प्रकृति का अंश

सफर तो चला ही आ रहा है मेरा सदियों से चलेगा सदियों तक जब तक चाँद और सूरज ये धरती ये आसमां ये सारे के सारे सातों जहाँ मेरा रथ घुमाएँ ब्रह्मïाण्ड ब्रह्मïाण्ड और देखूँ मैं प्रकृति माँ का खेला बन प्रकृति का अंश यही तो है मेरा वंश चले करोड़ों-करोड़ों प्रकाशवर्ष मीना मनु मानस पुत्री प्रकृति की चलाए उसी प्रकृति का वंश सहकर समय दंश बीतते रहें वर्ष के वर्ष बस यही धुन होए उत्कर्ष उत्कर्ष ही उत्कर्ष सदा सहर्ष यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

घर की बात

समझौते के बल पर जो घर बनता है वह घर नहीं मकान होता है घर प्यार पर बनता है प्यार का घर बने न बने वो तो बस प्यार सिर्फ प्यार ही होता है जो हो गया सो हो गया अब घर बने या न बने प्यार तो प्यार होता है दुनिया का दिखावा होता है बसता तो कोई बसता तो कोई लाखों में एक होता है पर 'मैं तो सारी सृष्टि सारे संसार में बसती हूँ' यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

आत्मानुभूति का कोई शॉर्टकट नहीं

बड़ी तपस्या के बाद ही एक ऐसा भगवद्स्वरूप व्यक्तित्व उभरता है जिसके दर्शन में शीतलता प्रत्येक क्रिया में मधुरता वाणी में ओज और उपस्थिति में अद्भुत तेज होता है यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

ज्ञान दान का फल

ज्ञान दान का फल पृथ्वी दान समान मेरे गुरु भी वही गोविन्द भी वही दे रहे जो ज्ञान जब भी धरूँ ध्यान मीना जानी प्रभु वाणी नर बने नारायण नारी बने नारायणी यही गीता वाणी मीना जानी यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

ज्ञान-ध्यान

प्रभुमयी सूर्यमयी चन्द्रमयी हुई प्रभु प्रसाद पायो पायो अनमोल रतन कर जतन ब्रह्माण्ड स्वयं पढ़ावें समझ न आवे कैसे हुआ यह चमत्कार ज्ञान आवै आपै-आप ज्ञान-ध्यान की महिमा अपार प्रभु कृपा अपरम्पार सत्यमेव जयते तमसो मा ज्योतिर्गमय स्वाध्याय योग सिद्ध हुआ यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना ऊँ

अँधेरे में एक उजाला हुआ

विश्वास का दिया बना भक्ति का तेल डाला आत्मशक्ति से प्रकाशित हुआ युगचेतना बन ब्रह्माण्ड में स्थापित हुआ जग रोशन का संकल्प ले प्रणाम का उद्भव हुआ कलियुग में गीता का उद्घोष करने मन से मन की जोत जलाने आत्मा का आत्मा से विलय कराने प्रेम प्रसार का धर्म ले प्रणाम पूर्ण तत्पर हुआ जागरण का संदेश लिए कर्म ही धर्म है प्रेम सदा सफल है सत्य सदा विजयी है प्रणाम का यही आदर्श हुआ समान अधिकार हो मानवों का सम्मान हो मानवता का उत्थान हो भारत सदा महान हो प्रणाम का यही आधार हुआ नारी का आदर रहे भावी पीढ़ी आगे बढ़े मानव पूर्णता की ओर अग्रसर रहे सत्यता का साम्राज्य रहे प्रणाम इसी का प्रसार हुआ काया निरोग हो प्रकृति से ही मन का योग हो आत्मा निर्मल निर्भय हो वेद स्वरूप विज्ञान हो सत्यम् शिवम् सुंदरम् प्राणों का आयाम हो प्रणाम का यही कर्म हुआ प्रेमयोगी कर्मयोगी…

मानव जीवन का सत्य

जो दर्द प्रभु देते उस दर्द को वो भी अनुभव करते पूरा का पूरा झेले उन्होंने सभी दर्द तभी तो मानव को भी प्रभुता देने को दर्द देते जो कुछ भी घटा उनके साथ वह सत्य ही तो होता है वैसा वही मानव की क्षमता के हिसाब से मानव को भी मिलता जाता है जो पात्रता के गणित पर खरा उतरता है तो हे मानव ! वही पीड़ा वही दर्द पूरा का पूरा बहुविध अनुभव कर मीठा-मीठा आनन्द पाना घूँट-घूँट मधुर-मधुर रस लेना ही तो उसका दिया मान है अनुभूति है भरपूर जीओ पीड़ा को बढ़ा लो संवेदनशीलता को ताकि कोई दंश ताकि कोई दंश बाकी ना रहे पीड़ा का कोई अंश अवशेष न रहे बाकी रहे न कोई दंश अवशेष रहे न कोई अंश यही मंत्र है स्वयंभू होने का शिवशक्ति से परिपूर्ण होने का यही सत्य है मानव जीवन का यही सत्य है यहीं सत्य है प्रणाम मीना…

प्रणाम-यात्रा

प्रणाम एक यात्रा है जीवन का सफर है… है ना ! मानव जीवन का सफर मानव से ईश्वर होने का नर से नारायण होने का नारी से नारायणी होने का ईश्वरीय गुणों से युक्त जगदीश्वरी होने का दिव्यता से परिपूर्ण हो परमेश्वरी होने का प्रकृति की अनुकृति हो ब्रह्माण्डीय रहस्यों को उजागर करने का सृष्टि का स्वप्न साकार करने का साधक से प्रसारक और फिर विधायक होने का पूर्ण हो पूर्ण में विलय होने का जन्म मृत्यु की सब शंकाओं से उबर बस होने का जीने का बहने का उगने का डूबकर तैरने का होकर भी न होने का न होकर भी होने का अनहोनी के होने का सत्य प्रभु होने का सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ चमत्कार से साक्षात्कार का प्रेम का मनुहार का सत्य प्रकाश विस्तार का कर्म प्रसार का चार दल कमल से सहस्र दल कमल तक का सुहाना सुरीला मनभावन सफर प्रणाम का सफर स्वर्गीय आनन्द भूलोक पर…