सत्य दृष्टा

जब से सृष्टि बनी तब से सब याद रहना समझ लेना सारे रहस्य सारा सत्य ज्ञान यह मनुस्मृति है। गीता में श्रीकृष्ण ने यह सत्य स्वीकारा है कि सारे तथ्य सत्य को सबसे पहले मनु प्रथम मानव ने अपने पिता सूर्य से जाना- सत्य ऊर्जा स्रोत से। बाद में यह ज्ञान-रहस्य ऋषियों ने जाना पर धीरे-धीरे यह ज्ञान लुप्त हो गया। अर्जुन को यह ज्ञान श्रीकृष्ण ने गीता बता बताकर दिया। ना जाने कैसे प्रभु कृपा हुई कि यह ज्ञान श्रीकृष्ण स्वत: ही ध्यान में पढ़ा रहे हैं मीना मनु को भी। कालचक्र घूमा है यही सत्य है मनु की वस्तु मनु के पास पहुंच गई। अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों के नायक श्री विष्णु पूर्ण ज्ञान की सत्ता- सूर्य धारण करते हैं, उन्हीं सूर्य से मनु को सीधा प्रकाश मिला है। प्रकाश कोश ज्ञान नहीं अपितु प्रकाशित होना है, जो सीधा ऊपर से झरता है और जीव को अज्ञान और अस्पष्टता…

जय माँ शारदे

गुनातीत होने पर तेरी ही कृपा चाहिए। केवल सत्य से ही रीझने वाली, ना किसी के आगे ना पीछे, न धन से ना मान से ना ज्ञान के अभिमान से, स्पष्टता, पवित्रता व शुद्ध भाव के प्रकटीकरण की शक्ति देने वाली, सत्यम् शिवम् सुन्दरम् कलाओं की प्रेरणा व प्रश्रयदात्री। वाणी को वेद बनाने वाली तेरी आराधना सदा ही प्रिय हो।पूर्ण समर्पण : पूर्णतया आधिकारिता की समाप्ति। सम्पूर्ण लेन-देन ऊर्जा का, ना कम ना ज्यादा, पूर्णता से आदान प्रदान। मानव की प्रतिक्रियाओं से उसके उत्थान का पता चल जाता है, प्रतिक्रिया नहीं देनी है। क्रियाशील रहना आवश्यक है, सदा कर्म करना है। जैसे श्रीकृष्ण ने धैर्य से शिशुपाल की 99 गालियाँ शोभापूर्ण ढंग से सुन ली फिर कर्म किया सुदर्शन चक्र, सत्य की शक्ति का प्रतीक, चलाकर उसका शिरच्छेद, अहम् का प्रतीक, काट दिया। केवल एक सत्यात्मा ही सही समय पर सही कर्म का प्रतिपादन कर सकता है। यही माँ शारदे…