कर्मगति

जब जिज्ञासुओं के प्रश्नों के उत्तर नहीं बन पड़ते या नहीं कह पाते तो कह देते हैं कि पिछले जन्मों के कर्मफल हैं। कोई अमीर घर में पैदा क्यों होता है, कोई गरीब घर में पैदा क्यों होता है, जीव की उत्पति अपने अनुकूल वंशानुगत वातावरण में होती है। नाली का कीड़ा नाली में ही बच्चा पैदा करेगा। इसमें पिछले कर्मों को दोष देना व्यर्थ है। वैसे भी हम भारतीयों का राष्ट्रीय चरित्र बन गया है- अपनी कमियों असफलताओं का दोषारोपण दूसरे पर डाल देना। यह आलस्य है, कर्म न करने का बहाना है। यदि गरीबी पिछले जन्मों का कर्मफल होता तो कोई-कोई गरीब दुनिया का सबसे बड़ा अमीर क्यों बन जाता है? कारण है, तत्बुद्धि ज्ञान और कर्म। सही दिशा में कर्म पूरे मनोयोग और पुरुषार्थ से न कि पिछले जन्मों का कर्मफल। अगला-पिछला जन्म किसने देखा है। सब प्रश्नों को टालने के बहाने हैं या यह भी हो…

मार्गों की अटकन सत्य से भटकन

यह सत्य तो सभी जानते हैं, स्वीकारते भी हैं कि कोई भी मार्ग अपनाओ सभी परमात्मा तक पहुँचते हैं। पर यह सत्य समझने की चेष्टा कोई नहीं करता कि प्रत्येक मार्ग की अपनी साधना है जो व्यक्तिगत पुरुषार्थ पर निर्भर है। व्यक्ति यह तत्व भुलाकर अपने मार्ग को उत्तम बताने और जताने के फेर में स्वयं भी अपने धार्मिक मार्ग के कर्मकाण्डों क्रियाकलापों और दिखावटी प्रदर्शनों की भूल-भुलैया में जीवनभर फँसा रहता है। अपने-अपने मार्ग को सही व सर्वोत्तम बताने में अथक प्रयत्न करने वाले स्वयं कहाँ पहुँचते हैं, ये तो वो ही जाने। अपने अपनाए धर्म को दूसरों के धर्म से बेहतर बताने वालों में से क्या कोई कृष्ण नानक ईसा विवेकानन्द कबीर तुलसी या गांधी जैसा महान मानव बन पाया या बना पाया। मार्ग कोई भी हो, ज्ञान भक्ति या कर्म या अन्य कोई सब सीढ़ियाँ मात्र हैं प्रभुता की प्रभुताई- ऊँचाई तक पहुँचने की। अगर नहीं पहुँचे…