जागृति : क्रमबद्घ घटनाएं
अचानक कुछ होना जिसका अर्थ बहुत गहरा होता है जिसका कोई न कोई संदेश अवश्य है। यही ब्रह्माण्ड का क्रियाकलाप है। आत्मानुभूति की प्रक्रिया है। समर्पण : विज्ञान की अंधी दौडï में भूला इंसान परा ज्ञान को, नकार दिया अपने अद्वितीय अस्तित्व को स्रोत को। पर अब पथ भूला राही मानव सत्यता को मानना चाह रहा है। घूमा है कालचक्र, मानव अपनी सच्ची जड़े ढूंढ, जुड़ना चाह रहा है अपने सत्य ऊर्जा स्रोत से। ब्रह्माण्ड का अंश है मानव, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्। जागृति : अपनी शक्तिस्वरूपिणी ऊर्जा को समझना व पहचानना ही जागृति है। ऊर्जा स्पन्दन देती है, कृतित्व, क्रियाशीलता देती है। सदा गतिमान रखती है। तारतम्यता : रसात्मकता, संतुलन, लय- इन तीन ऊर्जा स्रोतों से तारतम्य रखना बखूबी आता है हमारी पावन भूमि के स्पन्दन को, जब से सृष्टि बनी, वेद बने यह विज्ञान, परा ज्ञान ब्रहमाण्ड से जुड़ने का, उसका अंश होने का सब इसी धरती का ज्ञान…