शब्द को ब्रह्म जान : सही इन्सान बनने हेतु वाणी संवार

हे मानव ! तू केवल मैं होकर रह गया है। मुझे क्या मिलेगा मुझे क्या नहीं मिला मुझे पूछा नहीं मैं बोर हुआ मुझे अच्छा नहीं लगा मेरा क्या होगा आदि-आदि। इस मैं मैं को मुझसे क्या-क्या दिया जा सकता है क्या-क्या अर्पण हो सकता है इसमें बदल। अपने अवचेतन मन में और स्वार्थी बुद्धि में एकत्रित अनर्गल अनर्थक व निरर्थक शब्दों स्मृति चिन्हों चित्रों और रूढ़िवादी मान्यताओं को मिटा डाल। शब्द शक्ति प्राप्ति हेतु असत्य पाखंडपूर्ण स्वार्थी व छलपूर्ण बुद्धि विलास जो कि मानव उत्थान में गतिरोधक है उन्हें तिरोहित कर। सही इन्सान बनने हेतु उच्चरित शब्दों का महत्व जान और अपनी वाणी संवार। प्रत्येक शब्द को परम कृपा का प्रसाद जानकर ध्यान व श्रद्धा से प्रयुक्त कर। प्रत्येक शब्द अपने आप में एक मंत्रवत शक्ति संजोए रहता है। सकारात्मक सुन्दर शब्द चारों ओर सकारात्मकता व सौन्दर्य ही प्रवाहित करते हैं। जैसा सुना समझा वैसा का वैसा ही बिना…

एक प्रश्न पूछ रहा प्रणाम

हे मानव! तू किसे पूजता है तेरा आराध्य या ईष्ट कौन है। किसे याद करता है किसे फूल-पत्र, भोग व प्रसाद चढ़ाता है। कहाँ मुसीबत में भेंट प्रार्थना व अर्चना करता है भजन कीर्तन करता है। तू जिसके लिए यह सब करता है और गर्व से कहता है कि मैं तो अमुक-अमुक को गुरु मानता हूँ, अमुक-अमुक देवी देवताओं का भक्त हूँतो फिर तेरा समर्पण पूर्ण क्यों नहीं है। क्यों इधर-उधर भागता है कि तेरी समस्याओं का समाधान और उल्टे-सीधे अज्ञानतापूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिल जाएं। ज्योतिष वास्तु या कोई कष्ट निवारक ही मिल जाए, कुछ नगों मंत्रों या अन्य उपायों से चमत्कार हो जाए। ये सब बाहरी फैलाव या भागदौड़ क्यों, दिमागी जोड़-तोड़ क्यों… क्यों जब तेरा जहाँ से जी चाहे वहीं से तुझे सब प्रश्नों के उत्तर मिल जाएं, मुसीबतें या सांसारी कष्टों का नाश हो जाए। ऐसी शब्दों की बौछार हो जाए जिसमें तू अपनी बुद्धि से…

गिर के सम्भलने का आनन्द

हे मानव! तू असफलता के भय से त्रस्त होकर पहले से ही पक्का इन्तजाम कर सफलता ही चाहता है। किताबी तकनीकी ज्ञान, प्रचुर मात्रा में धन व अन्य प्रकार के साधनों की इच्छा रखता है। शारीरिक स्वास्थ्य व बनावटी और दिखावटी, बढ़ा हुआ ऊँचा जीवन स्तर कायम रखने के लिए। वो जीवन स्तर जिसकी कोई सीमा रेखा है ही नहीं नित नया मापदण्ड। इसी उधेड़बुन के तनाव व समय के साथ भाग न पाने के भय में जीवन का स्वरूप व आनन्द खो ही गया है। विज्ञान पर अत्यधिक निर्भरता व आरामतलबी के उपकरणों ने मानव की, संघर्ष से जूझने की सोच को पंगु बना दिया है। बालक जब खड़ा होकर चलने की प्रक्रिया में बार-बार गिरता है इससे वो सीखता है कैसे हाथों पैरों व घुटनों का तालमेल बिठा कर खड़ा होना है अपने आप सम्भल कर खड़े होने पर उसे आनन्द की अनुभूति होती है। सोच व कर्मेंद्रियों…

सच्चा कर्मयोग : कर्म सकल तव विलास

हे मानव ! पूरे मनोयोग से किया नित्य कर्म संसार धर्म का कर्म और कर्त्तव्य कर्म, जो सदा परम सत्ता को पूजा अर्चना की तरह फलेच्छा रहित हो समर्पित किया जाए वही निष्काम कर्म है। निर्मल पवित्र शुद्ध कर्म है कर्म बंधन काटने का मर्म है। कर्म बंधन निष्काम कर्म से ही कटते हैं। सम्पूर्ण भक्ति भाव से परम चेतना को अर्पित कर्म, यज्ञ समान है, उच्चकोटि के तप समान है जिससे मानव का सम्पूर्ण अस्तित्व पूर्ण परिष्कृत हो उत्कृष्टता को प्राप्त होता है। मानव चेतना पूर्ण विकास पाकर परम चेतना से संयुक्त, योग होती है। अंतर्मन पूर्णतया दोष रहित होकर हीरे की भांति चमकदार व पारदर्शी हो जाता है। जिसमें सारे ज्ञान विज्ञान, सारे ब्रह्माण्डीय व अंतरिक्षीय रहस्य, जीवन रहस्य, मानव अस्तित्व रहस्य उजागर हो जाते हैं। मन के सभी द्वंद व प्रश्न उत्तरित हो शान्त हो जाते हैं, असीम कृपा का अनुभव होता है। अपरिमित कृपा वैराग्य शान्ति…

नाश करने वाले हम कौन?

हे मानव ! पहले सत्य धर्म तो जान, धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो यह नारा लगाने वालों ने जाने अनजाने ही मानवता व सत्य धर्म का काफी अनिष्ट कर दिया है। लोग सच्चा धर्म क्या है यह भूल ही गए हैं। ''नाश'' किसी का भी करने वाले या इसकी गुहार लगाने वाले हम कौन? आश्चर्य तो तब होता है जब बड़े-बड़े ज्ञानी ध्यानी गुणी मानव इन शब्दों का प्रयोग करते हैं। यह जानते हुए कि शब्द ब्रह्मास्त्र होते हैं अनुचित प्रयोग से घूमकर, boomerang, वार करते हैं। अपने में सत्यता है तो अपनी लाईन बड़ी करो बड़प्पन दिखाओ प्रभुता लाओ असत्य स्वत: ही अपनी स्थिति समझ जायेगा। हे मानव! पहले यह ज्ञान तो जान कि अधर्म है क्या। अनजाने व अबूझे अधर्म के नाश के चक्कर में अपने ही दिव्य अस्तित्व का नाश कर रहा है। सूर्य अपनी महानता का ढिंढोरा नहीं पीटता जब निकलता है तो…