मेरा मन

मैं और मेरी तन्हाई तन्हाई में पाना अपने को अपने मन को मीना के मन को मैं और मेरी तन्हाई मैं और मेरा मन मनु और मनु मन मीना और मीना का मन अक्सर बातें करते हैं ढेर-सी बातें मेरी उदासी मेरी तन्हाई सबसे प्यारी मन भाई मन को भायी लुभायी सारी खुदाई में बस यही तन्हाई तो मुझे रास आई इसी तन्हाई में पाई खुदाई इसी तन्हाई से पाई खुदाई यही है सच्चाई खुदाई से खुदा तक का सफर तय किया मीना मनु के मन ने यही सत्य है !! यहीं सत्य है !! प्रणाम मीना ऊँ

आँसू की बूँद जो बन गई मोती

आँसू की बूँद जो बन गई मोती पानी बहुत ही शान्त एकदम ठहरा पानी कहे आँखों का पानी शान्त रहना है खाली रहना है हवा का रुख देखना है सुबह की सुनहरी किरण क्या संदेशा लाई है यही देखना है संदेश का रूप देखना है पहचानना है अनन्त के इस रूप को अपने ही में धीरे-धीरे घूँट-घूँट बूँद-बूँद रिस-रिस कर, पी-पी कर अन्तर तक ऐसे समाकर कि अन्तर का स्वरूप ही मिट जाए सारा अस्तित्व जैसे एक संदेश ही बन जाए एक एक रोम-रोम यही गाए, यही गाए तुम आओ न, आओ मेरा पूरा का पूरा रूप तुम्हारा स्वरूप बन जाए तुम्हारा ही गुन गाए तुम्हारा ही प्रकाश फैलाए यही सत्य है !! यहीं सत्य है !!

बिन्दु

मैं मेरा मन मेरा खुदा मेरी आत्मा और मेरी तन्हाई एक ही तो है खुदा और खुदाई सारी खुदाई में मैं और मेरी तन्हाई यही तन्हाई मन भाई यही है सच्चाई यहीं है सच्चाई मैं मेरा मन मेरा खुदा मेरी आत्मा और मेरी तन्हाई मैं पाँच ही हूँ मैं अकेली अकेली कहाँ हूँ सारी खुदाई में मैं और मेरी तन्हाई यही तन्हाई मन भाई यही है सच्चाई यहीं है सच्चाई यही सत्य है !! यहीं सत्य है !!

ज्ञान-सागर

ज्ञान-सागर में सागर रत्नाकर प्रभाकर सुधाकर करे ध्यान उजागर भरे मन की गागर स्मृति अनन्त सागर स्मरण की बना मथनी, इच्छा की लगा शक्ति बुद्धि की बना डोर ध्यान का लगा जोर काल का चक्र घुमा पाया अनमोल रत्न ज्ञान का वेद विज्ञान का, मानव विधान का नव निर्माण का, कर्म प्रधान का सत्य विहान का, प्रेम समान का विश्व कल्याण का, प्रणाम अभियान का महाप्रयाण की इससे अच्छी तैयारी और क्या होगी पूर्ण होकर ही पूर्ण में लय होने की पूर्णता के पूर्णता में विलय की अंतिम तैयारी पूर्ण हुई प्रभु कृपा कृपा ही कृपा अपार - नमन बारम्बार… यही सत्य है यहीं सत्य है

एक बुलबुला

मीना एक खाली बुलबुला भर गया प्रभु कृपा से सारे भृगु मनु और वेदव्यास समा गए इस मीना नामधारी ज्योति पुंज में मैं ही राम मैं ही रहीम मैं ही सीता मैं ही गीता मैं ही बुद्ध मैं ही कृष्णमयी मीन मीनावतार जब से बनी सृष्टि मैं थी थी… मैं हूँ हूँ… मैं रहूँगी रहूँगी ही मैं न नर न मादा बस एक आत्मा ज्योतिस्वरूप प्रकाशपुंज यही सत्य है यहीं सत्य है

गुरुपूर्णिमा

ऊँ हृीं श्री सर्वगुरु समूह अत्रावतरावतर संवौषट् ऊँ हृीं श्री सर्वगुरु समूह अत्र तिष्ठï तिष्ठï ठ: ठ: ऊँ हृीं श्री सर्वगुरु समूह अत्र ममसन्निहितो भवभव वषट् रोम रोम कृतज्ञता से भरे मेरा मन अंजान प्रभु कैसे करूँ अपनी छोटी-सी बुद्धि तुच्छ जुबान औ' कमजोर कलम से तेरी कृपा बखान सभी कुछ तो पूर्ण ब्रह्माण्ड ही भर दिया मेरे अन्दर इससे ज्यादा पूर्णता क्या होगी मुझे अपने में समा खुद मुझमें समा मुझे पूर्ण कर दिया कृष्ण हैं अब राधा स्वरूप नर को होना होगा नारी रूप तभी जानेगा दर्द राधा का होगा पूर्ण तब रूप अर्धनारीश्वर का जगद्गुरु का यही सत्य है !! यहीं सत्य है !!

आँखों का भाव

यहीं है सत्य, मीना की आँखों में आँखों के भाव में यही सत्य है कि यहीं सत्य है मीना नाम का जीव बह रहा है युग-युगान्तर से युगचेतना के साथ युग पुरुषों की इच्छाशक्ति से सब गुरु मेरे अन्तर में ही तो समाए हैं अपना-अपना काम मुझसे करवाए हैं बारी-बारी आकर समय के हिसाब से मेरा अन्दर बाहर सब उनका ही आधार उनका ही आकार हो जाता है मीना अब कहाँ? कहाँ ढूँढ़े मीना अपने को बिना मोल खरीदा सबने इस जीव मीना को बस दृष्टि का, आँख का भाव ही बता पाएगा यहीं यहीं सत्य को… यही सत्य है !! यहीं सत्य है !!

अवचेतन मन

कितना अद्भुत असीम अपरिमित है यह अवचेतन मन सब जानता है देखता है और एक कुशल पुस्तकालय वाचक, librarian, की तरह सारे के सारे रिकार्ड रखता है सदा संभालकर रखता है सारी विकृतियाँ सारी स्मृतियाँ विश्व की सबसे बड़ी और सबसे सूक्ष्म पुस्तकालय यहीं तो है भंडार चित्रों का घटनाओं का रंगों का पाप-पुण्य के लेखों का कुछ भी छुपा नहीं इससे सब अंकित है इस अवचेतन मन पर सम्पूर्ण जीवन व्यवहार क्रियाएँ प्रतिक्रियाएँ परिणाम निर्भर इसी पर लेकिन चतुर वही चेतन मन चतुर वही चेतन मन… जो सही क्षण पर सही संदर्भ का ज्ञान ले होता संभवामि युगे-युगे सारी व्यथाएँ दूर करो माँ हो कुसुमित मेरा जीवन जगमग-जगमग दीया जलाऊँ मनभावन जग उजियारा कर दूँ जो हो तेरा सहारा मोहन प्यारा प्रभु न्यारा तारनहारा पायो कृष्ण स्वरूप वरदान तव अंकुरित भयो प्रणाम !! यही सत्य है यहीं सत्य है

क्यों कृष्ण गुरुदेव

रोका क्यों नहीं कृष्ण युद्ध रोका क्यों नहीं क्यों होने दी नष्ट सर्व उन्नत सभ्यता संस्कृति भारत की क्यों होने दिए नष्ट हमारे महान सिद्ध गुरु धीर-गंभीर क्यों मिटा डाले महान परम्परा के रखवाले वीर क्यों होने दिया दिव्यास्त्रों का प्रयोग अपनों पर ही समय व धन का दुष्प्रयोग द्वेषों पर ही क्यों क्यों क्यों क्यों कृष्णा गुरुदेव मेरे बोलो न गुरु से पूछ सकता है तो केवल उसका परम शिष्य ही अर्जुन ने मना किया युद्ध को तो क्यों पढ़ा दिया उसे महान ज्ञान अब उसी वचन को उसी ज्ञान के वचन को याद करो बोला था जब-जब अत्याचार बढ़ेगा आऊँगा संभवामि युगे-युगे आना ही होगा तुझे आना ही होगा वचन गीता वाला निभाना ही होगा पर अब बनना होगा नारी सकल अपूर्णता संहारी !! प्रणाम मीना ऊँ

जोत

एक रोशनी जो सब ब्रह्माण्डों से परे है करोड़ों सूर्यों से भी तेजवान है प्रकाश से भी वेगवान है सम्पूर्ण सृष्टि उजागर कर दे वह तो तेरे अपने अन्दर ही है रे मूर्ख मानव ! तेरे मन में ही है वह ज्योति जो सब रोशनियों की सरताज है देख समझ पहचान-तू ही प्रभु तू ही प्रेम, प्रेम ही प्रभु ओ प्रभु के अंश बन जा प्रभु बन जा रोशनी कर दे जग रोशन नई आशा जगी है मन में पूर्ण विश्वास है मानवता में आएगा वही सवेरा जो होगा मेरे ख्यालों का बसेरा जला ज्ञान ज्योति प्रभुमयी गीतामयी हुई मीना बनी कल्कि अवतार सत्यमेव जयते यही सत्य है। यहीं सत्य है। प्रणाम मीना ऊँ