अपने ही शब्दों में मीना हैं 'मानसपुत्री प्रकृति की' प्रणाम की प्रेरणा
व शक्ति-स्रोत। प्रणाम एक अभियान है जो प्रकृति के नियम सत्य
प्रेम व प्रकाश की स्थापना के लिए कृतसंकल्प है निरंतर विकासशील
परम चेतना की आत्मानुभूति के द्वारा।
मीना गहनतम अंतश्चेतना वाली मन बुद्धि की स्वामिनी हैं जो कि
परा गुह्मज्ञान को ग्रहण करने में सक्षम हैं क्योंकि वो तीनों विधाओं
विचार शब्द व कर्म पर एक रूप हैं । उनकी अभिव्यक्ति प्रयत्नरहित, स्वाभाविक व कवितामयी है । रहस्यवाद की पर्ते खोलती वेद के सत्य
और विज्ञान के तथ्य का योग दार्शनिकता का पुट देकर करती हुई।
दूरियों, रिक्तताओं व अन्तरालों को भरती और जहां कहीं भी अंधकार
है उसे मिटाती हुई। विलक्षण दूरदर्शिता से सम्पन्न। सत्य की स्थापना
के लिए अदम्य साहस से परिपूर्ण आत्मज्ञान से निर्देशित वो उदाहरण
स्वरूप हैं कि जब हमारा ब्रह्माण्डीय युग चेतना से एकत्व हो जाता
है तो हम क्या हो सकते हैं। मानव जीवन को पूर्णता प्रदान करने की
यात्रा को एक आनन्दमय उत्सव बना सकते हैं।
हम में से अधिकांश अपने आप से, या अपने स्वयं के सत्य से संबंधित नहीं हो सकते।
हमें एहसास नहीं है कि हर चीज में आनंद है, साथ ही साथ बढ़ रहा है
गिरने के रूप में, यह सब हमारे विकास के लिए है। यह देखना एक खुशी है
अपने आप बढ़ते हैं। जितना हम अपने जीवन में हमारे साथ हो रहे हैं उसका विरोध करते हैं,
उतना ही यह अयोग्य है। जिस क्षण हम इसे महसूस करते हैं और इसे एक अंग के रूप में स्वीकार करते हैं
हमारे विकास के लिए सार्वभौमिक डिजाइन, हम इसके साथ सहज हो जाते हैं। ये है
जब चमत्कार होता है। हमारा मार्ग सुगम हो जाता है।
यही सच्चाई है।