नानक दियो शबद महान यही माने प्रणाम

यही रहे प्रभु मेरो व्यवहार, रहूँ तरनतारन को तैयार
स्वत: हो दुष्टों का संहार, यही कर्ममय शक्ति दो अपार
करे दूर सब दुख ताप भार, सत्यमय हो सकल संसार
तेरो शबद मेरो राखनहार।

एक शब्द में संसार समाया है। एक प्रेममय भावपूर्ण सकारात्मक शब्द में कितनी शक्ति है इस बात को मानकर विश्वास रखें तो मानव अपने आप ही सत्य ज्ञान व तत्वविधान की सीढ़ी चढ़ जाएगा। बहुत ही तथ्यपूर्ण व गागर में सागर वाला नाम दिया गया है गुरुवाणी के पवित्र ग्रंथ को। जब नाम दिया गया था तो उस समय विज्ञान ने इतनी तरक्की भी नहीं की थी कि आवाज़ व शब्दों की गति और कंपन को जान पाता। मगर आज विज्ञान जान रहा है कि आवाज़ की कंपन गति (वाइब्रेशन) का प्रवाह प्रचार माध्यमों के सहारे कहाँ-कहाँ नहीं पहुँच रहा है।

धन्य हैं हमारे तत्वज्ञानी संत-महात्मा जो जानते थे कि जैसे विचार होंगे वैसे ही शब्द मुख से उच्चरित होंगे और उनका प्रवाह दिशाओं में फैल कर स्वत: ही प्रकाश का प्रसार करेगा। वर्ड इज़ वर्ल्ड पावर, शब्द है संसार शक्ति। अगर एक भी गलत शब्द ब्रह्माण्ड में उछाला गया तो वह गलत व नकारात्मक प्रतिक्रिया ही वापिस उछालकर देगा। एक शब्द पूरा का पूरा शक्तिशाली बम है। यहाँ तक कि विचार रूप में फेंकी गई तरंगें भी प्रतिक्रिया उपजाती हैं। कर्मों का कर्ता-कारण हैं तरंगें यही है वेदों का सत्य।
जब ग्रंथों के नाम रखे जाते हैं तो वे अपने आपमें उस ग्रंथ का महामंत्र होते हैं। अगर उनका गहरा और सही अर्थ जानकर आचरण किया जाए तो भी इंसान स्वयंसिद्ध हो जाए और प्रेम संदेश प्रसार करने का दिव्य माध्यम बन अपने मानव जीवन को सुंदर और सार्थक बना ले। जैसे गीता का अर्थ ही है प्रकृति का गीत। और जब प्रकृतिमय सत्यरूप मानव अपने वचनों में लयात्मकता व माधुर्य लाकर प्रकृति के ही नियमों का रहस्योद्घाटन करे तो वह गीता होती है।

एक शब्द सिर्फ सत्य को ही ले लें तो हे मानव! कहाँ जरूरत रह जाती है बार-बार सत्य पर लम्बे-चौड़े प्रवचन सुनने की या बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ने की। हर पढ़ा-लिखा व अनपढ़ जानता है कि सत्य शब्द के अर्थ क्या हैं। जो तुम हो अपने को वही जानो बस। दिखावट, बनावट व पाखंड (हिपोक्रेसी) ही झूठ है बाकी सब सत्य है। झूठ तो झूठ ही है, यह झूठ का सत्य ही है। पर दिखावा, लगाव, छुपाव, बनावट तो पूर्णतया अंदर बाहर कुछ और ही है। सत्य थोड़े न है। अब इसमें क्या मुश्किल है ओ बंदे! सत्य जीना तो सरलतम है। कोई दिमागी जोड़-तोड़ नहीं। सत्य जाना और कर्म किया। सीधा शफ्फाक-सा रास्ता है।

दिमागी जोड़-तोड़ में, दुनियाभर के शब्दों को तोड़-मरोड़कर, अपनी स्वार्थी बुद्धि के हिसाब से प्रयोग कर हम शब्दों जैसे पवित्र माध्यम का कितना दुरुपयोग करते हैं। क्या प्रकृति हमें माफ करेगी? वैसे ही हमारे मन व शरीर के विकार जो सांस द्वारा बाहर प्रकृति में भेजे जाते हैं वही प्रकृति हमें साफ कर आक्सीजन के रूप में जीवनदान देती है, ये तो प्रकृति का ही दिया नियम है सो सहर्ष स्वीकारती है। मगर जब हम सांसों के द्वारा भी और मुँह के द्वारा भी ओछे विचारों की तरंगें और गलत भावों वाली शब्दों की ऊर्जा उगलते हैं तो! प्रकृति माँ पर दया करो। प्रकृति माँ तो दया भी नहीं चाहती तुम्हारा ही भला चाहती है। अच्छा मधुर सुगंधित व सौंदर्यमय सत्यम् शिवम् सुंदरम् दोगे तो हज़ार गुना वापिस करेगी। प्रकृति माँ सर्वशक्ति रूपिणी है। शब्द मुँह से निकला तो चित्रगुप्त की तरह अच्छे शब्दों को स्वर्ग बनाने भेज देगी और दुष्ट शब्दों को नरक बनाने।

एक से विचारों व शब्दों वालों की भी एक अनदेखी संस्था हर युग में होती है चाहे उनका आपस में सम्पर्क न हो पर सत्य शब्दों की तरंगों का ऐसा नित्य निरंतर रेला बना देते हैं जो सच्चे साधक तक पहुँच कर अवश्य ही आकर्षित कर लेता है, चाहे इसको बुद्धि न जान पाए। यह संयोग कदापि नहीं वरना श्रीकृष्ण को अर्जुन व नानकजी को बाला मरदाना कैसे मिलते।

अब एक इतनी गहरी शब्दों की बात श्री नानक की देखें ‘नानक नाम चढ़ती कला इसदे भाने सबदा भला। प्रभु नाम से ही चंद्र की चढ़ती कलाओं के जैसा ही आंतरिक कलाओं का विकास शनै: शनै: पूर्णता पाता है और जिसके कारण सबका भला होता है भाने या सूर्य की भांति, इसी बहाने से प्रकाश फैलाता है। और जी क्या कहूँ शब्दों का एक बड़ा ही सौंदर्यमय रहस्य है जो रटा नहीं जा सकता। शब्द चाहे कितने भी संसारी क्यों न हों, उसे मन में एक ही परम शक्ति को संबोधित कर प्रयोग करना अगर आ जाए तो आनन्दस्रोत खुल जाता है। हर कार्य आनन्दमय हो जाता है। क्योंकि वही एक परमात्मा ही तो पूरा सच्चा पिया, प्रेमी, सखा, माता-पिता, बंधु-बांधव, गुरु सब कुछ है। तो जो भी गाओ, बोलो या पुकारो-मन में प्रभु भाव रखकर। उसे अर्पण करने की तपस्या ही शब्दों की महिमा का सत्य उजागर कर देगी। सारी मन की सलवटें निकल जाएँगी। मन के कपड़ों की सलवटें ही तो निकालनी हैं कबीर की तरह शब्दों की बुनकर खड्डी लगाकर।


क्यों रहो बेबस निहार, जान लो शब्द ब्रह्मï साकार।
करो मन ही मन पुकार झूठ को दो ही नकार।
यही हो जगत व्यवहार,
करो सत्य अंगीकार तभी हो बेड़ा पार।
करे असंभव को संभव संभवामि युगे-युगे
शब्दों के विस्तार को, शक्ति अपार को प्रणाम का प्रणाम

यही सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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