अदृश्य आंतकवाद
दक्षिण भारत यात्रा के अंश : भाग - 3 कन्याकुमारी होटल की खिड़की से बाहर दिखाई दे रहा है सागर का विस्तार ही विस्तार। हिन्द महासागर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का संगम। हल्की-हल्की लहरें, सूर्य की किरणें, उन्हें छूकर अठखेलियाँ करती हुई शान्त ठहरी हुई। अथाह जलराशि ध्यान में लीन बदलाव की तैयारी जैसी शान्त नि:शब्दता। श्री विवेकानन्द स्मारक व गांधी मंडपम में जाने का मन नहीं हुआ। पिछली शाम चक्कर लगा ही लिया था। अच्छी तरह समझ आ गया यहाँ भी वही हाल हो गया है जो ओरोविलियन और पांडुचेरी मदर के आश्रम का हुआ है। कोई भाव नहीं न कोई विचार विस्तार केवल एक भावहीन व्यापारिक-सा पर्यटक स्थल नक्शे पर दिखाने के लिए। न कोई इनका महत्व ठीक से बताता है न ही कोई इनके प्रति दिल से आदर दिखाता है। स्थानीय लोगों के लिए यह गौरव के स्थल नहीं व्यावसायिक केन्द्र मात्र हैं। केवल दानपेटियाँ…