हे मानव !
जीवन अत्यंत सौंदर्यवान है। थोड़ा हँस कर, थोड़ा रो कर कट ही जाता है। पर जब कोई बड़ी परीक्षा की घड़ी सामने आ खड़ी होती है तभी हमारी सच्चाई व अच्छाई दोनों की सच्ची परीक्षा होती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे पढ़ाई की परीक्षा जिन्होंने खूब तैयारी की होती है उनमें एक उमंग-सी होती है। भय भी होता है परंतु व्यथित करने वाला नहीं। जिसकी तैयारी नहीं होती वही भयभीत, व्यथित और विचलित होते हैं। इसलिए संसार धर्म निबाहने के साथ जीवन की परीक्षाओं की तैयारी ही सच्चा आध्यात्म है।
जितनी जीवन की परीक्षाएँ पास करोगे उतना ही उत्थान होता जाएगा। प्रत्येक परीक्षा महायज्ञ है इसको सफल बनाने में योगदान देने वाले प्रत्येक मानव का अपना महत्व है व धन्यवाद का पात्र है। जैसे पढ़ाई की परीक्षा में शिक्षा देने वाले से लेकर पालन-पोषण करने वाले समय से वहाँ तक पहुँचाने वाले द्रव्य व्यय करने वाले आदि सबका ही महत्व होता है।
जीवन में परीक्षा आने पर समयानुसार सहयोग, उचित मार्गदर्शन व आशीर्वाद तभी मिल पाता है जब हमने भी दूसरों की परीक्षा की घड़ियों में यथायोग्य नि:स्वार्थ सहयोग दिया हो। मुसीबतों या व्याधियों के आने पर जब शरीर यंत्र में प्राणशक्ति खींचने की शक्ति नहीं रहती तो आत्म प्रवाहक (स्पिरिचुअल हीलर) या आत्म संप्रवाहक ट्रांसफॉर्मर की तरह ऊर्जा की उचित मात्रा रेग्युलेट कर रुग्ण मानव को उपलब्ध कराता है। रोग ग्रसित को जब इंजेक्शन के द्वारा दवाई देनी होती है तो पूरे ध्यान से विशेष रसायन महीन तथा पैनी सुई से पूर्णतया शुद्ध (स्टरलाइज) की हुई सिरिंज के द्वारा शरीर में धीरे-धीरे उतारते हैं। यही ऊर्जा का भी खेल है।
एक पूर्णतया शुद्ध पवित्र किए शरीर द्वारा सुई की नोंक जैसे पैने व केंद्रित ध्यान द्वारा सुपात्र को शक्ति देनी होती है। यह कर्म देखीभाली शरीर संरचना को औषधि देने से व उपचार करने से अधिक सूक्ष्म व क्लिष्ट है क्योंकि इसके द्वारा अवचेतन मन के सूक्ष्मतम सूत्रों, तलों व अन्तरतम सत्य से सम्पर्क साधना होता है। इस ज्ञान की उपलब्धि केवल प्रभु कृपा द्वारा ही सम्भव है, क्योंकि इसकी साधना की शक्ति परम स्रोत से सीधे आशीर्वाद स्वरूप में मिलती है जो आगे आशीर्वाद देने योग्य बनाती है।
जिसने अपने कर्मों के बंधन व अंतरमन की सभी गुत्थियों को सुलझा लिया हो आत्म-साक्षात्कार पा लिया हो वह ही सच्चा आत्म प्रवाहक होता है। यही है स्पिरिचुअल हीलिंग जो ईसामसीह, साई बाबा, श्रीकृष्ण व नानक आदि महान आत्माओं द्वारा धरती पर अवतरित की गई।
इस कष्टहरणी ऊर्जा के साथ न्याय वह ही कर पाएगा जिनका तन, मन व आत्मा सबका आत्मशक्ति द्वारा पूर्ण पवित्र व शुद्धिकरण होकर एकत्व में विलय हो गया हो। ऐसे आत्मवान मानव का ध्यान सुई की नोक से भी हजार गुना ज्यादा सूक्ष्म व पैना होकर अपूर्णता को पहचान कर उस तक ऊर्जाग्नि पहुँचाकर उसे भस्म कर देता है और उसका आभास मात्र भी सुपात्र को नहीं होता वह तो केवल आशीर्वाद का फल समझ आनन्दित हो उठता है।
विज्ञान तो केवल दृष्टव्य दृष्टांतों को ही जान सकता है पर मानव संरचना के वे अनदेखे व अनछुए पहलू जो मानव को कर्म भाग्य या विधि के विधानों की पहेलियों में जीवन भर उलझाए रखते हैं उन्हीं की सत्यता की नित्यता व निरंतरता का विज्ञान, आत्म-प्रवाहक जानता है। इसी की स्थापना उसका धर्म है और इसके आनन्द की अनुभूति कराना उसका कर्म है।
यही सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ