अर्जित ज्ञान की सच्चाई

हे मानव ! ज्ञान का महत्व व सच्चाई जानकर अपने ऊपर काम करके ही सत्य को जाना जा सकता है। आज तक का जितना भी ज्ञान ध्यान धरती पर अवतरित हुआ है वो जाना जा चुका है। जो कि थोड़ा-थोड़ा प्रत्येक मानव ने अपनी-अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं व उत्थान के हिसाब से प्राप्त कर लिया या चुन लिया और उसी को अपनी बुद्धि में कैद कर उसी का चिन्तन मनन कर उसे ही सब कुछ और सही जानकर उसी को बखानना व उसी की वकालत करना शुरू कर दिया। उसी को मनवाने में सारी ऊर्जा लगा दी और जितनी बड़ी संख्या में लोग उससे प्रभावित हुए उसी को अपनी सफलता मान लिया। जिसके पास जो भी ज्ञान है उसी के अनुसार विशेष रूप वेशभूषा या छवि अपनाकर अपने-अपने सम्प्रदाय बना लिए और उन्हें भी विशेष नाम दे दिए। कोई सूफी कोई गुरु कोई आचार्य वेदान्ती द्वैतवादी अद्वैतवादी नास्तिक आस्तिक आदि-आदि और…

अपने सत्य से एकात्म होओ

हे मानव ! ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण व्यवस्था का पूर्णता व सम्पूर्णता से संचालन प्रकृति के शाश्वत नियमों द्वारा ही हो रहा है। इन नियमों के विपरीत जाकर अपने कर्मों और भाग्य को दोष देना बन्द कर। प्रकृति के नियम जानकर उनका धर्मपूर्वक पालन ही दिव्यता की ओर अग्रसर करेगा। सारी सृष्टि के साथ लयमान लयात्मक व गतिमान होने हेतु ब्रह्माण्ड के शाश्वत नियमों पर आधारित सत्य सनातन धर्मिता का पालन ही सच्चा धर्म है। जो धरा पर दिव्यता का आलोक प्रसार करने में सक्षम होगा। सत्य कर्म प्रेम व प्रकाश की अनुभूति करा अपना मानव जीवन सार्थक कर पाएगा ! तो पहले सही मानव बन। सही मानव का धर्म केवल मानवता ही है जो कि प्रकृति के परम शाश्वत विधि विधान पर आधारित है। इस धर्म को जानना ही मानव का धर्म है। जानकर कर्मरत होना, पूर्ण पुरुषार्थ से ही कर्म है। ऐसा कर्म ही कर्मबंधन काटने का ब्रह्मास्त्र है।…

एक और गुण, प्रभुताई का

ओ मानव ! आज तुझे प्रभु का एक और गुण बताती हूँ। ध्यान से सुन… वैसे तो वो सभी काम चुटकियों में कर सकते हैं। पर जब तू कर्ता बनता है तो कहते हैं कर ले बच्चू अपने आप और जब तुझसे नहीं हो पाता तो कहते हैं मज़ा चख अपने कर्तापन ढोने का और जब तू बिना काम किए बिना कर्ता बने कहता है कि हे प्रभु तुम्हीं कर दो तो कहते हैं कि कर्म कर अब तू बिचारा क्या करे बहुत दुविधा संशय में डाल देते हैं प्रभु तो ! इसलिए यह सत्य जान ले कि प्रभु केवल दृष्टा बनकर देखते रहते हैं कि तू कितनी ईमानदारी से कर्तापन रहित हो परिश्रम कर रहा है। जब देखते हैं कि तूने अपनी पूरी क्षमताओं सहित पुरुषार्थ किया अब कोई अन्य उपाय है ही नहीं तो समय की आवश्यकतानुसार झट से एकदम अचानक कर्म फलीभूत कर देते हैं। ऐसे ही…