सबसे बड़ा आश्चर्य

हे मानव! सबसे बड़ा आश्चर्य यही है कि जब पराशक्ति मानवों को अपने ही बनाए हुए चक्रव्यूहों से निकालकर किसी महान उद्देश्य की ओर इंगित व अग्रसर करने का सत् संकल्प किसी एक उन्नत मानव के अन्तर, अस्तित्व में प्रस्फुटित करती है तो भावानुसार वैसे ही कुछ मानवों को भी अवश्य ही तैयार कर लेती है जो स्वेच्छा से स्वत: ही उसमें योगदान को तत्पर होते हैं। जो परमबोधिनी शक्ति सत्य को अवतरित करती है वो ही उसे पूर्णता तक पहुँचाने के माध्यम भी कालानुसार जुटा देती है। इस संदर्भ में शास्त्रानुसार, शक्ति बल बुद्धि और दृढ़निश्चयी हनुमान जी और अर्जुन जैसे निद्राजयी महाबाहो एक लक्ष्यधारी जैसे प्रतीकात्मक स्वरूप मानव, हर युग में हर अवतारी के साथ होते हैं। यही विधि का विधान है मानवों को प्रकाशित कर सत्यता का मार्ग प्रशस्त करने का, संभवामि युगे-युगे का। जहाँ तक भी प्रणाम के पाँचजन्य- प्रणाम संदेश का शंखनाद पहुँचे, सत्य प्रेम…

परमदाता

मैं अपने सृजनहार की ओर अनुकम्पा के लिए मुड़ी मुझे प्रकृति में ही सांत्वना मिली और देखो तो प्रकृति ने मुझे सब कुछ दिया मेरी सारी भावनात्मक आवश्यकताओं को थपथपाया ऊर्जा दी सांसारिक कर्मों व दिव्य कृत्यों के लिए तृप्त किया मेरी ज्ञान पिपासा को भेदा मेरी दुविधाओं के बादलों को मिटा डाले सभी संशय और भ्रम इसी धरती पर मेरे अस्तित्व और ब्रह्माण्ड के रहस्यों के उत्तरित हुए प्रश्न सभी तब किया जाकर आलिंगन मैंने परम पवित्र चेतना का हुआ सफर आरम्भ दो अभिन्न सहयात्रियों का एक-दूसरे को जानते हुए महसूस करते हुए एक ही समय में एक ही विचार से सचेत आत्मा के अहसास समेत वह सोच जो सोची नहीं जा रही वह विचार जो विचारा नहीं जा रहा एक सौंदर्यमय होनी अद्भुत चमत्कृत होनी न दुविधा न ध्रुवीकरण पूर्ण निरंतरता नित्यता अब है निवास मेरा पूर्ण विलय के केंद्र बिंदु में एक ऊर्जा पुंज सभी ऊर्जा स्तरों…

देवनहार प्रभु

परमदाता परमेश्वर प्रभु सिर्फ देता ही देता है किसी को कुछ किसी को कुछ किसी को खुशी किसी को गम किसी को साथ किसी को अकेलापन किसी को धन किसी को मन किसी को आराम किसी को कर्म किसी को सेवा किसी को ज्ञान किसी को भक्ति किसी को मर्म जलवायु आकाश मिट्टी ताप विस्तार प्रसार वरदान शाप सुपात्र अनुरूप जीवन का अंत तभी तो उसके रूप अनंत यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ