हे मानव!
सत्य, प्रेम व प्रकाश का प्रसार होता है
झूठ, अंधकार व अपूर्णता का प्रचार होता है
सत्य का धर्म स्थापित करने को मैं हर युग में प्रकट होता हूँ पर पहचानेगा तो कोई अर्जुन ही। प्रत्येक अवतार अपने से पहले वाले अवतार से भिन्न होता है और अपने युग की आवश्यकतानुसार कुछ नया करता है। जैसे महात्मा बुद्ध ने संसार त्यागकर अहिंसा और वैराग्य का कुछ और ही रूप समझाया जो श्रीकृष्ण की सांसारिक लीलाओं से सर्वथा भिन्न था। पर सब अपने समय के उन्नत सार्थक सशक्त व अनुकरणीय युगदृष्टा मानव हुए।
सतयुग में पूर्णता-अपूर्णता, त्रेता युग में पाप-पुण्य, द्वापर में धर्म-अधर्म का युद्ध होता है। बुद्ध के समय अशोक ने अहंकारयुक्त सत्ता विस्तार का युद्ध किया, जीता मगर अंतर्मन के सच से हार गया। अब कलियुग में समय है सच और झूठ के संघर्ष का। विज्ञान के तथ्य ने वेद के सत्य से कटकर अपनी सारी शक्ति भौतिक पदार्थों विध्वंसकारी उपकरणों व प्रकृति पर विजय पाने में लगा दी। आत्मिक उन्नति पर ध्यान नहीं लगाया।
अब कुछ होश आ रहा है कहाँ गई सुख चैन की बंसी। भाईचारे वाला प्रेम-त्याग और सेवाभाव। प्रार्थना भी करते हैं मुसीबतों से बचना भी चाहते हैं तो बस संसार के सुखों को भोगने के लिए ही आंतरिक उत्थान व सत्य के प्रसार के लिए नहीं, वह उत्थान जो समय की पुकार पर कर्म कर मानवता की भलाई के लिए प्रेरणा दे। अब समय की मांग है सत्य की स्थापना। असत्य से असहयोग व सत्य से सहयोग की नीति अपनानी ही होगी वरना समय तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा।
अब अर्जुन लड़ेगा नहीं, युगों-युगों से लड़ता-लड़ता थक गया है क्या मिला लड़कर- मानवता खत्म, भारत की महान गौरवशाली समृद्ध परम्परा संस्कृति, रिद्धि-सिद्धि खत्म, सारे महान वैज्ञानिक ऋषि विवेकी मनीषी गुरु, विदुर नीति से चलने वाले राजा-मंत्री सब खत्म, गुरु-शिष्य की महिमामयी परम्परा, दिव्यास्त्रों व मन की शक्ति से चलने वाले ब्रह्मास्त्रों के प्रणेता सब समाप्त। नारी का आदर-सम्मान भी नहीं बचा भोग्या हो गई नारी, मति मारी गई है सारी की सारी नर-नारी दोनों की।
हे मानव! किससे लड़ना है और क्यों लड़ना है युद्ध के बाद की विभीषिका व त्रासदी तो अर्जुन ने गीता के प्रथम अध्याय में स्वयं ही बताई है। सबसे पहले अपने स्वयं के अहम् पद-लोलुपता, झूठ, पाखंड, ढोंग के राक्षसों से लड़ उन्हें जीत आत्मज्ञान के ब्रह्मास्त्र से जो सौंदर्य ही उपजाएं। अस्त्र-शस्त्र तो धरती का स्वरूप बिगाड़ कुरूपता ही उपजाता है। तू महान है, मानव अवश्य ही विजयी होगा।
यही सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ