ऐसा हो बदन कि कृष्ण का मंदिर दिखाई दे,
ऐसा हो मन कि कृष्ण ही कृष्ण सुझाई दे
हे मानव! आस्था की मान्यता का रहस्य जान। जीवन में आस्था ही सब कुछ है। आस्था अंध-भक्ति का नाम नहीं। आस्था से सदा सब कुछ मंगलमय हो इसके लिए सुपात्र होना ही होगा। सत्य-कर्म व प्रेम के मार्ग पर चलकर ही प्रभु का कृपा पात्र बना जा सकेगा। आस्था रखने के बाद भी बहुतों को प्रभु से शिकवा-शिकायत होने लगती है। ऐसा वैसा क्यों हुआ यह भाव आने लगता है। क्योंकि वे सब कुछ अपनी आस्था व प्रभु पर छोड़कर अपने ही हिसाब से कर्ताभाव में जीते रहते हैं कि हमारी आस्था है तुम पर प्रभो तुम्हें सब ठीक रखना है। मानव यह ज्ञान नहीं जानता कि जब प्रभु-कृपा बरसेगी तो दरवाजा खुला होता है या बंद। झूठ, अहंकार, स्वार्थ, मोह, अहम् आदि के अंधकार से कपाट बंद रहते हैं उसे खोल दो कृपा तो क्या प्रभु स्वयं दौड़े आएँगे।
अगर जंगल में शेर सामने आ जाए और तू भूत पिशाच निकट नहीं आवैं या कोई और प्राप्त मंत्र रटने लगे या उससे कहे कि रुक जा भई अभी शनि मंदिर हो आऊँ या ज्योतिषी से पूछकर आता हूँ कौन-सा ग्रह मनाना है तो क्या होगा? ऐसी स्थिति में तीन ही योग काम आएंगे। पहला अगर तेरी आँखों में पूर्ण पवित्र निश्छल पावन प्रेम है तो ऐसे संतों जैसे भाव वाले प्रेमयोगी मानव से खूँखार पशु भी किनारा कर लेता है। दूसरा अगर ध्यानपूर्वक तत्बुद्धि व तत्परता से परिस्थिति को माप कर ऐसा कर्म किया जाए कि वस्तुस्थिति ही बदल जाए, और बचाव हो जाए। यह कर्मठ कर्मयोगी की साधना के फलस्वरूप ही हो सकता है और तीसरा है सत्यता की शक्ति, सत्य का निर्भीकता से सामना, यह सत्य जानकर विचलित न होना कि यदि पशु का भोजन बनना ही मेरा इस समय का सत्य है तो यही प्रभु इच्छा। इस प्रकार का पूर्ण निर्भय भाव आँखों व शरीर की भाषा से प्रवाहित हो रहा हो तो भी चमत्कार होता है यही होता है सत्ययोगी का बल। अगर आप ज़रा भी विचलित हुए कि हे प्रभु पूर्ण आस्था के बाद भी ये क्या दिखा रहा है तो बात कदापि बनने वाली नहीं।
तो हे मानव! आस्था सर्वोत्तम आश्रय तो है पर लक्ष्य नहीं। सत्य, कर्म व प्रेम के समन्वय से ही प्रभु कृपा अवतरित होती है। आस्था मानव की शोभा है-ऊर्जा की कुंजी है और मानव का शरीर सत्य, प्रेम, कर्म द्वारा उसके प्रतिपादन का संयंत्र। यही है मानव तन की महानता-
बड़े भाग मानुष तन पावा
खुले रखो मन के दरवाजे
खोल दो सारे दिलों के ताले
आस्था सत्य कर्म व प्रेम की चाबी से
जीवन का यही तत्व प्रणाम बतावे।
यही सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ