मैं उत्तम होऊँ ‘अहमुत्तरेषु’
हे मानव ! यही है तत्वज्ञान पाने और उत्तम जीवन जीने का महामंत्र। तुझे मानव जीवन क्यों प्राप्त हुआ इसी में छुपा है सारी सृष्टि का भेद। प्रकृति ने मानव को वह सभी गुण प्रदान किए हैं जिनसे दिव्यस्वरूप परमात्मा को जाना जा सके और उनका दर्शन तत्वज्ञान से पाकर धरा को आलोकित किया जा सके पर तू तो अपनी युक्ति-युक्त बुद्धि के फेर में पड़ जाता है। सच्ची प्रार्थना का स्वरूप ही बदल देता है। प्रभु से कैसे संवाद करना है यही भूल जाता है। पर धन्य हैं हमारे मनीषी ऋषि जिन्होंने इतने सारगर्भित ब्रह्माण्डीय ऊर्जाओं से सम्पर्क साधने वाले मंत्रों को उद्घोषित किया। इन्हीं में से एक है 'अहमुत्तरेषु'- मैं उत्तम होऊँ, कितनी ऊँची प्यारी व सरल सी प्रार्थना है जबकि आज का मानव कैसे नीचे से नीचे निकृष्ट होऊँ इन्हीं उपायों की ओर खिंचता ही चला जा रहा है। इस मंत्र की साधना की सद्बुद्धि केवल माँ…