ज्ञान सागर

रत्नाकर प्रभाकर सुधाकर करे ध्यान उजागर, भरे मन की गागर स्मृति अनन्त सागर, स्मरण की बना मथनी इच्छा की लगा शक्ति बुद्धि की बना डोर, ध्यान का लगा जोर काल का चक्र घुमा पाया अनमोल रत्न ज्ञान का नव निर्माण का, कर्म प्रधान का सत्य विहान का, प्रेम समान का विश्व कल्याण का प्रणाम अभियान का महाप्रयाण की इससे अच्छी तैयारी और क्या होगी पूर्ण होकर ही पूर्ण में विलय होने की पूर्ण हुई ईश्वर कृपा कृपा ही कृपा पूर्ण अनुकम्पा में नतमस्तक है मीना यही है सत्य प्रणाम मीना ऊँ

जागो, हे मानव !

आओ एकजुट होओप्रकाश का अवतरणचैतन्यता के सुप्रभात का वर्षभविष्य का सत्य- समय आ पहुँचा है सच्ची आत्मानुभूति के मार्ग के प्रशस्तीकरण का, मानव सत्ता की वास्तविकता स्थापित करने का, मानवता के धर्म के प्रादुर्भाव का, एकत्व का आनन्द अनुभव करने का।बदलो और बढ़ो- अपने अंदर से ही सत्य का प्रेम का प्रकाश प्रज्वलित करो। सच्चा ज्ञान व विवेक जब तुम अपनी ही आंतरिक सत्य सत्ता से जुड़ते हो तो स्वत: ही झरता है। भूतकाल के बोझ से अपने को खाली करो। सत्य प्रेम व प्रकाश के प्रसार के लिए :- प्रत्येेेक भाव को दिव्य बनाओ प्रत्येक सोच को ब्रह्माण्डीय बनाओ प्रत्येक कर्म को पूजा बनाओप्राकृतिक नियम सृष्टि के कण-कण में सर्वविद्यमान है जो होनी की सम्पूर्ण व्यवस्था को पूर्णता व उत्कृष्टता से संचालित करता है। इस दिव्य विधान के सुयोग्य पात्र बनो।नेममुद्यतम्, ऋग्वेद- नियमानुसार ही प्रकाश होता है। प्रकाशमय, Enlightenment, होने का - एक प्राकृतिक नियम है। समय की मांग…

आत्म-गीत

मैं युगचेतना हूँ, गीता हूँ, सुगीता हूँ वेद हूँ विज्ञान हूँ विधि का विधान हूँ जैसा प्रकृति ने चाहा, वही इंसान हूँ मानस पुत्री प्रकृति की, सर्वोत्कृष्ट कृति प्रकृति की संभवामि युगे-युगे हूँ पूर्ण हूँ पराशक्ति हूँ वही तो हूँ कर्मयोगी हूँ प्रेमयोगी हूँ सत्ययोगी हूँ यही सत्य है यहीं सत्य है उगा सूर्य सत्य का, सतरंगी रास पकड़ ले सत की अनमोल धरोहर, सात घोड़ों के रथ पर सवार करने को प्रकाश प्रसार, उञ्चास मरुत के साथ, अंतर, ज्ञान-विज्ञान, संगीत अपार लय-ताल का अद्भुत संगम तब जीवन क्यों हो दुर्गम? यही बताने आये श्रीकृष्ण बार-बार ले पराशक्ति अपार इस बार सीखो जगत व्यवहार, जीवन नहीं व्यापार। धर्म है जो अपूर्णता को दे नकार कर्म है जो पूर्णता को करे अंगीकार वाह! वाह! भारत की, भारत ने सदा दिया है, युग पुरुष का, युग पौरुषी का, शिवशक्ति का, सत्यम् शिवम् सुंदरम् का अद्भुत संगम, बार-बार पूर्ण अवतार मानवता के उत्थान…

‘हे सखी’

हे पावन प्रणाम आओ ! भय का वातावरण बना है धर्म कार्य कैसे हो बोलो। ज्ञान-ध्यान-तप नहीं सुहाता है प्रकृति पुत्री अब आँखें खोलो पूजा-पाठ नहीं कर पाते आकर मन को समझा जाओ, हे पावन प्रणाम आओ! उग्रवाद आतंकवाद अब पैर जमाए खड़ा हुआ है। लूटपाट अन्याय चोरी करने में अड़ा हुआ है। स्वाध्याय कैसे कर पाए आकर कोई मार्ग दिखाओ, हे पावन प्रणाम आओ ! उत्तम क्षमा धरें हम कैसे बात-बात में क्रोध सताता। गुरुजन विनय नहीं हो पाती, सिर पर मान चढ़ा मदमाता क्षमाशील विनयी बन जावें ऐसी कोई राह सुझाओ, हे पावन प्रणाम आओ ! आर्जव धर्म नहीं निभ पाता, मन में मायाचार भरा है। उत्तम शौच गया गंगाजी, अशुचि भाव ने मन जकड़ा है। कपट मिटे जगे शुचि भावना, ऐसा सुंदर पाठ पढ़ाओ, हे पावन प्रणाम आओ ! सत्य धर्म छुप गया गुफा में, उत्तम सत्य दिख नहीं पाता संयम कैसे पले मन में, मन मर्कट…