दिमाग को एक तरफ रक्खे

जब हमारा मन भ्रमण करता है तो हम मनुष्यों को मनोरंजन लगता है, दिवास्वनमनोरंजक हो सकता है… और कई बार हमें एहसास भी नहीं होता कि यह हो रहा है।और हम इसे बढ़ाते जाते हैं… “उसने यह कहा', “मैं बदले में यह करूंगा' और विचारघूमते रहते हैं, कभी छोड़कर नहीं जाते। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मन एक बेचैनबंदर की तरह है जिसने शराब की सैकड़ों बोतलों का सेवन किया है और उसके ऊपरकई बिच्छुओं ने डंक मारा है… बस कल्पना करें कि वह कैसा व्यवहार करेगा। यही एक बेचैन दिमाग की स्थिति है। गीता में अर्जुन कहते हैं कि मन की गति को मापना बहुत कठिन है। कोई भी मन काप्रबंधन कैसे कर सकता है? जिसका श्रीकृष्ण जवाब देते हैं, निश्चय ही यह कठिन है। मुझे पता है… लेकिन इसे अभ्यास से दूर किया जा सकता है। अपने मन को “हरि नाम' का पथ्य दे दें।” जिस क्षण यह…