परा ज्ञान-अपरा ज्ञान से
परे जाकर ही पाया जा सकता है
और उसे किसी तकनीक में
बांधा नहीं जा सकता।
परा ज्ञान
मानव की सृष्टिï की ब्रह्माण्ड की
अनदेखी रचना का ज्ञान है
परा ज्ञान
ब्रह्माण्डीय ऊर्जाओं, उसकी व्यवस्थाओं,
कार्य प्रणालियों का, उसके रहस्यों का
तथा जड़-चेतन सभी के
अस्तित्व का ज्ञान है
यह ज्ञान स्वत: ही
सत्यात्मा के अन्तर में तब झरता है
जब वो अपने स्थूल अस्तित्व बोध से
परे हो जाता है
सभी सांसारिक ट्यूनिगों, Tunings, या
समझौतों से परे होकर सत्य से एकाकार होता है
तभी सत्य का पूर्ण साक्षात्कार कर पाता है।
‘सत्य-बोध’
हो पाता है।
- प्रणाम मीना ऊँ