प्रेम नगर की डगर
हे मानव ! प्रेम का कोई परिचय नहीं, प्रेम की कोई सीमा नहीं न कोई मोल न तोल, प्रेम न जाने पक्ष-विपक्ष न घृणा-द्वेष न राग-विराग, ऐसे निश्छल प्रेम को ही जो परम भक्ति जानते, वह प्रभु में और प्रभु उनमें पूर्ण समरूप हो जातेनि:स्वार्थ प्रेम एक अन्तरंग साधना है जो बाह्य तपश्चर्या व सब प्रकार के सम्बन्धों के मोह से परे है। ऐसे दिव्य प्रेम को हृदय में जागृत करने के लिए पल-पल अपने भावों को चैतन्यतापूर्वक सत्य की कसौटी पर परखना होता है। ऐसे प्रेम की प्राप्ति की सात सीढ़ियाँ हैं। आप इस सीढ़ी के किस पायदान पर हैं इसका परीक्षण आपको स्वयं ही करके निर्णय लेना होता है और इसका अवलोकन कर जांच-परख कर अपने पर काम करना होता है। प्रेम विकास के सोपान- - हम तभी प्रेम करते हैं जब कोई हमें प्रेम करे - हम स्वभावगत स्वत: ही प्रेम करते हैं - हम चाहते हैं…