एक प्रश्न पूछ रहा प्रणाम

हे मानव ! तू किसे पूजता है तेरा आराध्य या ईष्ट कौन है किसे याद करता है फूल-पत्र, भोग व प्रसाद चढ़ाता है कहाँ मुसीबत में भेंट प्रार्थना व अर्चना करता है भजन कीर्तन करता है। तू जिसके लिए यह सब करता है और गर्व से कहता है कि मैं तो अमुक-अमुक को गुरु मानता हूँ, अमुक-अमुक देवी देवताओं का भक्त हूँ तो फिर तेरा समर्पण पूर्ण क्यों नहीं है। क्यों इधर-उधर भागता है कि तेरी समस्याओं का समाधान और उल्टे-सीधे अज्ञानतापूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिल जाएं। ज्योतिष वास्तु या कोई कष्ट निवारक ही मिल जाए, कुछ नगों मंत्रों या अन्य उपायों से चमत्कार हो जाए। ये सब बाहरी फैलाव या भागदौड़ क्यों, दिमागी जोड़-तोड़ क्‍यों । क्यों जब तेरा जहाँ से जी चाहे वहीं से तुझे सब प्रश्नों के उत्तर मिल जाएं, मुसीबतें या सांसारी कष्टों का नाश हो जाए। ऐसी शब्दों की बौछार हो जाए जिसमें तू अपनी…

अन्तरात्मा की आवाज सुन कर्मरत होओ

हे मानव! अब समय आया है चैतन्यता एवं जागरूकता पर काम करने का। चैतन्यता की पहचान है अपने अन्दर झाँककर बिल्कुल शून्य होकर आवाज सुनो बाह्य चैतन्यता से मुक्त होकर। अभी मन, बुद्धि, चैतन्यता की आवाज में अन्तर करना मानव भूल गया है। सदियों से सोई हुई आत्मा की आवाज (युग चेतना की आवाज) को जगाने की साधना का समय प्रारम्भ हो गया है। जब आप पूर्णतया शान्त हैं अर्थात निर्लिप्त होकर अर्न्ततम्‌ स्थिति तक पहुंचते हैं तब जो प्रतिध्वनित हो वही आत्मा की आवाज है। फिर भी मानव यह नहीं समझ पाता कि यह मन बुद्धि की आवाज है या आत्मा की आवाज है। इसके लिए आरम्भ में कुछ कठिन साधना करनी होगी जब लगे आपके अन्दर से कुछ सन्देश व निर्देश उठे हैं तो उनको ब्रह्मवाक्य समझकर उनका पालन करो इस प्रकार पालन करने पर यदि वह विवेक जगाते हैं वातावरण शुद्ध व आनन्दमय बनाते हैं तथा आपको…

सत्य प्रेम व कर्म द्वारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य

कलियुग में पार लगाने के सर्वोत्कृष्ट साधन सत्य प्रेम व कर्म है और सर्वोत्तम साधना है ज्ञान भक्ति और कर्म की। कर्म दोनों में है एक में आन्तरिक धर्म और एक में बाह्य कर्त्तव्य कर्म । सत्य निर्भय बनाता है प्रेम निर्मल करता है और कर्म पुरुषार्थ का मार्ग प्रशस्त करता है। सत्य प्रेम व कर्म की पूर्णता से वो ज्ञान जागृत होता है जो समस्त अज्ञान रूपी अंधकार को काटकर उस प्रकाश से प्रकाशित कर देता है जिसमें सच्चिदानन्द स्वरूप का दर्शन हो जाता है। सत्य प्रेम व कर्म के इस अलौकिक चमत्कार से आत्मसाक्षात्कार तभी संभव है जब शरीर मन व आत्मा में लयात्मकता व एकात्मकता हो । जब तक स्वयं से एकात्म न होगा तब तक बाहर भी एकात्म वाला भाव प्रसारित नहीं हो पाएगा। सत्य की सबसे बड़ी साधना है मनसा वाचा कर्मणा एक होना जो सोचो वही बोलो वही करो । सत्यनिष्ट मानव आत्मा के…

सत्य निर्भय है

विजयी होगा ही- उजागर होगा ही मेरा पूर्ण अस्तित्व मानव के उत्तरोत्तर विकास और भारत के भविष्य को सुदृढ़ करने हेतु कर्मरत है। भारत के गौरव के पुर्नस्थापन के लिए सही पृष्ठभूमि तैयार करने की सतत्‌ साधना का ही परिणाम है प्रणाम अभियान। मेरा सब कुछ लिखना, स्वाध्याय, ध्यान, प्रणाम योग कक्षाएँ लेना, लोगों से सम्पर्क करना, हीलिंग-वेदना हरण स्पर्श देना व सिखाना, परामर्श करना, भारतीय सनातन सत्यधर्मिता से सबको अवगत करना। सभी प्रकार के माध्यमों से भारतीय व अन्य सभी मानवों को जागृत करने का निरंतर उद्यम करना। मानव की असीमित दिव्य शक्तियों को पूर्णतया प्रस्फुटित करना- श्रीकृष्ण के गीतोपदेश के आधार पर। इसी कर्मयोग की धारा को प्रणाम रूप में निरंतर गतिमान रखना ही मेरा धर्म-कर्म है। यही आने वाले कल की सुप्रभात की तैयारी है। पूरा है विश्वास - आयेगा ही वह स्वर्णिम समय, वो प्रकाशित पल जो स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद के सपनों को साकार…

भारत भाग्य विधाता कहां हो, भारत भाग्य विधाता कहां न हो

भारत भाग्य विधाता कहां न हो हे सनातन मानव ! तू कहां खो गया है इतनी गिरावट-अधोगति कि मानव त्राहि-त्राहि कर रहा है मानवता घुट-घुट कर दम तोड़ रही है। क्या ये पढ़े-लिखे लोग हैं इनकी शिक्षा दीक्षा कहां की है। भाषणों का स्तर केवल अपनी ही आत्म प्रशंसा और बाकी सबकी भर्तसना पर ही उठकर गया है क्या कोई ऐसा आत्मवान-शक्तिमान मानव बचा ही नहीं भारत में जो उठे और इन महामूर्ख भ्रष्टाचारी नेताओं को ठिकाने लगा दे। जब कांग्रेस पप्पू और मिट्ठू बोलते हैं तो बीजेपी के ही नम्बर बढ़ा देते हैं और जब बीजेपी के पिट्ठू और टट्टू बोलते हैं तो कांग्रेस के नम्बर बढ़ जाते हैं। क्या ताजमहल क्‍या लालकिला क्या बहाई या क्‍या अक्षरधाम आदि-आदि। ये सभी मध्य इमारतें क्या बिगाड़ रही हैं देश का मानवों का। जो इतना वाद-विवाद इन पर किया जाता है। जब भी देश में द्वेष घृणा हिंसा अराजकता और अभद्रता…

अनुभूत ज्ञान

मूलरूप ज्ञान : वास्तविक ज्ञान जो ज्ञान ध्यान में प्राप्त होता है उसी का प्रसार ही मानव को उत्थान व ख्याति के उच्चतम स्तरों तक पहुंचाता है। मानव जीवन को श्रेष्ठता प्रदान करता है। संसार से सीखा जाना अभ्यास किया गया ज्ञान व्यवसायिक दृष्टिकोण से अच्छा सिद्ध हो सकता है। परंतु मानव के आध्यात्मिक उत्थान के लिए या मानव को उत्कृष्टता प्रदान कर उत्थान की चरम सीमा तक ले जाने में उसकी उपयोगिता कम ही होती है। रामायण रटने से या एकदम राम जैसा व्यवहार करने से कोई श्रीराम नहीं बन सकता ना ही गीता गुनने से कोई श्रीकृष्ण ही बन पाएगा। जो बनेगा केवल अपने बलबूते पर अपने ही सत्य की साधना से बनेगा। बड़ी-बड़ी बाते प्रवचन शास्त्रार्थ धरा का धरा ही रह जाएगा। हां भूतकाल के संदर्भ से ज्ञान प्राप्तकर उस पर चिंतन मनन कर भविष्य का मार्ग चुनने में सहायता अवश्य प्राप्त होती है। ध्यान को आधार…

तमस की निद्रा से जाग !

हे मानव ! इतने सारे बुद्धिमान मानव होते हुए भी विश्व विवेकहीन महामूर्खों की बस्ती बन कर रह गया है। एक ओर महामारी कोविड-19 कोरोना से लड़ने हेतु अंधाधुंध व्यय कर रहा है। सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त कर आधी-अधूरी व्यवस्थाएं कर रहा है। उनको बचाने हेतु जिनका कि शायद मानव समाज देश और विश्व हित में कोई भी योगदान न हो। दूसरी ओर अपरिमित धन व्यय कर रहा है युद्ध के लिए आयुधों पर उनको मारने के लिए जो हृष्ट पुष्ट हैं नौजवान हैं विश्व का भविष्य हैं। ऊपर से पर्यावरण का सत्यानाश। वाह रे मानव ! बलिहारी तेरी दोगली नीति की । मानव का इतना पतन परम बोधि व प्रकृति को कभी भी मान्य ना होगा प्रकृति अब अपने हिसाब से छंटनी करके ही रहेगी। प्रकृति के इस प्रकोप कोरोना को कम करने की प्रार्थना करना तथा सावधानी रखने का प्रयत्न करना तो स्वाभाविक व उचित ही है पर इसके…

स्वस्तिक

सर्व मांगलिक प्रतीक स्वस्तिक प्रतीक अपने आप में पूर्ण भावानुभूति है। वैदिक संस्कृति आध्यात्म और वेद-विज्ञान का अनूठा सत्य है। प्रत्येक सम्प्रदायों मतों व धर्मानुयायियों ने प्रतीकों का महत्व समझा और अपनी अपनी प्रमाणिक पृष्ठिभूमि के अनुसार इनको प्रतिष्ठित किया है। परंतु भारतीय वेद संस्कृति के परम कल्याणकारी मंगलकारी शुभ व पवित्र स्वस्तिक समान शक्तिमान व दीप्तिमान कोई नहीं है। क्यों कि यह अविष्कृत नहीं है। वैदिक काल के ऋषि मुनी वैज्ञानिकों द्वारा सभी दिशाओं की ऊर्जाओं और शक्तियों का अनुभूत सत्य है। स्वस्तिक आकार अनादि काल से ही विद्यमान है और भारतीय संस्कृति के साथ अभिन्‍न रूप से जुड़ा है। सभी कार्यों व धार्मिक अनुष्ठानों को कल्याणकारी बनाने हेतु सर्वप्रथम प्रतिष्ठित कर पूजा जाता है क्योंकि स्वस्तिक श्री गणेश श्री लक्ष्मी श्री विष्णु आदि दिव्य सत्ताओं का प्रतीक है। स्वस्तिक शब्द, सु-श्रेष्ठ, अस अस्तित्व और क-करने वाला इन सबका संगम है। अर्थात सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो। इसका…

प्रकृति का प्रकोप

हे मानव ! तू बहुत चतुर व बुद्धिमान बनता है। अत्यधिक सुख-सुविधाएं धन साधन आदि संग्रह कर लिया। प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का भी किन स्वार्थ हेतु खूब दोहन कर लिया। पर कभी यह ध्यान न आया कि जब प्रकृति अपना हिसाब मांगेगी तो कया होगा। प्रकृति का बाह्य व आंतरिक आपदाएं लाकर अपूर्णताएं संहार कर संतुलन लाने का अपना ही विधान है। बाह्य आपदाएं-भूचाल बाढ़ तूफान अग्नि प्रकोप ओलावृष्टि भूस्खलन आदि। आंतरिक आपदाएं-आधि व्याधि ताप विषाद शारीरिक कष्ट आदि, ऐसे रोग जो भौतिक विज्ञान की पकड़ में भी ना आएं । जिस प्रकार परम चेतना का उत्थान निरंतर होता ही रहता है वैसे ही मानव बुद्धि और ज्ञान विज्ञान का भी विकास होता है। पर जब ज्ञान विज्ञान का दुरुपयोग अहमयुक्त स्वार्थी मनोबुद्धि के अनुरूप होने लगता है तो प्रकृति अपनी वो शक्ति दिखा ही देती है। जिसे समझना या नियंत्रण कर पाना मानवीय क्षमताओं से परे होता है। मानव…

आतंकवाद का सम्प्रदाय

मानवता का सफाया स्वर्ग प्राप्ति हेतु कलियुग में आतंकवाद एक अमरबेल की तरह सम्पूर्ण मानवता पर छाता जा रहा है। कहां नहीं है यह राक्षस, निम्नतम स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक पूरी मानवता इससे त्रस्त है। धमकाकर डराकर उकसाकर बहलाकर दबाव डालकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना, अपनी पाश्विक प्रवृतियों को तृप्त करना, मानव अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगा है। इसके इतने प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में ऐसे व्याप्त हो गये हैं कि बिना अपराध बोध के जीवन जीने की शैली ही बनते जा रहे हैं। हाँ जब बड़े वीभस्त और भयंकर कांड होते हैं तो सब जनता मीडिया नेता धार्मिक गुरु ज्ञान बांचने लगते हैं कि आतंकवाद समाप्त होना चाहिए। अरे पत्तों और टहनियों को काटने से क्या होगा। आतंकी मानसिकता के बीज तो समाज में लगातार बोए ही जा रहे हैं जो वृहद्‌ रूप धारण तो करेंगे ही। स्कूलों में नंबर कम आने का डर दिखा ट्यूशन से पैसा…