अवचेतन मन का ज्ञान

स्मृति अनंत सागर स्मरण की बना मथनी बुद्धि की बना काल का चक्र घुमा पाया अनमोल रत्न ज्ञान का मानव विधान का अवचेतन मन की परतें हटाकर ही उस प्रकाश या नूर के दर्शन होते हैं जो सब में व्याप्त है और एकत्व जगाने का तत्व है। मानव की प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया जिसका वो कारण नहीं जान पाता वो सब अवचेतन मन से ही संचालित होती है। ध्यान योग को प्राप्त मानव इस सारी प्रक्रिया के प्रति सजग होता है। क्योंकि ध्यान की साधना द्वारा वो अवचेतन मन की प्याज के छिलकों की भाँति एक-एक परत खोलकर अंदर के खालीपन तक पहुँच ही जाता है। यही उसकी अमूल्य निधि व सत्य की पूँजी है। अवचेतन मन का बुद्धि को भान नहीं होता। पर पूर्णरूपेण खाली हुए मन में जो सत्य की सूचना रहती है उसका ज्ञान सदा ध्यानयोगी को रहता है क्योंकि उसका संसारी मन व अवचेतन मन एक हो जाते…

नीति विशेषज्ञों को क्या नीति पढ़ाऊँ

पोथियाँ पढ़-पढक़र नीति विशेषज्ञ बने और जि़न्दगी भर उसी की कमाई पर जीने वाले, जि़न्दगी की सत्यता को कभी समझ न पाए और शायद कभी जि़न्दगी के सत्य से, जि़न्दगी की सही नीति से उनका सामना भी हुआ तो ओढ़ी हुई व्यापारिक बुद्धि वाली नीतियों और युक्तियों से कभी भी कोई मुकदमा नहीं हारते। दुनियावी अदालत में किसी भी सत्य को बहस कर आप सत्य बना भी दें तो भी असत्य तो असत्य ही रहेगा। ऊपर वाले की अदालत में कोई बहस अपने असत्य को सत्य सिद्ध नहीं कर सकती। ऊपर वाले की अदालत, जो आपके दिल में अन्तरात्मा के सामने ही लगती है वहाँ सत्य सत्य है और असत्य असत्य है। यह अदालत कभी कोई गलत फैसला नहीं देती और इसके सज़ा देने के आपके ही तरीके हैं जो सांसारिक तरीकों से, सांसारिक सज़ाओं से कहीं अधिक भयावह व कष्टïप्रद है जिसे कहते हैं ऊपर का कोड़ा, ऊपर की…