गणतंत्र का मंत्र

हर वर्ष गणतंत्र दिवस बड़ी भव्यता से अपार धन व्यय कर मनाया जाता है जबकि सादगी राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का संदेश है। भारत के सच्चे सपूतों के बलिदान और युगदृष्टाओं की चेतावनी का ध्यान रखकर यदि सही राह न अपनाई तो कैसे बात बनेगी।

गणतंत्र का सच्चा अर्थ समझकर उसका उपयोग भारतीयों की सोई देशभक्ति को जगाने में करने में ही इस दिवस की सार्थकता निहित है। जिस प्रकार सृष्टि की सुव्यवस्था तंत्र-यंत्र-मंत्र में निबद्ध है। उसी प्रकार भारतीय जनगण देश के कोने-कोने तक फैला तंत्र की भांति है जैसे शरीर के अंदर सारे अवयव व नाड़ी तंत्र का पूरा जाल। इसे भारत सरकार रूपी यंत्र समेटे हुए संपुटित किए हुए है और मंत्र है भारत का संविधान जो व्यवस्थित संचालन के लिए शक्ति बीज है।

जब शरीर में कहीं भी विकार या विषाक्त कीटाणु पनपते हैं तो उसका तत्काल उपचार अत्यावश्यक होता है अन्यथा पूरा शरीर रोगग्रस्त हो जाएगा। इसी प्रकार यदि सरकार रूपी बुद्धि-विवेक से समयानुसार अपने नियमों में संशोधन कर उन्हें परिष्कृत नहीं करती तो जन गण मन कैसे सुमधुर ध्वनि से झंकृत होगा। एकता का सूत्र है सबके लिए एक-सा नियम कानून व दंड।

गणतंत्र दिवस की परेड के लिए देश के विभिन्न प्रांतों से लोग आकर विविध संस्कृतियों का प्रदर्शन करते हैं। इनमें अधिकतर गवर्नमेण्ट स्कूलों के बच्चे या वे लोग होते हैं जो बहुत साधन सम्पन्न नहीं होते। क्या सिर्फ उन्हें ही अपनी देशभक्ति को उजागर करना होता है। जो कई दिनों तक कठिन अभ्यास कर राजधानी की वीथियों में मौसम की परवाह किए बगैर अथक प्रयत्न से प्रदर्शन करते हैं। बड़े-बड़े अंग्रेजी या पब्लिक स्कूलों के धनाढ्य साधन सम्पन्न परिवारों के बच्चे या लोग इन परेडों से दूर ही रहते हैं। पाश्चात्य मनोवृत्ति में आकंठ डूबे ये लोग होटलों डिस्को या घरों में छुट्टी होने का मजा या आराम भोगते हैं। इस जैसी अनेकों बातें जो दूरियाँ बढ़ाती हैं, गणों को विभक्त करती हैं। इनके प्रति सबको सजग व चैतन्य होना ही होगा।

भारतीय संविधान ऐसा समुचित गणतंत्र विकसित करे जिसमें सब गण एक सूत्र व एक तंत्र में बंधकर आपसी भाईचारे को बढ़ाएँ, मान दें-प्रेम का मंत्र फूँककर। प्रत्येक इकाई का, भारत की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान समझ कर उसके साथ सौहार्द रखें। नियम केवल नियम ही न बने रहें दैनिक व्यवहार में वे कठोरता से लागू हों तभी उनकी उपयोगिता है।

तो आओ गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर अपने-अपने निजी स्वार्थों से उबर कर देशभक्ति व देशप्रेम का संकल्प लें। वेदभूमि भारत के निवासी होने का गर्व अनुभव करें और सच्चे मन एवं दिल से मानें कि ‘भारत में रहने वाला प्रत्येक नागरिक भारतीय है बस। सबका धर्म सत्य, कर्म व प्रेम है। मानवता और मानवहित धर्म-कर्म है।

यही सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

प्रातिक्रिया दे