प्रभु का दीया

मैं आत्मा हूँ आत्मा ही तो हूँ आत्मा में पूर्णतया सन्तुष्ट आत्मा के गुणों में रमने वाली आत्मा से ही खेलने वाली बातें करने वाली औरों की भी आत्मा से ही सम्पर्क साधने वाली उसी को अनुभव कर उसी अनुभूति पर मग्न रहने वाली आत्मा के ही गुण विस्तीर्ण करने को यह शरीर प्रभु का दिया हुआ प्रभु का ही च्दीयाज् यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

दिव्य रागिनी

तुम आए मुझे देखा और जीत लिया मैंने पाया वरदान-सा प्यार तुम्हारा फूटा जो नटखट झरने जैसा मन की गहराइयों से उदारता से भिगो गया धड़कते दिल की सभी तहें भर गई मैं चमकीली फुहारों से उस परम प्रेम के आनन्द से डूब गई पूरी की पूरी मेरी आत्मा एक एकाकी शान्त स्थाई भाव में अन्तर में सुलगे जब ज्वालामुखी कामनाओं की तो उबरूँ सन्तुष्टï चहकती-सी आनन्दित होती हुई तुम आए… मुझे देखा और जीत लिया मैंने पाया वरदान-सा प्यार तुम्हारा बहुत ही सुन्दर है यह प्यार कितना सुन्दर है यह प्यार? जो सहला दे सुलझा दे सारी सलवटें सारी उलझनें बुझे-बुझे से जीवन की सहमे-सहमे से भावों की सिमटी-सिमटी सी संकुचित भावनाओं की मेरी खुशी की ओढ़नी पर सितारे टाँकती-सी तुम आए… मुझे देखा और जीत लिया मैंने पाया वरदान-सा प्यार तुम्हारा जितना भी तुम ले लेते हो उससे भी अधिक पा लेती हूँ तुम देते हो प्रतिदिन पूरी…

जीवन की सौगात ज़ुुदाई

अब रहेगी सदा साथ बीते दिनों की तेरी याद ज़ुदाई के पल की बात सारे जीवन की सौगात अब मिलेंगे हम सपनों में होंगी बातें बस ख्यालों में वो प्यार भरे सुन्दर लम्हें वो प्यारा चेहरा वो आँखें वो कामनाओं से भरपूर हवाएँ धरती और आकाश के बीच प्यार बस प्यार ही प्यार अब रहूँ मैं कहीं भी इनका सच होगा साथ अब रहेगी सदा साथ… बीते दिनों की तेरी याद ज़ुदाई के पल की बात सारे जीवन की सौगात अपने दिल में फूल की तरह सजाए रखना मेरी यादों के चिराग… दीप दिल में जलाए रखना जि़न्दगी का लम्बा है सफर रास्ते में होनी ही है रात अब रहेगी सदा साथ बीते दिनों की तेरी याद ज़ुदाई के पल की बात सारे जीवन की सौगात वो मधुर-मधुर पल वो उमड़ती उमंगें वो प्यार की तरंगें अब कुछ भी तो नहीं है मेरे पास पर वो मनमोहक घड़ियाँ अब रहेंगी…

फैलाव

लग रहा है सुबह से ही जैसे सारे ब्रह्माण्ड में फैलती ही जा रही हूँ पिघला जा रहा है रोम-रोम सारा का सारा मेरा अस्तित्व पिघल-पिघल कर चारों ओर जो तत्व जहाँ तक है वहाँ तक पहुँच रहा है धुआँ सा बन बादलों में पानी बन सागर नदियों में अग्नि बन कोटि-कोटि सूर्यों में हवा बन आकाश में प्रकाश बन ब्रह्माण्ड में मिट्टी बन धरती के कण-कण में और भाव बन कृष्ण में कण-कृष्ण व्याप्त कृष्ण व्योम कृष्ण कृष्ण चेतना, व्योम व्याप्त चेतना ही कृष्ण है यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

प्रकाश भरना

अपने आपको प्रकाश से भरना जो स्वत: ही लाए ज्ञान और ध्यान व्योम शान्ति मिटाए भ्रांति व्योम शान्ति मिटाए भ्रांति सम्पूर्ण से जोड़कर योग कर एकाकार करे समसार करे यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ