अतिथि द्वारा संपन्न रूपांतरण

मीना ॐ
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मीना ॐ
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मीना ॐ
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मीना ॐ
जो बाँटता फिरता है जमाने को उजाले उसके दामन में लेकिन अँधेरा भी बहुत है क्या कमी की मेरे कृष्ण ने विश्व को उजागर करने में सत्य का आधार देने में अनन्त प्रकाश से प्रकाशित करने में मगर किसने देखा किसने जाना उनके दामन उनके मन का अँधेरा घना अँधेरा मैं जानूँ मैं समझूँ मैं भोगूँ उस दिल का घना अँधेरा जो लाए सवेरा यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ
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मीना ॐ
शोक का कारण क्या है? न जानना ही अज्ञानता हैइसका अनुभव स्वयं से ही होता है।अपने आपसे प्राप्त दुख-कष्टï सब तपस्या के ही रूप हैं।समबुद्धि दुख-सुख में सम संतुलन समबुद्धि-समबुद्धि को सिद्ध करने से जन्म-मरण भय से मुक्ति!! एक निश्चय वाली बुद्धि ही प्रभु प्राप्ति का मार्ग आसक्ति से उत्पन्न अनन्त बुद्धि वाली बुद्धि एक निश्चय वाली बुद्धि हो जाए। इसके लिए :- सकाम कर्मों से रहित राग द्वंद्वों से रहित परमात्मा तत्व
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मीना ॐ
हे मानव ! कहां ढूंढ़ता है तू स्वर्ग। बड़ी प्रबल है तेरी स्वर्ग की इच्छा चाहे मर के मिले बस पाना ही है। तेरे काल्पनिक स्वर्गसम जीवन से अपेक्षाओं की कमी नहीं। एक दिवास्वप्न जैसी भ्रमित करने वाली मृगमरीचिका। अरे प्रभु ने तुझे वह सब क्षमताएं प्रदान की हैं जिससे तू अपने व अपने सम्पर्क में आने वाले सभी जीवों के लिए स्वर्गसम वातावरण उत्पन्न कर सकता है। अपना स्वर्ग आप बना सकता
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मीना ॐ
स्मृति अनंत सागर स्मरण की बना मथनी बुद्धि की बना काल का चक्र घुमा पाया अनमोल रत्न ज्ञान का मानव विधान का अवचेतन मन की परतें हटाकर ही उस प्रकाश या नूर के दर्शन होते हैं जो सब में व्याप्त है और एकत्व जगाने का तत्व है। मानव की प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया जिसका वो कारण नहीं जान पाता वो सब अवचेतन मन से ही संचालित होती है। ध्यान योग को प्राप्त मानव इस सारी
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मीना ॐ
दक्षिण भारत यात्रा के अंश : भाग-2 मन में बहुत उमंग थी श्री माँ और श्री अरविन्द जी की तपोभूमि व कर्मस्थली पांडुचेरी को दुबारा सोलह साल बाद देखने की। क्योंकि उनके सपनों की नगरी ओरोविलियन की भी बहुत चर्चा सुनाई देती रही है। समाधि दर्शन से जो अनुभूति सोलह साल पहले हुई थी उसकी याद भी पुलक जगा रही थी । पर ओरोविलयन पहुँचने पर वहाँ कुछ भी ऐसा नहीं पाया जो
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Mahika
मान लो तुम सहज हो सुंदर हो तो हर आईना धुँधला पड़ जाता है मान लो तुम साहसी हो आत्मविश्वासी हो तो हर रुकावट हट जाती है मान लो तुम रानी हो अपने घर की तो हर दीवार सोने सी लगती है मान लो तुम अन्नपूर्णा हो तो हर व्यंजन स्वादिष्ट हो जाता है मान लो तुम सरस्वती हो तो हर पल कमल सा खिल जाता है मान लो तुम लक्ष्मी हो तो
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मीना ॐ
अपने आप के साक्षी बनना सीखें, ताकि आप अपने मन के हस्तक्षेप के बिना अपने अंतर के परम तत्व, सच्चे अस्तित्व के संदेशों को पढ़ सकें। ऐसा करने से, आप स्पष्टता प्राप्त करेंगे। यह आसान नहीं है। इसे सिद्घ करने में कुछ महीने लग सकते हैं। फिर भी प्रारम्भ करना महत्वपूर्ण है। इससे आपको वर्ष के संदेश को भी समझने में मदद मिलेगी। इसलिए अब दूसरों को जांचना छोड़ दें और स्वयं को
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मीना ॐ
हमारे पास कार्य करने के लिए ज्ञान साधन और उपकरण हो सकते हैं, लेकिन शक्ति बल या सही मार्गदर्शन के बिना, हम कुछ भी प्राप्ति नहीं कर सकते। ब्रह्माण्ड में कोई ज्ञान नहीं है। उसमें केवल ऊर्जा होती है जो ज्ञान को प्रवाहित करती जाती है। सभी विकसित आत्माओं के विचार और ज्ञान वहां रहते हैं। इन ऊर्जाओं क आह्वान करके उन सब विकसित लोगों से जुड़कर, हम उनका शुद्ध ज्ञान प्राप्त कर
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