क्या ऊँचा क्या नीचा
मुझे क्या ऊँचा क्या नीचा जिसने परम पद पा लिया हो उसे ये संसार क्या पद या पदवी दे पाएगा पूरी धरती जिसका सिंहासन पूरा आकाश जिसका छत्र अगणित चन्द्र-सितारों नक्षत्रों-सूर्यों के अनमोल हीरे मानिक-मोती सोने-चाँदी जड़ा शीतल मन्द पवन डुला रही चँवर संगीत की मधुर ध्वनि करते कोयल औज् भ्रमर प्रकृति रंग-बिरंगे फूलों की सुगंधियाँ जलाए आत्मा सब हृदयों पर राज कराए अनन्त कोटि ब्रह्मïाण्ड तक फैला साम्राज्य पर एकदम खाली न कोई चिन्ता न ही युक्ति मोक्षमयी बस मुक्ति ही मुक्ति मन के द्रुतगामी अश्व पर सवार कण-कण तक पहुँच जाते सब भाव-विचार कौन भरमाएगा इस मीन को कसके पकड़ो तो फिसले ढीली हो पकड़ तो फिसले कौन समझेगा मेरी बानी वही जो होगा पूर्ण ज्ञानी-ध्यानी पर न हो अभिमानी जो हो अपने को वही जाने न कम न ज्यादा मेरा स्वरूप समझने को होना होगा खाली समझनी होगी सारी सृष्टि की दृष्टि कैसे करती रहती प्रकृति प्रगति…