य प्रेम व कर्म से प्रकाशित है तो वही प्रकाश तेरे सम्पूर्ण अस्तित्व व आभामंडल से प्रवाहित होगा। प्रकाश सदा ही अंधकार से जीतता है। जो सत्य के प्रकाश को झूठ के अंधकार पर विजयी देखने को तत्पर हैं उन्हें पहले सत्य को देखने, समझने व मानने के लिए अपनी चेतना व संवेदनशीलता जागृत करनी होगी क्योंकि कलियुग में झूठ और सच की संज्ञा ही अहम् के नीचे दबकर मृतप्राय हो गई है।

वैसे इसकी सीधी पहचान है जहाँ थोड़ी शान्ति सन्तुलन सहजता सरलता विस्तार अपनत्व एकता प्रेरणा अहम् रहित कर्ताभाव रहित, छवि रहित उमंग प्रेम आस्था सच्चा ज्ञान आभा तेज प्रखरता खुलापन व उत्साहित करने वाला सहयोग अनुभव हो तो समझो सत्य ही उसका स्रोत है। क्षमताएँ जगाने जूझने व पुरुषार्थ की तपस्या का मार्ग बताना सत्य के ही लक्षण हैं। इसके विपरीत सब कुछ और पलायनवाद व छोटा मार्ग, Shortcut, सुझाने वाली सभी युक्तियाँ झूठ की उत्पत्ति हैं।

तो हे मानव ! इनको पहचान क्योंकि अन्तत: सत्य ही जीतता है। सत्य प्रेम व कर्म ही कलियुग में पार लगाने का प्रकाशमय मार्ग है जो मानव बुद्धि की उत्पत्ति नहीं है। कलियुग की मांग की उत्पत्ति है। शाश्वत सनातन सत्य ज्ञान और विज्ञान की ओर जाने का मार्ग है। परमस्रोत की परमचेतना का चैतन्य स्वरूप जानने-समझने का मार्ग है। अपने अस्तित्व को सत्य जान मानव जीवन सार्थक करने का मार्ग है। यही प्रणाम है, यही प्रणाम का सबको प्रणाम है।
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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