शब्द को ब्रह्म जान : सही इन्सान बनने हेतु वाणी संवार
हे मानव ! तू केवल मैं होकर रह गया है। मुझे क्या मिलेगा मुझे क्या नहीं मिला मुझे पूछा नहीं मैं बोर हुआ मुझे अच्छा नहीं लगा मेरा क्या होगा आदि-आदि। इस मैं मैं को मुझसे क्या-क्या दिया जा सकता है क्या-क्या अर्पण हो सकता है इसमें बदल। अपने अवचेतन मन में और स्वार्थी बुद्धि में एकत्रित अनर्गल अनर्थक व निरर्थक शब्दों स्मृति चिन्हों चित्रों और रूढ़िवादी मान्यताओं को मिटा डाल। शब्द शक्ति प्राप्ति हेतु असत्य पाखंडपूर्ण स्वार्थी व छलपूर्ण बुद्धि विलास जो कि मानव उत्थान में गतिरोधक है उन्हें तिरोहित कर। सही इन्सान बनने हेतु उच्चरित शब्दों का महत्व जान और अपनी वाणी संवार। प्रत्येक शब्द को परम कृपा का प्रसाद जानकर ध्यान व श्रद्धा से प्रयुक्त कर। प्रत्येक शब्द अपने आप में एक मंत्रवत शक्ति संजोए रहता है। सकारात्मक सुन्दर शब्द चारों ओर सकारात्मकता व सौन्दर्य ही प्रवाहित करते हैं। जैसा सुना समझा वैसा का वैसा ही बिना…