सत्यव्रती
सत्य जानने वाला ही सत्य बोल सकता है सत्य जानने वाला विज्ञान जानता है जो चिन्तन मनन आत्ममंथन से जानना है सत्य अविनाशी है इसी अविनाशी में पूर्ण निष्ठा अटूट श्रद्धा ही प्रेरणा है जो सर्वत्र वही, वो ही, वो ही वो समझ आता है सुझाई देता है सब जगह सब प्रकारों में आकारों में सब जड़ चेतन सभी में वही है कुछ और है ही नहीं। ऐसा आत्मा में रमने वाला चिन्तन वाला स्वतंत्र है सब कुछ उसी का प्रसार व संचार होता है। पूर्ण विस्तार होता है। सबमेंं विलय होकर लीन होकर एकाकार हो ब्रह्माण्डीय सोच वाला होता है। सत्य जानने वाला यही हो जाता है यह हो जाने वाले के संकल्प मात्र से कामना पूर्ण होती है। संकल्प से भी निवृत, कामना पूर्ण होने के भाव से भी, सुख दुख से भी परे। कामनाओं से भी परे हृदयस्थ आत्मतत्व में आत्मलीन हो अमृत पाता है। उसी अमृत…