स्वस्तिक

सर्व मांगलिक प्रतीक

स्वस्तिक प्रतीक अपने आप में पूर्ण भावानुभूति है। वैदिक संस्कृति आध्यात्म और वेद-विज्ञान का अनूठा सत्य है। प्रत्येक सम्प्रदायों मतों व धर्मानुयायियों ने प्रतीकों का महत्व समझा और अपनी अपनी प्रमाणिक पृष्ठिभूमि के अनुसार इनको प्रतिष्ठित किया है।

परंतु भारतीय वेद संस्कृति के परम कल्याणकारी मंगलकारी शुभ व पवित्र स्वस्तिक समान शक्तिमान व दीप्तिमान कोई नहीं है। क्यों कि यह अविष्कृत नहीं है। वैदिक काल के ऋषि मुनी वैज्ञानिकों द्वारा सभी दिशाओं की ऊर्जाओं और शक्तियों का अनुभूत सत्य है।

स्वस्तिक आकार अनादि काल से ही विद्यमान है और भारतीय संस्कृति के साथ अभिन्‍न रूप से जुड़ा है। सभी कार्यों व धार्मिक अनुष्ठानों को कल्याणकारी बनाने हेतु सर्वप्रथम प्रतिष्ठित कर पूजा जाता है क्योंकि स्वस्तिक श्री गणेश श्री लक्ष्मी श्री विष्णु आदि दिव्य सत्ताओं का प्रतीक है।

स्वस्तिक शब्द, सु-श्रेष्ठ, अस अस्तित्व और क-करने वाला इन सबका संगम है। अर्थात सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो। इसका प्रभाव सीमित परिधि तक नहीं है बल्कि यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शुभ भावों को प्रसारित करता है। जहां स्थापित हो वहां से सभी अवांछनीय नकारात्मक तत्वों से सुरक्षा प्राप्त होती है। कुछ भी अशुभ इसकी परिधि में प्रवेश नहीं पा सकता।

स्वस्तिक को ऊँ प्रणव का समरूप ही माना जाता है। प्रणव स्वयं सृष्टा हैं सभी सौन्दर्यमय कृतित्व की ऊर्जाओं को प्रवाहित करने के स्रोत। स्वस्तिक को सर्वव्यापी ईश्वरीय तत्व का मूर्तरूप भी कहा गया है। यह ब्रह्माण्ड की सपूर्ण क्रियाओं व गतियों का रेखांकन है। यह शुभकारी चिन्ह श्रीराम और श्रीकृष्ण अवतारों के चरणों पर भी चिन्हित था।

स्वस्तिक को सूर्यवाचक भी बताया गया है इसकी चारों भुजाओं को चारों दिशाओं से जोड़ा गया है। सिद्धांत सार ग्रंथ में इसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के विस्तार की दिशाओं का प्रतीक माना गया है। इसके मध्य भाग को श्री हरि की पद्मनाभि तथा रेखाओं को चारों वेद के रूप में मान्यता दी गई है। स्वस्तिक को अपनी निर्विवादित महिमा के कारण किसी ना किसी रूप में वर्णीय माना गया है।

जापान के फ्यूजिया पर्वत के यात्रियों को स्वस्तिक से अंकित पात्र का पानी पिलाते हैं इसे दीर्घायु प्रदान करने वाला मानते हैं। उल्टा होने के कारण हिटलर के लिए अमंगलकारी सिद्ध हुआ।

स्वस्तिक सकारात्मक ऊर्जा का महास्रोत है। सबसे अधिक वास्तु दोष विनाशक है पूर्ण शांत मन से और ध्यान से स्वस्तिक को स्वच्छ जगह पर जहां पैर ना पड़े वहीं बनाएं। ध्यान में सभी कल्याणकारी देवी देवताओं का आवाहन कर सबकी मंगलकामना की प्रार्थना करें। जो भाव डालेंगे वही भाव उस स्वस्तिक से निसृत हो वातावरण को सुरभित करेगा ।

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